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अच्छे के साथ अच्छा तो बुरे के साथ बुरा

15 सितम्बर 2022

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अच्छे के साथ अच्छा तो बुरे के साथ बुरा

मनगांव नाम के गांव में एक बड़ा ही धनवान व्यक्ति रहता था। जिसकी गांव में ही एक राशन की दुकान थी। उनका नाम भोला सेठ था। वह बड़े ही कंजूस किस्म के व्यक्ति थे। 


एक दिन भोला सेठ पास के ही धनगांव से वापस अपने मनगांव स्थित घर पैदल आ रहे थे। रास्ते में उनको जमकर भूख लगी। आसपास कुछ नजर नहीं आ रहा था । तभी उन्हे ऊंचे वृक्ष पर आम फले हुए नजर आए। भूख में वह पेड़ पर चढ़ गए। ऊंचे ऊंचे वृक्षों में चढ़ते वक्त तो उनको जरा भी तकलीफ नहीं हुई, और जरा भी डर तक नहीं लगा। पर जैसे ही फल खाने के बाद भोला सेठ ने ऊंचाई से नीचे की ओर देखा तो उनको चक्कर आने लगे और वह सोचने लगे की


भोला सेठ-  मैं कब इतनी ऊंचाई में चढ़ गया पता ही नहीं चला। 


उनका तो पेट बहुत से आम खाकर फूल चुका था। अब उन्हें भारी भारी महसूस होने लगा। तब डर मिटाने के लिए वह राम नाम जपने लगे।

भोला सेठ - राम राम राम राम


वह एक कदम नीचे उतरते फिर कहते

भोला सेठ- राम राम राम राम


फिर एक कदम नीचे उतरते फिर कहते 

भोला सेठ- राम राम राम राम


तीसरे कदम रखते ही उनके पैर थोड़ा सा फिसल गए और उनके मुंह से निकलने लगा 

भोला सेठ- मरा मरा मरा मरा


फिर भोला सेठ भगवान शंकर से मन ही मन कहा 

भोला सेठ -  हे भगवान, भूख में मैं कब इतनी ऊंचाई पर आ गया, मुझे तो पता ही नहीं चला अब आप मुझे किसी तरह मदद कर नीचे उतारिए मुझे ऊंचाई से बड़ा डर लगता है। या मुझे शक्ति दीजिए की मैं खुद ही नीचे उतर सकूं।


फिर धीरे से वह एक कदम नीचे उतरे और भगवान से बोले 

भोला सेठ-  भगवान मैं आपको मंदिर में जाकर 100 नारियल चढ़ाऊंगा, बस किसी तरह मुझे नीचे उतार दो,


फिर थोड़ा नीचे उतरे तो भगवान से मन ही मन बोला की 

भोला सेठ - हे भोलेनाथ अगर आपने मुझे नीचे उतरने में मदद की तो मैं पूरे 50 नारियल मंदिर आकर चढ़ाऊंगा। 


फिर थोड़े नीचे और उतरा तो कहने लगा 

भोला सेठ- हे भगवान मुझे नीचे उतरने में मदद कर दो मैं पूरे दस नारियल मंदिर में चढ़ाऊंगा और 4 ब्राह्मणों को घर बुलाकर छप्पन तरह के पकवान बनाकर खिलाऊंगा


फिर जब जमीन से थोड़ी ही दूरी बच गई थी तब भोला सेठ भगवान से मन ही मन कहने लगा की 


भोला सेठ- हे भोलेनाथ  मुझे पूरी तरह से सुरक्षित नीचे उतार दो, मैं मंदिर आकर एक नारियल  चढ़ाऊंगा और एक ब्राह्मण को सात्विक भोजन  करवाऊंगा।


संयोग से उस समय नारद जी कैलाश पर्वत पर थे,  यह सब देखकर उन्होंने भोलेनाथ से कहा 

नारद-  हे भगवन यह नीचे का भोला सेठ तो बड़ा स्वार्थी हैं। जैसे उसके जीवन में समस्यायों का स्तर बड़ा होता है। वह उतना झुकता है। और जितना समस्यायों का स्तर घटता है। वह उतना ही अड़ियल व्यवहार करता है। और कंजूसी की तो हद कर दी उसने, भगवान तक को नहीं छोड़ा।


 भोलेनाथ - हे नारद जी इंसान को उसके कर्मों का फल कर्म करने के पीछे जो मनसा छुपी होती है। उसके अनुसार मिलता है। नाकी उसके दिखावे के कर्म के आधार पर आगे आगे देखिए सब समझ जायेंगे।


