भ्रूण हत्या पाप है। भ्रूण हत्या रोकना ही सच्ची सच्ची नवरात्रि मनाना है।
दुर्गापुर नामक गांव में दो बहने ब्याहकर दो भाइयों के घर आई थी। बड़ा भाई का नाम अजय जिसका विवाह कुंती के साथ हुआ था, जो थोड़ा अमीर था। वहीं छोटा भाई राजेश जिसका विवाह शांति के साथ हुआ था। जो थोड़ा गरीब था।
बड़े भाई अजय का एक बेटा था जिसका नाम सुखी था। तो छोटे भाई राजेश की तीन बेटियां शोभा, दीप्ति और सिखा थी।
नवरात्रि का समय था छोटे भाई राजेश की पत्नी शांति ने कहा
शांति - सुनिए जी घर पर कुछ खाने को नहीं है। राशन का सारा समान खत्म हो गया है। ना ही दुर्गा माता को भोग लगाने को कुछ है। आप जाकर कुछ इंतजाम करके ले आओ।
राजेश बाहर काम की तलाश में जाता है। एक धोबी की दुकान में जाकर पूछता है।
राजेश - भाईसाहब कोई काम मिलेगा ?
धोबी - क्या तुम आयरन करना जानते हो, कपड़ों को प्रेस कर लोगे।
राजेश - जी जरूर, क्यों नहीं, बिल्कुल कर लूंगा!
धोबी के दुकान पर रखे सारे धुले कपड़ राजेश प्रेस करके सजा कर रख देता है। जिसमे सुबह से साम हो जाती है।
धोबी - अब साम हो गई तुम घर जाओ और कल से सुबह 9 बजे आ जाना। साथ ही अपना दोपहर का भोजन भी साथ में लाना। ताकि दोबारा घर ना जाना पड़े। और हां जाते जाते यह आज का मेहनताना भी लेते जाओ
ऐसा कहते हुवे उस धोबी ने राजेश के हांथ में 50 रुपए थमा दिए।
राजेश उन पैसों से राशन के कुछ समान और साथ ही बचे हुवे कुछ पैसों से दुर्गा माता के पूजा के लिए कुछ समान और फल सामग्री लेकर खुशी खुशी घर पहुंचता है।
दूसरी ओर बड़े भाई अजय के यहां का दृश्य दिखलाते हुवे।
इधर बड़े भाई अजय के घर पर अजय और उनकी पत्नी कुंती आपस में चर्चा कर रहे होते हैं।
कुंती - हम कितने भाग्यशाली हैं जो हमें एक पुत्र रत्न मिला है। जरूर हमने पिछले जन्म में बड़े पुण्य के कार्य किए होंगे।
अजय - जरा राजेश और शांति का जीवन तो देखो की वह कितने दुर्भाग्यशाली हैं। जो उन्हें एक के बाद एक लगातार तीन तीन बेटियां मिली हैं।
कुंती - जी मेरी मां ने अगर वह शहर जाकर अल्ट्रा साउंड करवाने की बात ना सुझाई होती तो आज हम इतने खुशहाल ना होते।
अजय - कुंती यह क्यों भुल जाती हो की इसके पीछे हमने शहर जाकर कितनी मेहनत किए हैं। कितने पापड़ बेले हैं। कितने धन खर्च किए हैं। जिसके लिए कितनों को ही धोखा देकर धन कमाया।
कुंती - जी क्यों नहीं अगर आपने डॉक्टर को मोटी रकम ना दी होती तो वह तैयार हो ना होता यह सब करने को
अजय - कुंती अगर हम यह उपाय ना अपनाते तो आज हमको भी चार बेटियां और एक बेटा होता। वह तो भला हो तुम्हारी मां का जो इतना अच्छा उपाय बतलाया अल्ट्रा साउंड वाला। और हम अल्ट्रा साउंड कराकर देखते गए और लड़की का भ्रूण होने पर उसकी हत्या करते गए। अन्यथा हमारी स्थिति भी राजेश की तरह ही होती।
कुंती - बेटा पाकर तो हमारा घर स्वर्ग बन गया। आज से नवरात्रि शुरू हो रही है। आज इसी खुशी में नवरात्रि का व्रत रखकर माता की पूजा अर्चना करते हैं। और 9 कुंवारी कन्याओं को भोजन भी कराएंगे
अजय - हां हां भाग्यवान क्यों नहीं तुम नवरात्रि में माता दुर्गा की उपासना भक्ति करो। साम को दुकान से काम करके घर वापस लौटते वक्त बाजार से कुछ पूजन सामग्री लेते आऊंगा।
इधर कुंती भी माता की उपासना आरंभ करती है।
