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जिस तरह भारत मां जगत की माता है। उसी तरह हिंदी भी जगत के सर्व भाषाओं की माता है

14 सितम्बर 2022

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जिस तरह भारत जगत की माता है।

उसी तरह हिंदी भी जगत माता।

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आज से 10 वर्षों पूर्व मैं बेंगलुरु में *मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव* का कार्य किया करता था। जिस प्रोफेशन में हमें सीखलाया जाता था। हमें ट्रेनिंग दी जाती थी कि डॉक्टर से इंग्लिश में किस तरह से बात व्यवहार करना है। किस तरह से दवाइयों को प्रमोट करना है। बेंगलुरु में वैसे तो प्रायः प्रायः 98% डॉक्टर हिंदी जानते थे परंतु क्योंकि कंपनी के इमेज की बात हुआ करती थी। कभी कभार साथ में कोई मैनेजर्स या रिजिनल मैनेजर्स या जोनल मैनेजर या प्रोडक्ट मैनेजर हमारे साथ फील्ड वर्क में आया करते थे। जानते तो सभी थे हिंदी पर हिंदी में वार्तालाप करने में हिचकिचाते थे। चूंकि टाई अंग्रेजों की पहन रखी थी। तो खुद को अंग्रेज की तरह प्रेजेंट करना भी जरूरी होता था। डॉक्टर्स ने कभी किसी से नहीं कहा की मुझे अंग्रेजी में आकर ही दवाइयां प्रमोट करो। पर जैसा कंपनी ने सिखाया सभी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव अंग्रेजी ना जानते हुवे भी जबरन की अंग्रेजी बोलकर अंग्रेजी का भी अपमान किया करते थे।

अगर हम भूल से फील्ड वर्क के दौरान हिंदी में बात करने लगते तो मैनेजर्स ऐसे घूर के देखते जैसे हमने क्राइम कर दिया हो। और वहीं जब डॉक्टर से हम फ्लूंसी के साथ अंग्रेजी में बात करने लग जाते तो सुपीरियर्स को बड़ी खुशी होती थी और मीटिंग्स में कर्नाटका के स्थानीय कर्मचारियों को जो डॉक्टर्स के केबिन में स्थानीय कन्नड़ भाषा में वार्तालाप किया करते थे। उन्हे मीटिंग में डांटा फटकारा जाता था की डॉक्टर्स से अंग्रेजी में ही बातें करनी है। अब भला जैसा राज्य व राज्य वासी की भाषा अगर उस भाषा में भी वार्तालाप करने पर पाबंदी लगे तो यह विषय विचारणीय हैं।

कोई भाषा ऊंच या नीच नहीं हो सकती। क्योंकि भाषा तो महज माध्यम है। जिसके माध्यम से हम अपने भावनाओं, विचारों का अदान प्रदान करते हैं। और भारत में तो हर कुछ किलोमीटर के बाद भाषा बदलती ही रहती है। लेकिन हिंदी सम्पूर्ण भाषा है। बांकी भाषाएं उनके पश्चात आई हैं इसलिए वह हिंदी के बच्चे जरूर कहे जा सकते हैं। जैसे पहले आबादी केवल भारत तक सीमित थी। उसके बाद अन्य देशों का अस्तित्व आया इसलिए भारत को माता कहा जाता है। और अन्य देश भारत माता के बच्चे हुवे। भारत विश्वगुरू था। तो जैसे भारत माता है। ठीक उसी तरह हिंदी भी माता है। और अन्य सभी भाषाएं उनके बच्चे। जिस तरह अंग्रेजी में चाची को भी आंटी मामी को भी आंटी मौसी को भी आंटी कहा जाता है। मतलब अनेक तरह के रिस्टोदरों को एक शब्द से ही संबोधित कर काम चला लिया जाता है। क्योंकि उनके पास शब्दों का भंडार नहीं। परंतु हिंदी माता होने की वजह से हर भावनाओं को आप शब्दों में बयां कर सकते हैं। हिंदी दिल से जुड़ी भाषा है। जो दिल में उठने वाली तरंगों को शब्दों में ढालकर बयां करती है।

हिंदी के प्रति भारतीय समाज में जो दृष्टिकोण फैला पड़ा है। वह दृष्टिकोण तभी बदलेगा। जब जो हिंदी भाषी हैं। वह गर्व के साथ हर स्थानों पर हिंदी में कम्युनिकेशन करेंगे।

उदाहरण के तौर पर मुझे जब कभी मंच मिलता है। तो अपनी दिल की भावनाएं मैं हिंदी में अच्छे से व्यक्त कर पाता हूं। और इसलिए मैं हिंदी भाषा का ही उपयोग करता हूं। चूंकि कुछ वर्ष अंग्रेजी में तोते की तरह दवाइयां प्रमोट करता रहा हूं इसलिए आज भी अंग्रेजी के कुछ शब्द अपने आप ही बोलचाल में इस्तेमाल हो जाते हैं। वह बात अलग है।