- भोला सेठ अपने घर पहुंचकर सारी बातें पत्नी चंदा को बतलाए। और सुबह मंदिर साथ जाने की बात कही। दूसरे दिन भोला सेठ और चंदा मंदिर के लिए निकल पड़े। मंदिर पहुंचते ही मंदिर की सीढ़ियों के पास फूल, मलाओ, नारियल, अगरबत्ती इत्यादि पूजा सामग्री की दुकान सजी थी।


दुकानदार - भाईसाहब मंदिर में जा रहें हैं, तो आवश्यक पूजन सामग्री आप मुझसे ले लीजिए 

 भोला सेठ - नहीं नहीं इसकी कोई जरूरत नहीं , मैं खुद ही नारियल लाया हूं।


चंदा - अजी,  केवल नारियल से क्या होगा, बांकी के फूल, अगरबत्ती, माला, चंदन इत्यादि इनके यहां से ले लेते हैं।


भोला सेठ- अरे भाग्यवान समझती क्यों नहीं, मैंने भगवान को बस एक ही नारियल और एक ब्राह्मण को भोजन कराने का वादा किया है। अगर एक नारियल से ज्यादा चढ़ाएंगे तब तो भोलेनाथ नाराज हो जायेंगे।


. ऐसा कहकर अपनी पत्नी को दुकान के पास से अलग मंदिर की ओर ले चले। मंदिर में अंदर जाकर, सेठ में नारियल पंडित जी को दिया और फोड़कर वापस देने को कहा, इस पर पंडित समझ गए की देखने में तो पहनावे से यह बड़ा धनी व्यक्ति नजर आ रहा है। मगर है तो बड़ा कंजूस। पंडित जी इतना सोच ही रहे थे तभी भोला सेठ ने   पंडित जी से कहा 

भोला सेठ - पंडितजी, कृपा करके कल सुबह मेरे घर  पर पधारे ।


पंडित जी भी हैरान रह गए और सोचने लगे की जो एक नारियल तक भगवान को चढ़ाकर पूरा वापस ले ले। भला वह किसी अतिथि को घर पर बुलाकर उसके साथ क्या करेगा।


 भोला सेठ - आप कितना खाना खाते हैं पंडित जी । 


पंडित - थोड़ा सा चावल और दो रोटियां, एक ग्लास दूध और एक दो फल, बस इतना ही ।


इस पर भोला सेठ बड़े खुश हुवे की चलो ज्यादा खर्च नहीं होगा सब मिलाकर थोड़े पैसों में काम बन जायेगा।   भोला सेठ अपनी पत्नी चंदा को लेकर वहां से चले गए। दूसरे दिन पंडित जी उनके घर पहुंचे।


भोला सेठ - चंदा देखो पंडित जी आ गए हैं। इनके लिए भोजन का प्रबंध कर दो।


-पत्नी चंदा ने भोजन की थाली जल्द ही लाकर पंडित जी के सामने परोस दी। पंडित जी भी हांथ धोकर भोजन को परमात्मा को भोग लगाकर फिर खुद खाने लगे। दो रोटियां खाने के बाद जब चंदा ने पंडित जी से पूछा 

चंदा - और रोटी ले आऊं

पंडित जी का मन तो था की और थोड़ी रोटी खा लूं,पर इतने में भोला सेठ कह उठे 


भोला सेठ -अरे अरे यह क्या कर रही हो चंदा, कल ही तो पंडित जी ने कहा था की दो रोटियां में इनका पेट भर जाता है।ज्यादा खिला कर इनका पेट ख़राब करोगी क्या।  


-फिर जब थोड़ी देर में चंदा फल लेकर आई पंडित ने फल ग्रहण किए और जब चंदा ने पूछा

चंदा- पंडित जी थोड़े और फल ले आऊं 

भोला सेठ-  अरे अरे यह क्या कह रही हो चंदा, कल तुमने नहीं सुना था की पंडित जी ने कहा था, ये केवल दो  फल ही खाते हैं, इनका नियम तोड़ कर हमे पाप नहीं चढ़ाना।


यह सुनकर  चंदा  फलों की थाली ले जाती हैं । पंडित अपना कर्तव्य निभाते हुए भोला सेठ व उनके परिवार को दुआ देकर वहां से आधे पेट भोजन करके चले गए।


