शिवरात्रि व्रत रखे हमें ग्रहों से दूर, पूरी करे सारी मनोकामनाएं
एक गांव में नंदी नाम का मछुआरा रहता था। वह और उसकी पत्नी रिद्धि नियमित सुबह नदी में मछली मारकर उसे बेचकर अपना जीवन यापन किया करते थे। विवाह के 15 वर्षों बाद भी उनके घर में संतान सुख नहीं था, वह संतानहीन दंपत्ति थे ।
एक दिन रात नंदी बाजार से मछलियां बेचकर घर लौट रहा था । तभी उसे नदी किनारे पूल के नीचे सुनसान इलाके में एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। वो सोच में पड़ गया की इतनी रात को भला इतने सुनसान जगह से किस बच्चे की रोने की आवाज आ रही है।
नंदी मांझी - पता नहीं इतनी रात को यहा कौन सा बच्चा रो रहा है, जरा देख कर आता हु ।
नंदी मांझी दौड़कर नदी किनारे की पुल की ओर गया। और देखा की एक नवजात शिशु को कोई टोकरी में डालकर ऊपर से कंबल से ढककर वहां छोड़ गया था। उसे उठाकर तुरंत ही नंदी मांझी, वैध जी के पास ले गया।
सारी जांच करने के बाद वैध जी ने नंदी मांझी से कहा
वैध जी - घबराने की कोई जरूरत नहीं, ठंड लगने की वजह से बच्ची को मामूली सा सर्दी जुकाम हुआ है। मैं कुछ औषद्यि दे रहा हूं। समय समय पर इसे पिलाते रहना।
नंदी मांझी वहां से निकलकर सोचने लगा की
नंदी - मेरी कोई संतान नहीं क्यों ना इस बच्ची को मैं अपने घर में ले चलूं। रिद्धि भी बड़ी खुश होगी।
नंदी मांझी उस बच्ची को घर लेकर चला जाता है। घर का दरवाजा खटखटाता है। पत्नी रिद्धि दरवाजा खोलती है। सामने नंदी मांझी गोद में बच्चे को लिए खड़े रहते हैं।
रिद्धि - यह किसका बच्चा है जी। इतनी रात को इसे कहा से लाये हैं , इसके माँ बाप कहाँ हैं ?
नंदी - भाग्यवान पहले अंदर तो चलो, फिर सब बताता हूं
फिर नंदी सारी बातें पत्नी रिद्धि को बतलाता है। पत्नी भी पिछले 15 वर्षों से संतान हीन थी, इसलिए वह नंदी मांझी की बातों से सहमत होकर बच्चे का पालन पोषण करने के लिए तैयार हो जाती है।
रिद्धि - ठीक है। अब भगवान की जैसी मर्जी। जो भी हो अब कम से कम यह घर बच्चे की किलकारियों से तो गूंजेगा और कोई मुझे बांझ कहकर ताना भी नही देगा।
वे दोनों उस बच्ची का नाम गीता रखते हैं।समय बीतता जाता है। शुरुआती कुछ वर्षों में तो नंदी और उनकी रिद्धि उस बच्ची को बड़ा स्नेह प्यार से पालते रहे ।पर कुछ वर्ष बाद नंदी व रिद्धि का अपना एक लड़का हुआ। जिसका नाम गणेश रखा गया। घर में लड़के के आने के साथ रिद्धि के द्वारा बेटी गीता के साथ सौतेला व्यवहार किया जाने लगा। उसके पिता नंदी तो बेटी गीता से बड़ा प्यार करते थे पर माता का व्यवहार बेटे को जन्म देने के पश्चात सौतेली बेटी के प्रति रूखा हो गया।
गीता के दिन मां रिद्धि का ताना सुनते हुए, बड़े ही दुख से काट रहे थे । पर गीत बिना कुछ कहे घर के सारे काम काज में रिद्धि का हांथ बंटाती थी । जिससे रिद्धि को बड़ी राहत मिला करती, फिर भी रिद्धि गीता के प्रति सौतेला व्यवहार दिखाने से बाज नहीं आती थी और बात बात पर गीता को ताने मारकर उसे दुखी करती रहती थी। गीता जैसे जैसे बड़ी होती गई,उसके अंदर भगवान् शिव के प्रति भक्ति भावना जागृत होती गई।
गीता हर वर्ष शिवरात्रि का सावन सोमवारी का व्रत रखने लगी।
एक दिन घर पर पूजा करने के लिए गीता भगवान् शिव की फोटो ले आई। यह देख कर रिद्धि ने ने गीता को बहुत डांटा
रिद्धि - गीता तुम दिनभर यह क्या शिव जी की पूजा करती रहती हो, तुम्हे और कोई काम काज नहीं है, क्या ?
