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हर साल दशहरा आता है,,,

17 अक्टूबर 2021

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हर साल दशहरा आता है, हर साल दिवाली होती है, 
दोनों में नारी पूजित है, फिर भी नारी क्यों रोती है

ये प्रश्न खोजता उतर है, ऐ अम्बर ऐ धरणी बोलो, 
यह श्रद्धा दिखावा है नर का, कुछ राज यहाँ इनके खोलो
दुर्गा को खूब सजाते हो, लक्ष्मी पर शीश नवाते हो, 
सभी कुमारी कन्या को तुम  पूज्या वही  बनाते हो, 
फिर कहो रोज क्यो सडकों पर, शोणित मे नारी सोती है, 
हर साल दशहरा आता है हर साल दिवाली होती है.

तेरे मन मे वह रावण है, दिल मे ही रोज सजाते हो, 
उसका ही सुन्दर रुप बना, तुम उसमे ही खो जाते हो, 
बाहर रावण को जला दिया, फिर भी मन मे वह जिंदा है, 
मानव तेरे इसी कृत्य से सबका मन शर्मिंदा है.
नहीं बनाते, नहीं जलाते, सबका साथ निभा देते, 
दाग कलंक मन का धो लेते, सबका साथ निभा देते, 
जिसको साथ निभाने लाये, वही अकेली रोती है, 
हर साल दशहरा आता है हर साल दिवाली होती है.

वेद कुरान उपनिषद या तुम रोज रामायण गाते हो, 
कभी राम माँ सीते को, अपने जीवन मे लाते हो, 
शिष्टाचार है कर्म तेरा, अंदर से, बिलकुल खाली हो, 
सूखा है तेरा बाग बगीचा, कहने भर को माली हो, 
खुद को खूब सजाते जाते, बाहर नाम कमाते हो, 
घरमे अर्धांगी रोती है, उसपर शर्म न लाते हो, 
योग्य नहीं वो समझी जाती, भोग्या बन कर खोती है, 
हर साल दशहरा आता है हर साल दिवाली होती है.

खुद पर न कभी अभिमान करो, हर जन  का सम्मान करो
सहभागी पन का ध्यान करो, जनजीवन का उत्थान करो, 
सृष्टि के सच्चे सहचर हो, तुम अक्षय स्रोत हो निर्झर हो, 
बिन साथी कुछ आसान नही, कभी हुआ कहीं निर्माण नहीं, 
आओ अब नया बिहान करें, नर सम नारी सम्मान करें, 
जबतक ले कोई खर्राटे, कोई रात रात भर रोती है, 
तबतक नहीं दशहरा कोई या दिवाली होती है.

,,,, ब्रजमोहन पाण्डेय.,,, 









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