मचल रही बहेलिये की मुनिया
मुझे चाहिए हरी हरी चिड़िया
हम बहेलिये हैं इस जंगल के
हमें भला किसकी परवाह है
सुन मेरी प्यारी लाडो बिटिया
कहते जहाँ चाह है वहाँ राह है
लाड लडाकर बापु बोला सुन
तू तो है बहेलिये की रानी बेटी
एक नही तू दस ले लेना
क्युं जरा सी बात पर रोती है।
कल सुबह सबेरे वन जाऊंगा
हरी हरी चिड़िया ले आऊंगा्
अभी रात का काला पहरा
बाहर पसरा घोर अंधेरा
अब तुम खुश होकर मुस्काओ
चुपके जाकर सो जाओ
तुम्हें अकेले न जाने दूंगी
बापु मै भी साथ चलूंगी
चलो तुम्हारी बात रह गई
सो जाओ अब रात हो गई
भोर हुआ सूरज उग आया
बहेलिये ने जाल उठाया
कांधे पर बैठा ली मुनिया
चला जंगल की राह बहेलिया
मनोहारी जंगल में मुनियां
चूं चूं चुकचुक से मुग्ध हुई
नन्हे हांथो से डाल के दाने
बापु संग छुप गई है मुनिया
दाना चुगने उतरी चिडिया
छुपकर देख रही है मुनिया
बहेलिये ने खींची डोर
चिडियों ने मचाया शोर
चिडियों के चकचक से
गूंज रहा जंगल चहुंओर।
चार जाल में फडफड करती
थोड़ी सी कुछ पकड हुई
शेष फुदकती चूंचूं करती
जा डाली पर बैठ गई
पिंजरा अब उनका घर था
चारों प्राणी कैद हुए
अपनी पनीली आंखों से
वो अपना जंगल देख रहे
लाल चोंच मोटू सा कंठू
मुनिया के मन को भाये
जाल में फंसी चिडियों को
अपना जंगल ललचाऐ
अपने घर को चला बहेलिया
कांधे पर था जाल उठाऐ
चूंचूं चकचक पीछा करते
पंछी साथ में उडते आऐ
पूछ रही बापू से मुनिया
क्युं ंये पंछी शोर मचाऐ
कभी ऊपर कभी नीचे उडते
अपने पीछे पीछे आंऐ
इनके सहोदर कैद हो गऐ
जिससे उनका जी घबराऐ
इसिलिये पीछा करते हैं
किसी जतन से उन्हें छुडायें
मुनिया ज्योंही घर पहुंची
अम्मा ने लिया गले लगाय
नन्हे मन में उथल-पुथल
बापू अम्माँ समझ न पाऐं
मेरी अम्मा के जेसी ही
उनकी भी तो अम्मा होगी
भारी भूल हुई मुझसे
कैसे ये भूल क्षमा होगी
उडी शरारत चढी हरारत
बेसुध मुनिया चीख रही
उनकी अम्मा रोती होगी
अम्मा उनकी रोती होगी
उन चिडियों को बापू
अब तुम आजाद करो
जंगल ही उनका घर है
बस इतना तुम याद रखो।
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