उन्होंने सिटकुन का मोटा वाला सिरा पकड़ा और अपनी कुर्सी से लगभग चार फीट की दूरी पर एक गोला बनाते हुए कहा कि मैं इस गोले में खड़ा हो जाऊ। उनकी आज्ञा का तत्काल पालन हुआ और धड़कते हृदय के साथ मैं उनके द्वारा बनाये गोले में एक अपराधी की तरह सर झुकाए खड़ा था।
" बेटा, कल मैंने जो कुछ भी सुना हैं क्या वो सब सही हैं...?" - खरखराती रोबीली आवाज़ में उन्होंने प्रश्न किया।
कोई जवाब नही, मैं गोले में शांत खड़ा रहा।
" शट.."- उस हरी सिटकुन ने मेरा स्वागत किया, मैं छटपटा कर रह गया।