कैलाश में बैठ कर नारदजी और भगवान् शंकर यह सब देख  रहे थे।

नारद - हे भगवान ये भोले सेठ की कंजूसी कितनी बढ़ गई है। कमाने को तो वह बहुत कमाते है। पर उसका धन केवल तिजारियों को भरने के ही काम आते हैं। कभी किसी भूखे को खाना खिलाने में वह धन नहीं लगते, ना मंदिरों में दान में लगते। ना किसी गरीब को दान करता। अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा होता है। यह तो सुना है, पर आज तो मैं भी इस भोला सेठ को उसके ऐसे कर्म के बदले उसका फल भुगतते हुवे देखना चाहता हूं।


 भोलेनाथ - फल मैं नहीं देता यह तो संसार का बना बनाया नियम है की जो जैसा करेगा वह वैसा भरेगा। आगे आगे देखते जाओ उसको उसके कर्मों का फल स्वतः मिलेगा।


दूसरे दिन भोला सेठ जब घर से दुकान चले गए तब एक साधु के वेश में डाकू गब्बर आया। जो आकर भोला सेठ के  दरवाजे पर भिक्षा मांगने लगा ।   

साधु -जो दे उसका भी भला जो ना दे उसका भी भला। 


चंदा - हे साधु महाराज कितने ही वर्ष हो गए हमारे विवाह को पर अब तक यह घर नन्हे बच्चों की किलकारियों से वंचित है। कितने ही जप तप किए पर कोई लाभ नहीं हो रहा कोई उपाय सुझाए महराज


 साधु- आपको चार किलो सोना और साल भर के राशन के पैसे किसी साधु को दान करने पड़ेंगे तब आपके ग्रह कटेंगे। 

इस पर पुत्र सुख से वंचित चंदा ने भावुक होकर घर की तिजोरी में रखे सोने के गहनों को  एक थैले में भरकर   और रूपये को दुसरे थैले भरकर उस साधु के वेश में आए डांकु के पास रख दिए।


चंदा - हे साधु महाराज अब जैसा आपने बतलाया की मुझे साधु को दान करने पड़ेंगे तो आप भी तो स्वयं एक साधु हैं। और घर पर भी आए हुवे हैं। अब मैं दूसरा साधु कहां ढूंढू,  आप एक काम कीजिए ये दोनों थैले ले  लीजिए और हमें आशीर्वाद दीजिए की हमें जल्द ही एक बच्चा हो जाए। 


इस पर साधु के वेश में आए डांकू ने तुरंत ही थैला उठाया और वहां से रफू चक्कर हो गया।


जब भोला सेठ रात में दुकान से लौटे तो चंदा से कहा 


भोला सेठ - रास्ते में आते वक्त मैंने देखा कि दो डांकू आपस में बातें कर रहे थे। मैंने उनकी बातें सुनी वह कह रहे थे की आज तो मनगांव में लुटकर मजा आ गया। ना जाने वह लोग आज किसका घर लुटकर ले गए हैं। क्या तुम्हे पता है।


  चंदा-  क्या क्या लुटकर ले गए वह लोग


  भोला सेठ- उन्हे कोई बेवकूफ औरत मिल गई थी जो खुद ही बिना लूटे अपने से ही एक थैले में सोना और दूसरे थैले में पैसे भरकर उन्हे दे दिए। ना जाने वह कौन सा घर है, इस गांव का जिसकी किस्मत इतनी फुटी है। जरूर कोई पाप कर्म किए होंगे तभी तो डांकू उस धन को लुटकर ले गया।


तब चंदा ने रोते रोते कहा - सुनिए जी वह डाकू और किसी का घर नहीं बल्कि हमारा ही घर लूट कर ले गए और वह बेवकूफ औरत कोई और नहीं बल्कि मैं ही वो हूं। जो पुत्र की चाहना में उस साधु के वेश में आए डांकू को पहचान नहीं सकी और उसकी बातों में आकर दो थैले भरकर उसे दे दिए।


यह सुनकर भोला सेठ के तो पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके दिमाग में तारे नज़र आने लगे।


 नारद-  भोलानाथ जी जय हो । जैसे के साथ तैसा। बुरे कर्मों का फल बुरा ही होता है। 


दोस्तों इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है। की हमें कंजूसी नहीं करनी चाहिए। बल्कि अपनी धन का कुछ हिस्सा दान पुण्य जैसे श्रेष्ठ कार्यों में लगाना चाहिए।

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