#देवउठानि_एकादशी
विषय- तुलसी विवाह
तुलसी महिमा मैं गाउँ।
तुम सबको आज सुनाऊ।
थी वृन्दा एक कुमारी।
बचपन से धर्म पुजारी।
थी विष्णु भक्त वो प्यारी।
है जिनकी महिमा न्यारी।
कर दानव कुल में शादी।
पतिव्रता धर्म की आदी।
जालंधर नाम बखाना।
देवों का शत्रु पुराना।
था देवों का अपकारी।
हरि भक्त मिली थी नारी।
नारायण छल कर डाला।
पति धर्म नष्ट कर डाला।
रण में गए प्राण पिया के।
पूंछो ना हाल जिया के।
ये श्रीहरि श्राप हमारा।
है पथ्थर ह्रदय तुम्हारा।
पथ्थर मूरत बन जाओ।
अब सूरत नहि दिखलाओ।
संत्राण हेतु देवों के।
बन गए शत्रु वृन्दा के।
हो व्यथित लक्ष्मी आयी।
है बिनती करुण सुनाई।
हो द्रवित मातु तुलसी ने।
देकर वरदान उसी ने।
श्री हरि की देखो माया।
है एक विधान बनाया।
तुलसी के पेड़ लगेंगें।
मुझे सालिग्राम कहेंगे।
*अभिनव मिश्र अदम्य*