वहीं अन्य किसी भाषा में भावनाओं को प्रेजेंट करने में एक डर सा बना रहता है। क्योंकि अन्य भाषाओं में पकड़ उतनी अच्छी नहीं है।

अब मुझे ऐसा कोई job मिलता है। जिसमें मुझे अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा में उस job को परफॉर्म करना है। तो क्या मैं जस्टिस कर पाऊंगा। क्या एक दिन एक हफ्ते या एक महीने में कोई नई भाषा सीख लेगा।

नहीं ना लेकिन कोशिश की जा सकती है। पर इतनी परफेक्ट तरीके से अन्य भाषाओं में भावनाओं का एक्सप्रेशन नहीं कर पाऊंगा जितना की मातृभाषा हिंदी में कर पाता हूं। तो अगर आज मुझे पुनः ऐसा कोई कार्य करना पड़े जिसके हिंदी के अलावा मुझे उस job में अपना सौ प्रतिशत अंजाम देना हो तो शायद मैं अपना सौ प्रतिशत नहीं दे पाऊंगा क्योंकि मेरे दिल की भावनाएं हिंदी में प्रेजेंट होती हैं। और अन्य भाषाओं में मुझे तोते की तरह रटी हुई बातें बोलनी होंगी जिन बातों में भावनाएं निहित नहीं होंगी जब शब्दों में इमोशंस हो तब उसकी वैल्यू होती है। अगर शब्दों में इमोशंस ही नहीं तो वह बोल बेजान बोल होते हैं।

आज भारत में हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी भाषा को वैल्यू दि जाने लगी है। हिंदी स्कूलों को तुच्छ और अंग्रेजी स्कूलों को सम्मान जनक दृष्टिकोण से देखा जाने लगा है। सब परिजन हैं तो हिंदी पर अपने बच्चों को सभी अंग्रेजी बोलते देखना चाहते हैं।

लोगों को अंग्रेजी में बोलने वाला सफल व्यक्ति लगता है। लोगों को पैसे वाला सफल व्यक्ति लगता है। फिर पैसे दो नंबरी तरीके से ही क्यों ना कमाएं हों।

मेरे अनुभव के मुताबिक हिंदी मुझे माता लगी, जो सचमुच मेरे दिल से जुड़ी हुई है। मैं अन्य भाषा में अपने आप को सम्पूर्ण तरीके से प्रेजेंट नहीं कर पा रहा था। की मैं क्या हूं। मेरी सोच क्या है। मेरा दृष्टिकोण मेरे विचार क्या हैं। क्योंकि मैं जो कुछ भी हूं उसके पीछे जिम्मेदार मेरे विचार हैं। और अगर मैं अपने विचार ही व्यक्त नहीं करूं और दूसरों के विचारों को ही तोते की तरह रटकर प्रेजेंट करता रहूं। तो मेरी खुद की वैल्यू क्या रही। इंसान की पहचान उसकी वाणी से होती है। की उसके सोच क्या हैं। उसके अनुभव का स्तर क्या है वह कितना परिपक्व है।

जब कभी मुझे इंटरव्यू लिया जाता था तो इंटरव्यू अंग्रेजी में हुआ करता था।

अरे भई देश है भारत मातृभाषा है। हिंदी जो तुम्हे भी आती और मुझे भी आती फिर वही बात मैं अंग्रेजी में बोलूंगा तो ही मेरा सिलेक्शन होगा अन्यथा मेरे रिजेक्शन यह बड़ा विचित्र अनुभव रहता इंटरव्यू के दौरान।

अब खुद ही सोचिए जब आप लड़की देखने जाते हैं जिसके साथ जीवन बिताना है। तो आपस में एक दूसरे को करीब से समझने के लिए आप किस भाषा का प्रयोग करेंगे निश्चित तौर पर उसी भाषा का जो आपके दिल के करीब है। तो जब आपको ऐसे किसी व्यक्ति का चयन करना हो जिसके माध्यम से आपके कंपनी की प्रॉफिट उसके काम से बढ़े तो जब उसका इंटरव्यू भारत के अंदर ही लेते हैं तो यह जानते हुवे भी की बच्चा हिंदी भाषी है। और वह खुद भी हिंदी भाषी होते हैं। जबरन अपने को अंग्रेज प्रेजेंट कर रहे होते हैं। तो कहना यह चाह रहा था की उस बच्चे को करीब से उसे जानने के लिए सबसे बेस्ट भाषा हिंदी होगी या अंग्रेजी।

तब गहराई से समझ में आया यह दुनियां कलयुग में उल्टी हो चली है। और लोगों को उल्टा चलना ही अच्छा लगने लगा हैं।

ढकोसला करने वाला दिखावा करने वाला बनावटी व्यक्ति लोगों को पसंद है। जो अंदर से वैसा नहीं जैसा वह आकर्षित करने के लिए प्रेजेंट करता है। बल्कि वह अंदर से कुछ और होता है। और जब रियलिटी बाहर आती है। तब तक देर हो जाती हैं। फिर ढूंढते हैं वैसा ही सच्चा व्यक्ति जो अंदर बाहर एक समान हो।

कहते हैं ना जो कुछ होता है अच्छे के लिए होता है जो हुआ वह अच्छा जो हो रहा है और तो और जो होगा वह और भी अच्छा। बिल्कुल आज मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है जो मुझे ऐसे जगह से मुक्ति मिली। क्योंकि वह जगह जेल से कम नहीं थी। जहां आसपास तो लाखों लोग थे पर ऐसा एक व्यक्ति भी नहीं जिससे हम अपने भावनाओं को हिंदी में अदान प्रदान कर सकते थे सिवाए उन लोगों के जो नॉर्थ इंडिया से हमारे साथ वहां कमाने गए हुवे थे। बिल्कुल बनावटी, दिखावटी दुनियां में जी रहे थे बस खुद को सेटिस्फाई करने के लिए अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए जिससे लोगों को जता सकें की हम मेट्रो सिटी में कार्य करते हैं। वाह भई बड़ी अजीब दिखावे की दुनियां से निकले हैं। और अब ओरिजनल जिंदगी जी रहे हैं। जो हैं जैसे हैं वह आईने की तरह साफ हैं जिसे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक पढ़ सकता है। मतलब अब मैं मातृभाषा के साथ सबके साथ एडजस्ट हो सकता हूं।

वापस से नॉर्थ इंडिया में आकर मैंने जितने भी कार्य किए हर स्थान पर मैं बिल्कुल स्वतंत्र होकर हिंदी भाषा को कम्युनिकेशन का आधार बनाकर कार्य किए। और हर कार्य में 100 परसेंट दिए और सफलता भी बराबर मिलती। जितनी कर्म उतनी सफलता।

पर पहले अंदर में टेलेंट, गुण, स्किल होते हुवे वह प्रेजेंट नहीं हो पाती थी। एक्सप्रेस नहीं हो पाती थी। क्योंकि दूसरी भाषा में अपने आप को बेहतर ढंग से मैं जो हूं जैसा हूं वैसा प्रेजेंट नहीं कर पा रहा था। जिसकी वजह से टेलेंट दबकर रहा जाता था। और जो कम टैलेंटेड थे वह अपने स्थानीय भाषा का ही उपयोग करके आगे प्रत्यक्ष हो जाते क्योंकि उनके गुण उनकी भाषा के द्वारा रिफ्लेक्ट हो जाते थे समाज में।

चलिए एक बात सांझा करता हूं। मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के जॉब में हमें ट्रेनिंग अंग्रेजी में मीटिंग अंग्रेजी में होती थी। जिसमें प्रोडक्ट नॉलेज इत्यादि बतलाए जाते थे। और वही सारी बातें हम मार्केट में डॉक्टरों के सामने जाकर अंग्रेजी में प्रेजेंट करते थे। लेकिन बिल्कुल तोते की तरह। खुद की भावनाएं खुद के विचार मिश्रित किए बिना। वहीं कर्नाटका के ही कन्नड़ भाषा में वार्तालाप करने वाला मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव भी वही तोता कि तरह रटी हुई बातें डॉक्टरों को प्रेजेंट करते पर साथ ही अपनी राज्यभाषा कन्नड़ में खुद के कुछ विचार और शिष्टाचार, बात व्यवहार, इधर उधर की बातें करके डॉक्टर के साथ घुल मिल जाता और डॉक्टरों का उसे सपोर्ट अधिक मिलते और हम केवल तोते की तरह अंग्रेजी में जाकर बातों को सांझा करने वालों को बिजनेस भी वैसा ही जनरेट होता। तब तो वह अंतर समझ नहीं पता था की ऐसे कैसे टेलेंट हममें ज्यादा पढ़ाई की डिग्री हममें ज्यादा फिर सफल वह ज्यादा क्यों । पर वापस अपने जन्म स्थल आकर कार्य करके अब समझ आता है। की कमी कहां रह गई थी। उस वक्त अंग्रेजी बोल पाने का अहंकार था। इसलिए वह बातें नजर नहीं आती थी।

पर अब चूंकि भाषा का प्रयोग बन चुका हूं तो अब उन बातों को गहराई से बतला पा रहा हूं। जिससे की वह बातें समाज के लिए मार्गदर्शन का कार्य करें।