कुंती अपने बेटे से
कुंती - सुखी बेटा जब कन्या भोजन करवाएंगे तब तुम्हे भी भैरव बाबा बनाएंगे क्यों सुखी बेटा बनेगा ना भैरव बाबा
सुखी बेटा - हां मां मैं भैरव बाबा बनकर बैठूंगा।
अजय दुकान चला जाता है। दुकान में समान बेचते वक्त अजय ग्राहकों के साथ रोज धोखा करता था। और तराजू के नीचे चुम्बक चिपका कर रखता था। जिससे ग्राहकों को समान कम तौलकर देता था। अजय राशन के सामानों में मिलावट भी करता था। इस तरह से अजय लोभी प्रवित्ती का व्यक्ति था। जो बेइमानी करके धन कमाता।
साम को अजय पूजा सामग्री और फल राशन इत्यादि के समान लेकर घर पहुंचा।
अजय - कुंती लो सारा समान ले जाकर भीतर किचन में और पूजा कक्ष में रख दो।
कुंती - जी आई
एक थैला उठाकर कुंती किचन में चली जाती है और दूसरा थैला बेटा सुखी उठाकर पूजा कक्ष में चला जाता है।
पर रात में जब सभी गहरी नींद में सोए होते हैं तब अचानक चूहा घर पर जल रही लालटेन गिरा देता है। लालटेन का तेल गद्दे पर बिखर जाता है। गद्दा जलने लगता है। धीरे धीरे आग की लपटें पूरे घर को चारों ओर से जलाने लगती हैं। घर के सभी सदस्य अजय, कुंती, सुखी सब घर से बाहर भागकर अपनी जान बचाते हैं।
और बाहर आकर देखते हैं। की उनका घर धू धू कर उनकी आंखों के सामने स्वाहा हो जाता है।
अजय और उसकी पत्नी कुंती फूट फूट कर रोने लगते हैं।
कुंती - हे भगवान ये क्या हो गया, हमारे हंसते खेलते परिवार को ना जाने किसकी नजर लग गई। हमारा घर जलकर राख हो गया। अब हम कहां रहेंगे। कहां जायेंगे।
थोड़ी देर बाद जब घर पूरी तरह से जलकर खाक में मिल गया तब
अजय - कुंती चलो सुखी को लेकर हम तीनों मेरे छोटे भाई राजेश और तुम्हारी छोटी बहन शांति के घर चलते हैं। वह लोग बड़े दिल वाले हैं। वह हमको सहारा जरूर देंगे।
थोड़ी देर बाद अजय, कुंती बेटे सुखी के साथ राजेश के घर पहुंचते हैं।
राजेश द्वारा खोलता हैं
राजेश अरे भईया, भाभी आप दोनों ओर सुखी भी साथ में इतने रात गए यहां, क्या हुआ सब ठीक तो है।
सुखी - चाचा ना जाने कैसे हमारा घर जलकर राख हो गया है। तो अब हमारे पास रहने का कोई ठिकाना नहीं बचा। क्या आप हमें अपने घर में रखोगे।
राजेश - अरे सुखी बेटा क्यों नहीं। आओ आओ अंदर आओ। आइए भईया भाभी आप दोनों भी घर पर अंदर आइए। यह घर आपका ही तो है। और मुसीबत की घड़ी में अपने काम नहीं आयेंगे तो कौन आयेगा। नवरात्रि में आप भगवान स्वरूप अतिथि के रूप में हमारे घर पर आए हैं।
राजेश - अजी सुनती हो शांति, कहां हो, इधर तो आओ जरा, और साथ ही लोटे में पानी और थाली भी लेते आना।
शांति लोटे में पानी और थाली लेकर पहुंचती है।
शांति - दीदी और जीजाजी आप दोनों यहां हमारे घर में कितनी खुशी की बात है। जो आप नवरात्रि जैसे शुभ अवसर पर यहां आएं।
शांति दीदी जीजाजी को देखकर फूले नहीं समा रही थी।
राजेश अपने भाई की तो शांति अपनी दीदी के पैरों को थाली में रखकर धोते हैं।
बिल्कुल देव की तरह उनका स्वागत आदर करते हैं।
यह सब देख अजय और कुंती भावुक हो जाते हैं।
रात में सोते वक्त
अजय - कुंती हम इन दोनों से कितना बैर रखे हुवे थे। जबकि इन दोनों के मन में हमारे प्रति एक प्रतिशत भी बैर नहीं।
कुंती - जी हम दोनों पुत्र की प्राप्ति के बाद से इनके प्रति हीन भाव रखे हुवे थे। हमें पुत्र प्राप्ति का अहंकार हो गया था।
