अहिंसा परमो धर्म अर्थात् अहिंसा ही परम धर्म है।
मनुष्य की जिंदगी में सद्गुणों की पंक्ति में अहिंसा भी एक बहुत बड़ा गुण होता है जो मनुष्य को अपने जीवन में धारण करना चाहिए।
वर्तमान की मनोदशा देखते हुए अहिंसा को लोगों ने छोड़ने की जगह अपने जीवन में ग्रहण कर लिया है।
सुबह के अखबार के पन्नों के साथ ही एक ना एक नई घटना पढ़ने को मिल जाती जिसमें एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के खून का प्यासा हो गया है।
आज का मनुष्य इतना लालची और लोभी हो गया है कि वह चंद रूपये की खातिर अपने ही लोगों से धोखा देने से पीछे नहीं हटता है।
अहिंसा के शब्द को आज इतना हीन कर दिया है कि इस समय जीवों की हत्या ही नहीं मनुष्य की हत्या भी दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
लोगों के मन से प्रेम दया करुणा खत्म होती नजर आ रही है लोग एक दूसरे की प्रगति से जले हुए हैं।
हर मनुष्य चाहता है कि मै इस दुनिया में आगे निकलकर सर्वोच्च बनकर दुनिया में चमक पैदा करूं।
एक बेटा अपने वृद्ध माता पिता को घर से बाहर निकालकर वृद्धाश्रम में छोडकर अपनी मौज मस्ती में मशगूल हैं यह एक तरह की हिंसा नहीं है तो क्या है।
कुछ लोग अपने प्रेमी की हत्या इसलिए कर देते हैं क्योंकि वह उसे धोखा दे रही है।
कुछ लोग एक प्रेमी और प्रेमिका को इसलिए खत्म कर रहे हैं कि उसने उसके परिवार की राय लेकर काम नहीं किया।
कुछ छूटे प्रेमी अपने नाजायज संबंध के कारण किसी बच्चे को कचरे के ढेर या खेत,नाले के किनारे इसलिए छोड़ जाते हैं कि उन्हें उनके पापों की सजा ना मिले, लेकिन उस बच्चे के जीवन को खत्म करना क्या हिंसा नहीं है।
शासन प्रशासन में बैठे रिश्वतखोरी के गुमनाम चेहरे जो गरीब लोगों को भी अपने शिकारी बना लेते हैं तो यह एक तरह की हिंसा से कम नहीं है।
कदम-कदम पर लोगों को हिंसा का दंश झेलना पड़ रहा है और कहते हैं जमाना खराब आ गया।
ज़माने को खराब करने के लिए वह हर मनुष्य जिम्मेदार है जो किसी भी रूप में मनुष्य को मरने के लिए या जीते-जी शोषण करने के लिए तैयार रहता है।