प्राणप्रिये
सरसी छन्द
16,11 की यति 27 मात्रएं अंत 21 से
मेरी प्राणप्रिये तुम हमको, जन्म जन्म स्वीकार।
तुम ही मेरे जीवन की हो, जीने का आधार।
तुम मेरे दिल की धड़कन हो, तुम ही मेरी सांस।
तुमसे कुछ उम्मीदें मेरी, तुमसे ही कुछ आस।
करती सेवा सदा हमारी, रखती हर पल ध्यान।
अगर समस्या में चिंतित हूँ, करती तुम आसान।
कभी-कभी कुछ नोक झोंक हो, कभी बरसता प्यार
कठिन परिश्रम में थकान से, हो जाता जब चूर।
प्रेम भरी वाणी सुनकर के, हो जाती सब दूर।
घर की मर्यादा को रखकर, सदा बढ़ाया मान।
अतिथि कोई यदि घर पर आता, करती तुम सम्मान।
जीवनसाथी साथ तुम्हारा, मिले मुझे हरबार।
तुमने घर को स्वर्ग बनाया, बदल गयी तकदीर।
दूर नही रह पाऊँ तुमसे, मैं हो जाऊँ अधीर।
दिल मेरा गदगद हो जाता, भर जाती उर प्रीत।
जब तुम कहती मुझे सुनादो, प्यार भरा इक गीत।
हम अल्हड़ को अपनाकर के, किया बहुत उपकार।
अभिनव मिश्र अदम्य