ग़ज़ल221 1222 221 1222काफ़िया-आररदीफ़- नहीं होगाअपमान किसानों का स्वीकार नही होगा।इक बार किया तुमने हर बार नही होगा।ये बन्द करो नाटक जो खेल रहे हो तुम,गर वार किया तुमने इकरार नहीं होगा।दिन रात परिश्रम कर खाद्यान्न उगाता मैं,इस बार हुआ फिर से बेकार नहीं होगा।धोखे से छला तुमने हर बार किसानों को,इस बार अन्
तारकेश कुमार ओझाबाजारवाद के मौजूदा दौर में आए तो मानसिक अत्याचार अथवा उत्पीड़न यानी र्टार्चिंग या फिर थोड़े ठेठ अंदाज में कहें तो किसी का खून पीना... भी एक कला का रूप ले चुकी है। आम - अादमी के जीवन में इस कला में पारंगत कलाकार कदम - कदम पर खड़े नजर आते हैं। एक आम भारतीय की मजबूरी के तहत कस्बे से महा