ग़ज़ल
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काफ़िया-आर
रदीफ़- नहीं होगा
अपमान किसानों का स्वीकार नही होगा।
इक बार किया तुमने हर बार नही होगा।
ये बन्द करो नाटक जो खेल रहे हो तुम,
गर वार किया तुमने इकरार नहीं होगा।
दिन रात परिश्रम कर खाद्यान्न उगाता मैं,
इस बार हुआ फिर से बेकार नहीं होगा।
धोखे से छला तुमने हर बार किसानों को,
इस बार अन्नदाता लाचार नहीं होगा।
गर आज किसानों के जज़्बात नही समझे,
हुँकार भरूँ फिर से सरकार नहीं होगा।
यदि छोड़ दिया हमनें खाद्यान्न उगाना तो,
ये आप सभी समझो संसार नही होगा।
जो आज किसानों पर आतंक किया तुमने,
अपराध तुम्हारा ये स्वीकार नही होगा।
है हिन्द देश अपना कर प्रेमभाव सबसे,
दुश्मन की^तरह इसमें व्यवहार नही होगा।
तुम प्यार से^ जो कहते स्वीकार हमे होता,
अभिमान कभी "अभिनव" आधार नहीं होगा।
अभिनव मिश्र अदम्य
शाहजहांपुर, उ.प्र.