🌷🌹"परछाईं न साथ है देती"🌹🌷
कहने को तो परछाईं ही, सगी सभी से दिखती है।
अपने भी जे साथ छोड़ते, पर यह संग चमकती है।
आज के युग में परछाईं भी,गुम हो जाती है 'मोहन'।
जब चहुं ओर रोशन हो तो, परछाईं भी न रहती है।
परछाईं है अंग माया का, जो सदा नहीं रह पाती है।
घटती बढ़ती ग़ायब होती, सदा न साथ निभाती है।
जो सदा ही संग रहेगा,इसे सत्गुरू से जाने 'मोहन'।
पाके अंगसंग राम रमैया, रूह फूली नहीं समाती है।
जीवन भी तो असल नहीं है, परछाईं की क्या बात करें।
जो सदा ही साथ है रहना, क्यों न इसका हम साथ करें।
सच का संग करने से 'मोहन', जीतेजी मिलती है मुक्ति।
रज़रज़ पिएं इस ब्रह्मरस को, शुकर-शुकर दिनरात करें।
असली अंगसंग जान लिया तो, फ़ानी का क्यों संग करें।
होके समर्पित इस रब में ही, इस जीवन में रब्बी रंग भरें।
निरा नशा ये जाम-इलाही, 'मोहन' नित लुत्फ़ लिया करें।
ओज़पूर्ण परछाईं बनें खुद,नित सिफ़्त प्रसंग किया करें।
जो दिखता इन आँखों से, उसे तो संग न जाना है।
जो देखा है दिव्यचक्षु से, ये ही असल ठिकाना है।
संग रहूँ नित सचके 'मोहन',परछाईं न साथ है देती।
शुकर नित रब का करके, इसमें ही तो समाना है।
🌺शुकर ऐ मेरे मेहरबां🌺
🙏धन निरंकार जी🙏