घुड़सवारी ''बीते जमाने की बात हो गई है , 'घुड़सवारी 'और ''हाथी की सवारी'' शाही सवारी मानी जाती थी। शाही लोग ही, इनका अधिकतर प्रयोग करते थे। सामान्य जन भी घोड़े की सवारी का आनन्द ले लिया करते थे। राजा ,महाराजाओं के यहां भी' 'अस्तबल' हुआ करते थे। एक -दो घोड़ा तो हर घर में दिखाई दे जाता था और जब घोड़े पर चढ़कर चलते थे, तब बड़ी शान से निकलते थे। उस समय राजकुमारी के सपने भी इसी तरह के हुआ करते थे -'कि सफेद घोड़े पर सवार राजकुमार मुझे ब्याहने आएगा।
उस समय की कहानियों में भी राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आता और राजकुमारी को राक्षस से बचा कर ले जाता। राजकुमारी के रक्षा करने के साथ ही ,वह राजकुमारी का हृदय भी जीत लेता और राजकुमारी उससे विवाह करने के लिए तैयार हो जाती या अपने राज्य में राजकुमारी को ले जाकर उससे प्रसन्नतापूर्वक विवाह कर लेता।उस समय राजकुमारी ने अपना ह्रदय जिस राजकुमार को दे दिया उसकी जीवनभर के लिए होकर रह जाती थी। फिर चाहे उसके साथ महल में रहे या फिर वन में भटकना पड़े।
किंतु आज के समय में न राजकुमार रहे हैं न राजकुमारियां और न ही घोड़े रहे हैं।स्वप्न तो आज की लड़कियां [पापा की परियां ]भी देखती हैं , अपने विवाह के सपने , अपने होने वाले पति यानी राजकुमार के सपने, किंतु अब वह वर्तमान में जीती हैं । वे जानती हैं अब कोई राजकुमार नहीं आएगा , न ही उसके पास कोई घोड़ा होगा उसका राजकुमार कहीं किसी कंपनी में, किसी दफ्तर में, दो पैसे की कमाई के लिए, एड़ियां घिस रहा होगा।कुछ राजकुमार ,गली -मोहल्ले ,नुक्क्ड़ पर निठल्ले फब्तियां कसते दिख जाते थे । वैसे जब से ये फोन क्या आ गया ?अब ये कार्य घर बैठकर भी ,आराम से हो जाता है। अब समय के साथ व्यवहार और सोच में भी परिवर्तन हुआ। अब राजकुमार से पहले ,[टाइमपास ]दोस्त बन जाते हैं।
राजकुमार सभी को पैसे वाला ही चाहिए। जो उसे दो वक्त की रोटी, सुकून से खिला सके अब बेटियां घोड़े के स्वप्न नहीं देखतीं , अब वह बड़ी सी गाड़ी के स्वप्न देखती हैं । विदेश में रहने और घूमने के स्वप्न देखती हैं। हालांकि अभी भी लोग घुड़चड़ी द्वारा घोड़े की सवारी का रसास्वादान विवाह से पहले लेते हैं लेकिन उसका कोई भी, आगे आनेवालीीki जिंदगी पर असर नहीं होता है। क्योंकि सच्चाई यही है, न ही वह राजकुमार है और जिसे ब्याहने जा रहा है न ही वह राजकुमारी है। आज भी राजकुमार आता है। अब उम्र इतनी हो जाती है उन्हें घोड़े पर बैठना भी अजीब लगता है, तब वह गाड़ी में ही अपनी [घुड़चढ़ी ]की रस्म या यूं कहीं औपचारिकता पूर्ण कर लेते हैं। या फिर अदालत में जाकर विवाह करके आ जाते हैं। किसी ने स्कूल ,कॉलेज में या खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए, कभी घुड़सवारी की हो तो कह नहीं सकते किंतु आज के समय में न ही घोड़े दिखलाई देते हैं और न ही घुड़सवारी होती है।
देखा जाए तो, आज का युग ''महंगाई का युग ''है, यह वह जमाना नहीं रहा जब देश'' सोने की चिड़िया ''रहा करता था। घोड़े ,हाथी जैसे जानवर पालना एक आम इंसान के वश में नहीं क्योंकि उनके खानपान उनकी देखरेख, सब में बहुत अधिक व्यय आ जाता है। सबसे बड़ी बात तो यही है जब आज के समय में, इतनी तीव्र गति का साधन लोगों को मिला है, तब वह घोड़े क्यों पालेंगे ? अब कहीं घोड़ा दिखता भी है, बल्कि घोड़ा नहीं खच्चर ही दिखते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से भी देखा जाए तो, अब जानवरों पर, अत्याचार करना भी जुर्म है, या पशु पक्षियों को कैद करना भी जुर्म है। आज के समय में पशु -पक्षी ,जानवर, जैसे-जैसे हरियाली कम होती जा रही है वह भी कम होते जा रहे हैं बल्कि उनकी सुरक्षा का बीड़ा उठाया जा रहा है।
घोड़े जैसे ही,'' खच्चर'' होते हैं जो पहाड़ी इलाकों में कहीं दिख जाते हैं, जो इंसानों को पहाड़ी स्थलों का भ्रमण कराते हैं।आजकल तो घर ही ,इतने छोटे -छोटे हो गए हैं ,उसमें जानवर तो क्या ? रिश्ते भी नहीं रह पाते है । घोड़े की सवारी, भले ही शान की सवारी है, किंतु आज के समय में उसका महत्व न के बराबर रह गया है।