इससे फर्क नहीं पड़ता,
तुम कितना खाते हो?
फर्क इससे भी नहीं पड़ता,
कि कितना कमाते हो?
फर्क इससे भी नहीं पड़ता,
कि कितना कमाया है?
फर्क इससे भी नहीं पड़ता,
कि क्या क्या गंवाया है?
दबाया है कितनों को,
कुछ पाने के लिए.
जलाया है कितनों को,
पहचान बनाने के लिए.
फर्क इससे नहीं पड़ता,
कि दूजों को रुलाया है.
फर्क इससे नहीं पड़ता,
कि अपनों को सताया है.
फर्क इससे पड़ता है,
तुम भी हँस सकते हो.
तोड़ के बंधन सारे,
उत्सव रच सकते हो.
अंगुलिमाल या डाकू रत्नाकर,
बुद्ध छिपे हर इंसान में.
फर्क इससे पड़ता है,
कि खुदा में बस सकते हो.
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित