Success और कुछ नहीं बल्कि कथनी और करनी के बीच के अंतर को मिटाना ही सफलता है।
जब हम किसी कार्य को करने का मन बना लेते हैं। तो मन में क्रिएट किए गए संकल्पों की दृणता पर निर्भर करता है। की हम उसे कार्य को कर पाएंगे या नहीं। क्योंकि अगर संकल्पों में दृणता होगी। तो निश्चित ही कार्यों में सिद्धि अर्थात सफलता मिलेगी।
और संकल्पों में दृणता के लिए लक्ष्य का बार बार मन में मनन करना जरूरी हैं।
किसी कार्य को करने का संकल्प लेना एक बीज बोने की तरह हैं।
जिस तरह बीज को झाड़ बनने के लिए खाद, पानी, सूरज की रोशनी की आवश्यकता होती है।
बिल्कुल उसी तरह संकल्प रूपी बीज को सफलता रूपी झाड़ में बदलने के लिए लक्ष्य प्राप्ति से संबंधित ज्ञान व गुण के साथ निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने का नियमित अभ्यास करना भी जरूरी है।
जब हम यह मान लेते हैं की हम वह लक्ष्य प्राप्त करने को बने हैं। उस लक्ष्य को प्राप्त करके रहेंगे। या वह लक्ष्य हमें प्राप्त हो चुका है। जब इस तरह के पॉजिटिव संकल्प हम अपने मन में क्रिएट करते हैं। तो रोज रोज अपने मन में यह संकल्प उत्पन करने से एक दिन हमारा मन यह मान लेता है। की सचमुच हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर चुके हैं। और उस लक्ष्य से संबंधित आवश्यक गुणों को हमारे अंतर्मन में जागृत कर देता है। जिससे की हम उस लक्ष्य से संबंधित लक्षण खुद में जागृत कर पाते हैं।
और एक बार जब हममें लक्ष्य से संबंधित लक्षण पनप जाएं तो हमें उस लक्ष्य को प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता। और अगर किसी कारण वश हमे वह लक्ष्य प्राप्त नहीं भी होता है। तो मलाल करने की जरूरत नहीं क्योंकि हममें उस लक्ष्य को परफॉर्म करने के लिए संबंधित लक्षण ऑलरेडी पनप चुके हैं। और हम जो कुछ भी मेहनत कर रहे हैं वह अंदर गुणों और शक्तियों को जागृत करने के लिए करते हैं। तो क्या फर्क पड़ता है। जो वह चाही गई लक्ष्य की प्राप्ति से अगर हम वंचित भी रह गए तो, क्योंकि ऑलरेडी हम अंदर से वह बन गए हैं। जो बनना चाहते थे।
लक्ष्य वैसे तो प्राप्त हो ही जाता है। जब हम दृण संकल्प लेकर कड़ी मेहनत करते हैं। पर कभी कभार प्राप्त नहीं होता उसके पीछे वजह हैं पास्ट के कर्म, अगर हमने अतीत में कोई ऐसे कर्म किए हैं जो नेगेटिव हैं। तो उन कर्मों का फल अक्सर उसी समय मिलता है। जब हम किसी चीज को पाने के लिए भाग रहे होते हैं। जिससे की हमें कर्मों की गुह्य गति का ज्ञान को।
सही मानसिकता या सही दृष्टिकोण से नकारात्मक तनाव को सकारात्मक तनाओ में बदला जा सकता है।
तनाव कब होता है। शब्द तनाव से ही समझ सकते हैं। एक्सटेंशन मतलब किसी चीज को खींचा जाता है तब तनाव उत्पन्न होता है। बिल्कुल जब किसी घटना से संबंधित मोमेंट को जब बारंबार याद करके उस घटना से संबंधित नेगेटिव विचार बार बार मन में जब उत्पन होने लगे, तब एक विचार को ज्यादा खींचने से तनाव उत्पन्न होने लगता है। तो इस तरह से नकारात्मक तनाओं को हम पॉजिटिव एटिट्यूड से बदल सकते हैं।
पॉजिटिव एटिट्यूड, पॉजिटिव इनपुट से आता है। इसके लिए हमें आंख, मुंह, कान से पॉजिटिव कंटेंट ग्रहण करने होंगे, पॉजिटिव पढ़ना, सुनना, देखना होगा क्योंकि जैसा इनपुट वैसा आउटपुट। तो जब हम नेगेटिव कंटेंट ग्रहण करने को स्टॉप करेंगे और केवल पॉजिटिव कंटेंट ग्रहण करेंगे तो एक समय ऐसा आयेगा की हम जो कुछ भी सोचेंगे, बोलेंगे, करेंगे वह पॉजिटिव होने लगेगा क्योंकि हमारा एटिट्यूड ही पॉजिटिव बन चुका होगा। जैसा दृष्टिकोण होगा वैसा ही जीवन में हंशील होगा। सब कुछ निर्भर करता है। Attitude पर दृष्टिकोण पर और दृष्टिकोण को बदलने के लिए पॉजिटिव कंटेंट ग्रहण करना जरूरी है। साथ ही योग के द्वारा के द्वारा नेगेटिव संस्कार को सुलाना जरूरी है।
इस दुनियां का सबसे पॉजिटिव कंटेंट है परमात्म ज्ञान। जब हम नियमित रूप से यह ज्ञान लेने लगते हैं। उतना हम परमात्मा से जुड़ते जाते हैं। जितना हम परमात्मा से जुड़ते जाते हैं। उतना हमारे अंदर पॉजिटिविटी पढ़ती जाती है।
कई बार लक्ष्य प्राप्त ना होने से लोग निराश हताश हो जाते हैं।
और अपने आप को नाकामीयाब या वह काबिल नहीं हैं ऐसा सोचने लगते हैं। और खुद को कोसने लगते हैं। जब बारंबार खुद को रिजेक्ट करने के संकल्प मन में उत्पन्न होने लगती हैं और लंबे समय तक चलती हैं जैसे 6 महीना साल भर तो ऐसे कंडीशन में व्यक्ति डिप्रेशन का सीकर होने लग जाता है।
अत्याधिक नेगेटिव सोच से उसकी नींद उड़ने लगती है। जिससे मानसिक कमजोरी आने लगती है। आत्मविश्वास घटने लगता है। फिर किसी कार्य में मन नहीं लगता और ऐसे कंडीशन में उमंग उत्साह जीवन से गायब होने से किसी क्षेत्र में भी सफलता नहीं मिलती क्योंकि स्वयं के प्रति हीन भाव रखने से हमारे गुण, शक्तियां डीएक्टिवेट हो जाती हैं। फिर हम जो कुछ भी चाहे उसकी कथनी करनी में अंतर होने लगता हैं। जब तक यह अंतर रहता है। जीवन के हर क्षेत्र में हम असफल होते रहते हैं। और जैसे ही यह कथनी करनी के बीच का अंतर खत्म होता है। हम सफल होने लगते हैं। पर कथनी करनी के बीच का अंतर राजयोग के अभ्यास से खत्म होता है। राजयोग मेडिटेशन के अभ्यास के लिए नजदीकी ब्रह्माकुमारी सेंटर जाएं जहां निशुल्क रूप से राजयोग अभ्यास करवाने के लिए मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
Om shanti