गीत
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जीवन उलझा मेरा दौलत को कमाने में।
हम भूल गए घर को कुछ वक्त बिताने में।
सब छूट गए अपने बस याद बसी मन में।
हूँ आज दुखी फिर भी रहता खुश जीवन में।
परदेश बसे आकर घरद्वार छुटा अपना।
है आज दुखित माता सूना ममता अँगना।
हूँ आज नही सुख में अवशोष जमाने में।
जीवन उलझा मेरा दौलत को कमाने में।
बस चंद खुशी खातिर मन लोभ बना लाया।
चौखट पर रोती माँ मैं छोड़ चला आया।
अब रोज सुबह उठकर भोजन तो बनाता हूँ।
आराम नहीं फिर भी हूँ ठीक बताता हूँ।
अब वक्त गुजरता है बस एक बहाने में।
जीवन उलझा मेरा दौलत को कमाने में।
परदेश नहीं जाना हो लाख खरी खोटी।
अच्छी अपने घर की है नमक पड़ी रोटी।
वो गांव बगीचों में कोयल का कू करना।
परदेश में आकर के भूले न वतन अपना।
ये गीत हुआ पूरा कुछ याद सुनाने में।
जीवन उलझा मेरा दौलत को कमाने में।
अभिनव मिश्र अदम्य