कविता संग्रह
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अति उत्तम
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मिट्टी का छोटा सा कण हूँ, छोटा सा है जीवन मेरा ।अंधकार से जूझ रहा हूँ, आशा है कि होगा सवेरा ।। शिशुकाल में सोचता था, ये दुनिया कितनी सुंदर है ।हर एक प्राणी प्रेम मग्न है, हर इंसान अति सुंदर है ।।
भारत माँ की पावन धरती, महापुरुषों की खान रही है ।मानवता और भाईचारा, ये इसकी पहचान रही है ।।वसुधैव कुटुम्बकम ही, भारतवर्ष की रीति है ।पहले वार नहीं करते हैं, ये ही हमारी नीति है ।।श
मित्र धर्म इस दुनिया में,सारे धर्मों से ऊपर है ।हर बंधन की जंजीरों से,रिश्ते नातों से ऊपर है ।।कोई रीति-रिवाज नहीं इसमें,बस प्रेम ही इसकी भाषा है । एक मित्र मित्र का हित चाहे,बस ये इसकी परिभाषा ह