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लेखनी की गरिमा

11 अक्टूबर 2021

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🌷🌹"लेखनी की गरिमा"🌹🌷

कोई भी कवि या लेखक कभी, बस यूंही तो नहीं बन जाता।
झेल सामाजिक दुश्वारियां महसूस कर आत्मसात करता जाता।
जब पीड़ा हद से बेहद हो जाती, सहनशीलता का घड़ा फूट जाता।
न किसी की हमदर्दी सहानुभूति मिलती, खुद टूटके बिखर जाता।
न कोई आसरा आधार हिमायती, जो गर्त में डूबने से बचा पाता।
तब..इक क़लम बनती है सहारा, जैसे डूबता हुआ तिनका पाता।
बस.. शुरू हो जाती है उदगारों से उफनती शैलाब रूपी सरिता।
और.. बहते चले जाते हैं भाव, लिखते जाते हैं लेख व कविता।
उकरता है जीवन समाज का हर पहलू, सियासी उठापटक को।
सृष्टि चित्रण विषय उन्माद को, करुण चीत्कारों की झलक को।
या इन सभी उदगारों से अलग, ले जाता है शुद्ध आध्यात्म की ओर।
जिसे पढ़कर पाता है रूहानियत परमशांति, होता है आत्मविभोर।
तो... फिर क्यों भला कोई पाठक, उन वेदना भरे गहरे भावों में बहे।
क्यों अपनी मस्त लीक को विराम दे, क्यों बेतुकी सी संवेदनाएं सहे।
यही कारण है जो कोई भी शख्स, नहीं बन पाता है उनका ग्राहक।
आपकी पीड़ा की बहती सरिता को, समझता है फ़ालतू व नाहक।
गर कोई इन्हें पढ़ने की ज़हमत, भूल या उत्सुकता से उठाता है।
या तो वो इनकी खिल्ली उड़ाता है, या फिर गहराई में डूब जाता है।
दिल की गहराई से उकेरे उदगार, कभी भी जाया नहीं जाते हैं।
कोई पढ़े-सुने या न पढ़े-सुने, पर ये निरंतर लिखते ही जाते हैं।
कभी भी कोई प्रयास ज़ाया नहीं जाता, अतएव रखना है सदा इसे जारी।
तुरंत नहीं देरी से ही सही, कोई न कोई पढ़के इन्हें होगा अवश्य आभारी।

🌺सार्थक प्रयास ही साहित्यिक श्रृंगार🌺
🙏पढ़ने के लिए हार्दिक आभार🙏

Papiya

Papiya

सुंदर

26 नवम्बर 2021

Arun

Arun

बहुत ही बढ़िया संदेश।

11 अक्टूबर 2021

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रचनाएँ
गरिमा लेखनी की
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इस पुस्तक में आध्यात्म या समाज का चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
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लेखनी की गरिमा

11 अक्टूबर 2021
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राब्ता-ए-फ़क़्र: सज़दा

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<div align="left"><p dir="ltr">🌷🌹<b><u>"मनमौज़ी"</u></b>🌹🌷</p><p dir="ltr"><b><i>रूप मनमौज़ी ध्यान

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🌷🌹"आक्रोश कब, कैसे और समाधान"🌹🌷

13 नवम्बर 2021
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🌷🌹"क़माल की जादुई झप्पी"🌹🌷

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17 नवम्बर 2021
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🌷🌹"अपनी दिव्य पनाहों में.."🌹🌷

12 दिसम्बर 2021
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🌷🌹"इश्क़-हक़ीक़ी पूजा है..."🌹🌷

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🌷🌹"श्रद्धा भक्ति विश्वास रहे, मन में आनंद का वास रहे"🌹🌷

16 दिसम्बर 2021
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<p dir="ltr">*🌷🌹<u><b>"श्रद्धा भक्ति विश्वास रहे, मन में आनंद का वास रहे"</b></u>🌹🌷*</p> <p dir=

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🌷🌹"शरूर-ए-इश्क़ ख़ुमारी"🌹🌷

1 जनवरी 2022
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🌷🌹"तुम... ज़िस्म हो या ज़िस्म में हो..."🌹🌷

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🌷🌹"तुम... ज़िस्म हो या ज़िस्म में हो..."🌹🌷 तुम क्या महज़ ज़िस्म हो??? यदि ज़िस्म हो तो नामकरण के पहले एवं मरण के उपरांत... क्या अपनी पहचान बता सकोगे!! और यदि ज़िस्म नहीं हो तो फिर क्या हो और कौन हो!!! न

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🌷🌹"बस मोल है ख़्यालात का..."🌹🌷

21 जनवरी 2022
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🌷🌹"बस मोल है ख़्यालात का..."🌹🌷 भास खुदको तब हुआ,अपनी सही औक़ात का। जब सितारे ने था चीरा, दिल अंधियारी रात का। नश्तर चुभाके दिल में जो,बेदर्दी से ज़ख़्म दिए। दर्द को भी न दर्द हुआ, प्रेम भरे जज़्बात का।

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🌹"कहीं ऐसा इलाही घर न मिलेगा.."🌹🌷

23 जनवरी 2022
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🌷🌹"कहीं ऐसा इलाही घर न मिलेगा.."🌹🌷 इस लुभावने गुलशन के जैसा, कहीं और यह मंजर न मिलेगा। उल्फ़त से महके जहाँ हर ज़र्रा, वहां ख़ौफ़-ए-ख़ंजर न मिलेगा। महकता हुआ हो हरपल ही जहां, हर वक़्त सुबह और शाम। रूहानि

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🌷🌹"पूर्ण सत्गुरू ही सर्वकला संपन्न समरथ सत्ता है..."🌹🌷

27 जनवरी 2022
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🌷🌹"पूर्ण सत्गुरू ही सर्वकला संपन्न समरथ सत्ता है..."🌹🌷 पूर्ण सत्गुरू ही सर्वकला, संपन्न समरथ सत्ता है। बिन इसकी कृपा के तो, खिले न फूल-पत्ता है। सबकुछ लेवे देवे यही,'मोहन' अलौकिक दत्ता है। अज्ञा

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