प्रकृति भी आज बे-हाल है,
इंसानियत का बुरा हाल है।।
लूट डकैती भ्रस्टाचार अनाचारी,
सब तरफ जोर इनका कमाल है।।
लोग लड़ रहे हैं एक दूसरे से,
सबके लिये अपने सत्ता का सवाल है।।
सबको देख जानवर तक कह रहे,
इनका तो हमसे भी बुरा हाल है।।
तयाग, तपस्या, मानवता, परोपकार,
क्या है? भूल गये, इस बात का मलाल है।।
कहूँ सच की राह में चलने जब,
सब कहते बुराई का रास्ता आसान है।।
चारो तरफ छाई है ये घटा अंधियारी,
है ये बहरूपिया या सच में कोई इंसान है।।
हो तो हो कैसे इस हिंदुस्तान का शुभम,
जब इंसानियत सिखाने वाले ही बे-हाल है।।
-शुभम वैष्णव