इससे फर्क नहीं पड़ता,तुम कितना खाते हो?फर्क इससे भी नहीं पड़ता,कि कितना कमाते हो?फर्क इससे भी नहीं पड़ता, कि कितना कमाया है?फर्क इससे भी नहीं पड़ता,कि क्या क्या गंवाया है?दबाया है कितनों को,कुछ पाने के लिए.जलाया है कितनों को,पहचान बनाने के लिए.फर्क इससे नहीं पड़ता,कि दूजों को
फ़लसफ़ा-ए - मुहब्बत में मज़हब नहीं होता, खुदा तो होता है, पर कारोबार नहीं होता. नाम ले के खुदा का जो फैलाते है नफ़रत,खुद उनका घर कभी आबाद नहीं होता. (आलिम)
जो इंसानियत को मारे, घर-घर लहू बहाये। वो किसने 'राम' समझे, किसने 'खुदा' बनाये।। ये आतिश नवा से लोग ही, मातम फ़रोश हैं, चैन-ओ-अमन का ये वतन, फिर से न डगमगाये। घोला ज़हर किसी ने या, गलती निज़ाम की, गुनहगार इस वतन के, यूँ ही न पूजे जायें। उन्हें खून की हर बूंद का, कैसे हिसाब दें, जो आँसुऔ की कीमत, अबत