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गायन शैली निर्देशिका

2 सितम्बर 2023

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रचनाएँ
पृथ्वीराज-संयोगिता की गौरव गाथा (काव्यरूप में)
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यह पुस्तक हमारे उन सभी महापुरुषों एवं पूर्वजों को समर्पित है, जिन्होंने सनातन धर्म की परम्पराओं (मानवता, सत्यता, न्याय इत्यादि) का आदर्श रूप से पालन करते हुए अपने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा अपने धर्म, कुल एवं देश के गौरव को बढ़ाया तथा उसके हेतु अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, जिसके कारण आज हम अपने आपको अत्यंत गौरवान्वित अनुभव करते हैं। यह पुस्तक हमारे देश के उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहूति देकर इस देश को स्वतंत्रता दिलाई। यह पुस्तक हमारे उन सभी वीर सैनिकों को समर्पित है, जिन्होंने देश की सेवा में अपने आपको बलिदान कर दिया। यह पुस्तक हमारे देश की जल, थल एवं वायु सेना के उन सभी वीर सैनिकों को समर्पित है, जो दिन-रात हमारे देश की सुरक्षा में समर्पण भाव से लगे हुए हैं। यह पुस्तक हमारे देश के उस प्रत्येक नागरिक को समर्पित है, जिसके हृदय में देशभक्ति, राष्ट्रधर्म एवं भारत माता के प्रति सम्मान का भाव है और जो इस देश की मानवतावादी सनातन संस्कृति में विश्वास रखता है, जिसके आदर्श हैं “सब जीवों के प्रति सम्मान का भाव” एवं “वसुधैव कुटुम्बकम”। यह पुस्तक उस प्रत्येक व्यक्ति को समर्पित है, जो इस देश की प्राचीन न्यायवादी मान्यताओं का समर्थन करता है तथा ईमानदारी से देश के विकास एवं इसकी सुरक्षा हेतु निरंतर कार्यरत है। यह पुस्तक उन सभी को समर्पित है, जो सम्पूर्ण विश्व में आतंक मुक्त, भृष्टाचार मुक्त, न्यायपूर्ण, अहिंसात्मक, शांतिपूर्ण, सम्मानयुक्त, ईमानदार एवं सहयोगात्मक मानवतावादी व्यवस्था की कामना रखते हैं तथा उसकी स्थापना हेतु प्रयासरत हैं। यह पुस्तक उस प्रत्येक व्यक्ति को समर्पित है जो, नीचता, गद्दारी, विश्वासघात, कुटिलता, देशद्रोह, अन्याय, हिंसा, अधर्म, असत्य, भृष्टाचार, कृतघ्नता इत्यादि को दुर्गुणों की श्रेणी में रखकर उनके समर्थकों को दंड देने में विश्वास रखता है। यह पुस्तक उन सभी लेखकों एवं कवियों को भी समर्पित है जिन्होनें अपने कठिन परिश्रम द्वारा हमारे महापुरुषों को अपनी रचनाओं में स्थान देकर हमेशा के लिए अमर कर दिया है, जिनके अध्यन से हम आज उनके चरित्र, व्यक्तित्व एवं आदर्शों की कल्पना कर पा रहे हैं।
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कॉपीराइट सूचना

2 सितम्बर 2023
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 सर्वाधिकार सुरक्षित। लेखक एवं प्रकाशक की पूर्व लिखित अनुमति के बिना इस पुस्तक के किसी भी हिस्से को पुन: प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है, पुनर्प्राप्ति प्रणाली में संग्रहीत नहीं किया जा सकता है, डेटाब

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भूमिका

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क्षतात त्रायते इति क्षत्रिय: भावार्थ: क्षति से जो समाज की रक्षा करता है वही क्षत्रिय है ।शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्‌। दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्‌ ॥

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समर्पण

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यह पुस्तक हमारे उन सभी महापुरुषों एवं पूर्वजों को समर्पित है, जिन्होंने सनातन धर्म की परम्पराओं (मानवता, सत्यता, न्याय इत्यादि) का आदर्श रूप से पालन करते हुए अपने श्रेष्ठ कर्मों द्वारा अपने धर्म, कुल

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प्राक्कथन

2 सितम्बर 2023
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कविता लिखती है ये कविता, हरि चरणों में ध्यान लगाय। पति की रचनाएँ चुन चुनकर, सुंदर पुस्तक ली है बनाय।। एक दिन मैंने अपने पतिदेव से पूछा, “सुनो जी, आपने इतनी सुंदर सुंदर कविताएं लिखी हैं, इनको छ