फिर वही वही कार्य मैं वापस आकर यहां करके देखा परंतु यहां के डॉक्टरों से मैं हिंदी में बात कर सकता था। वैसे तो करना अंग्रेजी में ही था। परंतु जब कभी भी मैं अकेला होता मैं डॉक्टर से हिंदी में ही वार्तालाप करता। दवाइयों की जानकारियां अंग्रेजी में 1 मिनट तो 10 मिनट इधर उधर की बातें शुद्ध हिंदी में। इससे डॉक्टर बड़े खुश होते की लड़का हर बात दिल से बोलता है। और उन्हें भी दिन भर मरीज से मिलकर बोर होने उपरांत मुझसे मिलने में मनोरंजन का अनुभव करते और बदले में मेरी दवाइयां लिखकर मुझे प्रॉफिट भी पहुंचाते।

हिंदी दिल की भाषा को कम्युनिकेशन का आधार बनाकर मैं दिल की बातें अच्छी तरह से डॉक्टर से शेयर कर पाता प्रोडक्ट नॉलेज से ज्यादा वैल्यू हमें तब मिलती है । जब हम डॉक्टर के साथ अच्छा शिष्टाचार पूर्ण व्यवहार रखें,  अच्छा मीठा रिलेशन रखें और अच्छा रिलेशन, अच्छा व्यवहार, अच्छे वार्तालाप से ही बनता है। और बिना मातृभाषा में कम्युनिकेशन किए हम अपना एक्सप्रेशन भावनाएं कैसे एक्सप्रेस कर सकते हैं। तो रियली मैने तो बड़े करीब से अनुभव किया है। की किस तरह से हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा ही नहीं बल्कि मातृभाषा भी है। इसलिए अब हर मंच पर अपने हर अनुभवों पर आधारित ज्ञान हिंदी में ही सांझा करता हूं। फिर उस मंच पर कितने ही बड़े तथाकथित अंग्रेज ही क्यों ना बैठो हों।

बेंगलुरु से वापस लौटने के पश्चात मैंने जितने भी कार्य किए उन सभी में मैंने हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया। जैसे की पत्रकारिता, पॉलिटिक्स, समाज सेवक, अध्यात्मिकता इत्यादि इन सारे जगहों पर जब मैं अपनी भावनाओं को एक्सप्रेस करने के लिए हिंदी भाषा का उपयोग किया तो मेरे अंदर छुपी कलाएं, टेलेंट, स्किल, गुण, आत्मिक शक्ति सब समाज के सामने प्रत्यक्ष होने लगीं। यह सब मेरे लिए अद्वितीय था अकल्पनीय था। क्योंकि हिंदी भाषा के बिना जीवन जीकर देख चुका था। मुझे धन तो मिलता पर मेरे संबंध अन्य भाषाओं के सहारे सबके साथ मजबूत व मधुर नहीं बनते थे। पर आज हिंदी भाषा के उपयोग से मेरे संबंध संपर्क के हर लोगों के साथ मेरे संबंध मधुर हैं। अंग्रेजी भाषा में कार्य करके माथे पर एक बोझ सा महसूस होता था। क्योंकि हम वहां चाहकर भी अपनी भावनाओं को कार्यों में इस्तेमाल नहीं कर पाते थे बातों में जान नहीं डाल पाते थे। पर हिंदी भाषा के साथ अपनी हर बात में जान डालकर छोटे से छोटे कार्यों को करने के आंतरिक संतुष्ठि होती और मन कभी बोझिल महसूस नहीं करता।

हिंदी भाषा के प्रयोग करके अब अपने गुण, शक्तियों को हिंदी भाषा के माध्यम से प्रत्यक्ष करके मैंने 5 वर्षों में ही अपने कार्यों से समाज में वह पहचान बना ली जो 12 वर्षों के कार्य करके नहीं बना सका था। यही अंतर है दिखावे की बनावटी जिंदगी जीने में और ओरिजनल जिंदगी जीने में।

मैं तो हूं एक हिंदी मीडियम से पढ़ा लिखा और धन्यवाद अदा करता हूं परमात्मा का जिन्होंने मुझे हिंदी मीडियम में ही पढ़ाया। मुझे इस बात का गर्व है। अगर मैं भी अंग्रेजी मीडियम में पढ़ लिया होता तो शायद आज हिंदी दिवस के मौके पर इतने गर्व के साथ इन सब बातों को आप सभी से सांझा नही कर पाता निश्चित ही अंग्रेजी महज एक भाषा है। और भाषा तो हर सुंदर होती है। कोई भाषा बुरी नहीं। पर जब बात आती है। की भारत में रहकर किस भाषा को 100 नंबर देना चाहिए। तो मेरा अनुभव वह 100 नंबर हिंदी भाषा को देता है।

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