गरीब की दीवाली
दीवाली के दिए जले हैं
घर-घर में खुशहाली है।
पर इस गरीब की दीवाली
लगती खाली खाली है।
पैसा वालों के घर देखो
अच्छी लगे सजावट है।
इस गरीब के घर को देखो
टूटी- फूटी हालत है।
हाय-हाय बेदर्द विधाता
गला गरीबी घोट रही।
बच्चों के अब ख्वाब घरौंदे
लाचारी में टूट रही।
जेब पड़ी है खाली मेरी
कैसे पर्व मनाऊं मैं।
नहीं तेल है घर में मेरे
कैसे दीप जलाऊं मैं।
रूखा-सूखा भोजन करते
तम ने पैर पसारा है।
आज मुझे बतलादो भगवन
क्या अपराध हमारा है।
©मौलिक,स्वरचित:-
अभिनव मिश्र"अदम्य
शाहजहांपुर, उत्तरप्रदेश