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प्रस्तावना

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“मनुष्य अपने पिछले इतिहास, उत्पत्ति और संस्कृति के ज्ञान के बिना एक जड़ रहित पेड़ की तरह है”। इस बात को समझना हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान समय की चकाचौंध से युक्त अति तकनीकी विश्व संरचन

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अध्याय एक पृथ्वीराज-संयोगिता: संक्षिप्त इतिहास

2 सितम्बर 2023
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पृथ्वीराज चौहान को पृथ्वीराज तृतीय के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इनकी वंशावली में इनके पूर्व भी इस नाम के दो अन्य सदस्य (पूर्वज) हो चुके थे। पृथ्वीराज चौहान के लिए, राय पिथौरा, पिथ्थल, पिथौरा, पृथ

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अध्याय दो पृथ्वीराज युग एवं क्षत्रिय धर्म

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पृथ्वीराज चौहान जिस काल में पैदा हुए थे, वह एक ऐसा युग था जिसमें हिन्दू धर्म एवं सनातनी परंपरा की शिक्षा विद्यालयों के पाठ्यक्रम का आवश्यक अंग था। उन दिनों अपनी संतानों को मानवतावादी सनातन धर्म के उत्

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अध्याय तीन सरस्वती वंदना

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मात शारदा तेरी महिमा, जग में सबसे निराली है । अज्ञानता के मिटा अँधेरे, दुःख को हरने वाली है ।। १ ।। सदा विचारों में रहती है, तन मन में बस जाती है । सब कुछ तू करवाती है, पर कहीं नजर नहीं आ

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अध्याय चार मंगलाचरण एवं पाठकों का अभिनन्दन

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माँ सरस्वती करूं मैं वंदन, ज्ञान का मन में भरो प्रकाश । तेरी कृपा से चलते हैं, जड़ चेतन अवनी आकाश ।। १ ।। माँ गौरा शिवजी के दुलारे, श्री गणेश विघ्न हरो सारे । हरि हर ब्रह्मा गौरी लक्ष्मी, सफल

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अध्याय पाँच पृथ्वीराज की बाल्यावस्था एवं प्रारंभिक जीवन

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भारत में एक राजा थे, अजमेर राजधानी थी । सोमेश्वर चौहान नाम, कर्पूरी देवी रानी थी ।। १ ।। संवत बारह सौ तेईस में, ग्रीष्म ऋतु का जेठ महीना । द्वादशी है कृष्ण पक्ष की, वातावरण भोर का भ

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अध्याय छह संयोगिता स्वयंवर

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पृथ्वीराज तेरी गाथाएँ,  अति ही गौरवशाली हैं । भारतभूमि का दुनिया में,  मान बढ़ाने वाली हैं ।। १ ।। संयोगिता कर रही तपस्या,  अपना पति तुझे मान चुकी है । तेरे बिना नहीं रहना उसको,  ऐसा मन म

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अध्याय सात जयचंद की गद्दारी एवं घोरी के साथ मिलकर छल की योजना

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दिल्ली के सम्राट पृथ्वी, संजुक्ता उनकी रानी है । कन्नौजपति जयचंद ने उनसे, घोर शत्रुता ठानी है ।। १ ।।   सत्रह बार हारा था घोरी, फिर से भारत आया है । पृथ्वीराज से बदला लेने, जयचंद ने बुलवाया ह

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अध्याय आठ पृथ्वीराज का युद्ध के लिए प्रस्थान

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हाथ में ले पूजा का थाल, संजुक्ता महल में आई है । पिथौरा हो गए हैं तैयार, शपथ ये उसको दिलाई है ।। १ ।। लो ये आज शपथ संजुक्ता, दुर्ग से बाहर नहीं जाओगी । जीत हार कुछ भी हो लेकिन, युद्ध क्षेत्र

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अध्याय नौ महारानी संयोगिता का यज्ञ

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संजुक्ता मंदिर में गई आय, पिथौरा रण में गए हुए हैं । संजुक्ता यज्ञ रही करवाय, पिथौरा रण में गए हुए हैं ।। १ ।। धीरे धीरे मंत्र बोलती, ह्रदय के नहीं भेद खोलती । मन में रही घबड़ाय, पिथौरा रण मे

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अध्याय दस पृथ्वीराज चौहान एवं घोरी के बीच अठारहवें युद्ध की शुरुआत

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कल को युद्ध शुरू होना है, सब सेनाएं गई हैं आय । रणभूमि से कुछ दूरी पर, अपने शिविर लिए हैं बनाय ।। १ ।। जयचंद और घोरी ने मिलकर, ऐसा जाल बिछाया है । कायरता भी शर्मा जाए, ऐसा खेल रचाया है ।। २ ।

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अध्याय ग्यारह धार्मिक छल द्वारा पृथ्वीराज को बंदी बनाया गया

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घोरी गया युद्ध से भाग, जाल अब नया बिछाया है । पृथ्वी विरोधी राजाओं को, अपने साथ मिलाया है ।। १ ।। पिथौरा के बैरी हर्षाये, समय प्रतिकार का आया है । पृथ्वी को नीचा दिखलाने का, अवसर लाया है ।।

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अध्याय बारह जयचंद वध

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जयचंद ने किया देशद्रोह, घोरी ने लाभ उठाया है । छल और कायरता के बल, पृथ्वी को कैद कराया है ।। १ ।। जयचंद बोला घोरी से तुम, दिल्ली देना मुझे थमाय । मेरी गुलामी करेगा पिथौरा, कारागार में दो डलवा

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अध्याय तेरह महारानी संयोगिता द्वारा जौहर की तैयारी

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पिथौरा कैद किये शत्रु ने, युद्ध से खबर ये आयी है । ये समाचार सुनते ही, संजुक्ता महल में आयी है ।। १ ।। नहीं देर करी बिल्कुल भी, सभा उसने बुलवाई है । मंत्री बुला लिए हैं सारे, बात उनको समझाई ह

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अध्याय चौदह महारानी संयोगिता द्वारा माँ गौरी की वंदना

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मात मेरी अर्ज करो स्वीकार, मुझे जौहर में जाने दो । मात मेरे प्राण करो स्वीकार, मुझे सती धर्म निभाने दो ।। १ ।। पार्वती माँ शिवा भवानी, दुर्गा शारदा जग कल्याणी । परमेश्वरी तू है जगजननी, गौरी ल

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अध्याय पंद्रह जौहर गीत

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जय जय शंकर हर हर शंकर, जय जय शंकर हर हर शंकर । जय जय शंकर हर हर शंकर, जय जय शंकर हर हर शंकर ।। १ ।। मृत्यु के देव के देव तुम्ही हो, रूद्र रूप तुम महा भयंकर । देवों के देव तुम महादेव तुम, महाकाल तुम म

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अध्याय सोलह महारानी संयोगिता का जौहर

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जौहर का संगीत, दुर्ग में ऐसा छाया है । मौत भी सुनकर काँप उठे, ऐसा पल आया है ।। १ ।। पृथ्वी तेरी रानी हूँ, तेरे बिन नहीं रहूँगी । तेरा जो गौरव है उसको, कम नहीं होने दूंगी ।। २ ।। हर जन्म में तुझको पा

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अध्याय सत्रह अठारहवें युद्ध की समाप्ति, पृथ्वीराज विजय एवं आत्मोत्सर्ग

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विधि का विधान देखो, ऐसा समय आया है । पृथ्वी जैसे वीर को, एक कायर ने फँसाया है ।। १ ।। घोरी ले गया उन्हें गजनी में, बहुत ही वहाँ सताया है । बार बार जिसे क्षमा किया उसे, जरा तरस नहीं आया है ।।

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अध्याय अठारह इतिहास से मिलने वाली शिक्षाएं

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यह एक प्रमाणित एवं सर्वमान्य तथ्य है कि इतिहास अपने आपको दोहराता है । इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम इतिहास को ईमानदारी के साथ लिखें-पढ़ें, उससे शिक्षा ग्रहण करें, उन गलतियों की पुनरावृत्त

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गायन शैली निर्देशिका

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अध्याय छंद संख्या गायन शैली  तीन १-१६ रागनी (भक्ति रस) चार १-५ आल्हा (भक्ति रस) पाँच १-६५ रागनी, लोकगीत, आल्हा (वीर रस, रौद्र रस) छह १-६८ रागनी, लोकगीत, आल्हा सात १-१७ रागनी, आल्हा आठ १-४ रागनी

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