रात में अजय और कुंती दोनों के सपने में अष्ठ भूजाधारी मां दुर्गा आती है।
दुर्गा मां अजय और कुंती से सपने में आकर कहती हैं।
दुर्गा मां - तुमने पुत्र की ईक्षा में अपनी कोख में पल रहे बच्चियों की हत्या की थी। और नवरात्रि में कन्या भोजन का दिखावा करते हो। अरे तुमको जन्म देने वाली एक मां स्त्री ही थी। और आज तुम्हे नारी से ही इतनी घृणा हो गई की तुम लोगों ने एक नहीं चार चार बच्चियों की कोख में ही हत्या कर दी और चले हो नौ कन्याओं को कन्या भोजन कराने का ढकोसला करने। जब तुम्हारा खुद का घर जला तब तुम्हे कितनी तकलीफ हुई। जब तुमने कोख में उन बच्चियों को जन्म से पहले ही उनका जीवन छीनकर हत्या कर दिया तो उनपर क्या बीती होगी।
अगले दिन सुबह राजेश के घर का दृश्य
सुबह होती है। छै कन्याएं एक एक करके घर पर प्रवेश करती हैं इधर से राजेश की तीन बेटियां शोभा, दीप्ति और सिखा कुल मिलाकर नौ कन्याएं कन्या भोजन हेतु तैयार हो जाती हैं। इधर अजय के बेटे सुखी को भैरव बाबा बनाकर बैठा दिया जाता है। पूजा अर्चना उपरांत सभी कन्याओ को कन्या भोजन करवाया जाता है। और भैरव बाबा बनकर बैठे सुखी को भी।
अजय और कुंती सभी कन्याओं को भोजन परोस रहे होते हैं। दोनों को सभी कन्याओं में अष्ठ भुजा धारी दुर्गा माता के नव रूपों का साक्षात्कार होने लगता है।
दोनों फूट फूट कर रोने लगते हैं और दुर्गा मां की तस्वीर के सामने जाकर माफी मांगने लगते हैं।
अजय - मुझे माफ करदो मां मैं कितना नीच पापी हूं। मैंने अपनी ही पत्नी के कोख में पल रही बेटियों को बिना जन्में ही कोख में उनकी हत्या करवा दी।
अजय - मैं गलत ढंग से पैसे कमाता रहा लोगों से ज्यादा पैसे लेकर उनको कम राशन देता रहा, लोगों को मिलावट का समान बेचकर सबके स्वास्थ्य को खराब करता रहा। अब मुझे मेरे किए की प्रायश्चित है मां मुझे माफ करदो।
कुंती - दुर्गा माता के तस्वीर के सामने रोते हुवे
कुंती - मुझे भी माफ करदो मां पुत्र के मोह में मैं अंधी हो गई थी जो बेटियों की हत्या में हांथ बटाई। मेरी बहन शांति और देवर राजेश कितने महान हैं। हमने बेवजह ही सदा इनके प्रति हीन, घृणा भाव रखा। जबकि इन दोनों के मन में हमारे प्रति एक दाना मैल नहीं। हमारी गलतियों के लिए हमें क्षमा करे मां।
अष्ठ भूजाधारी दुर्गा मां पुनः साक्षात्कार कराती हैं।
दुर्गा माता तस्वीर से निकलकर प्रकट होती हैं।
दुर्गा माता - उठो बच्चों उठो कुंती, उठो अजय तुम्हारे आंखो से निकले आंसुवों ने तुम्हारा मन साफ कर दिया। अब अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए तुमकों इस दुनियां के कोने कोने में जाकर कन्या की महत्ता सारे जग को सुनाकर, भ्रूण हत्या के प्रति समाज में जागरूकता लाने का श्रेष्ठ कार्य करना है। आज से तुम दोनों के इस नेक कार्य में सदा मेरी क्षत्रछाया बनी रहेगी।
तब से कुंती और अजय अपने बेटे सुखी के साथ मिलकर इस नेक कार्य को विश्व के कोने कोने में भ्रूण हत्या के प्रति जागरूकता फैलाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं। अब उनके लिए यही सच्ची नवरात्रि है। और इस कार्य से मिली खुशी ही उनके लिए नवरात्रि का प्रसाद है।
बोलो सेरावाली माता की जय