गीता - माँ मैं घर के सारे काम खत्म करके, बचे हुए समय में शिव जी की पूजा करती हूं। मेरे भक्ति से किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, बल्कि इस घर में लाभ और बरकत होगी । इस बात पर रिद्धि आग बबूला हो जाती है। और रात के अंधेरे में अपने बेटे के साथ जाकर शिव जी की तस्वीर को नदी में बहा देती है।
दूसरे दिन गीता शिव जी की तस्वीर को पूजा स्थान में ना पाकर बड़ी दुखी होती है। और वह समझ जाती है, की यह काम उसकी सौतेली मां रिद्धि का ही है। पर गीता उन्हें एक शब्द कहने का साहस नहीं जुटा सकती।
कुछ दिन बाद शिवरात्रि का दिन आता है। गीता उस दिन व्रत रखी होती है।
गीता शिव जी से - हे भोलेनाथ , मैं हर वर्ष आपकी उपासना करती हूं। व्रत रखती हूँ , मैंने आजतक आपसे कुछ नहीं मांगा, पर आज आपसे मांगती हूं। आप मुझे मेरे जन्म दाता मां से मिलवा दो उनसे मिलकर मैं पूछना चाहती हूं, की आखिर क्यों उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया।
तभी रिद्धि गीता को पुकारती है।
रिद्धि - गीता, ओ गीता, गीता "अरे कहां मर गई' जरा इधर तो आ, क्या कर रही है ? ले जल्दी से जाकर यह सारा अनाज चक्की में पीस दे।
गीता उपवास की वजह से कमजोर हुई पड़ी थी। पर उसमे जितनी शारीरिक कमजोरी थी। उपासना की वजह से गीता में उतनी मानसिक शक्ति भी थी। तब शारीरिक कमजोरी के बावजूद गीता ने वह सारा अनाज अपने हाथों से घर पर पड़ी चक्की में पीस दिया।
गीता यूं ही मन को बहलाने नदी किनारे पुल के नीचे जाकर बैठ गई। जहां वह अक्सर जाकर बैठा करती थी। जब जब उसको अपने जन्म दाता मां की याद सताती थी। जब वह वहां से वापस घर लौट रही थी तब रास्ते में चौराहे पर उसे एक बूढ़ी माता रोती हुई बैठी नजर आई। गीता उनके रोने की आवाज सुनकर उनके करीब गई, माता से पूछा
गीता - ओ माता जी क्या हुआ क्यों रो रही हो आप ? क्या तकलीफ है आपको ?
बूढ़ी माता - बेटी मेरे पति के गुजरने के बाद मेरे बेटे ने मुझे घर से बाहर कर दिया है। अब मेरे पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है।
गीता - सुनिए ऐसी बात है तो आज की रात आप मेरे घर बिता सकती हैं। कल जब आपके बेटे का गुस्सा ठंडा हो जायेगा। तो वह खुद ही आपको वापस रख लेगा।
गीता उन बूढ़ी माता को लेकर अपने घर आती है। जैसे ही वह घर पहुंचती है दरवाजा खटखटाती है। रिद्धि दरवाजा खोलती है। क्या देखती है की गीता एक बूढ़ी औरत के साथ सामने खड़ी होती है।
रिद्धि - गीता क्या तुझे तेरी मां मिल गई क्या, जो उसे उठाकर यहां ले आई। गीता के आंखों के आंसू आ जाते हैं।
गीता - हां मिल ही गई समझिए।
गीता घर के अंदर आकर रिद्धि से सारी बातें बतलाती है। बहुत मनाने के बाद रिद्धि उस बूढ़ी माता को एक रात घर पर रखने के लिए मान जाती है।
दूसरे दिन गीता घर पर सुबह सुबह एक मिट्टी का शिवलिंग बनाती है। और उसका जलाभिषेक कर पूजा अर्चना करती रहती है। उसी वक्त उसकी मां रिद्धि वहां आ जाती है। गीता को बहुत फटकार लगाने लगती है।
रिद्धि - गीता हम ठहरे मछली मारने वाले मछवारे, यह पूजा पाठ करते अगर जमाना देख लेगा तो हमारे बारे में क्या सोचेगा । और ऐसा कहकर मिट्टी की बनी शिवलिंग को उठाकर रिद्धि नदी में बहा आती है।
यह सब सामने खड़ी बूढ़ी मां देख रही होती है।
बूढ़ी मां - गीता तुम्हारी मां तुम्हारे साथ इतना सौतेला व्यवहार क्यों करती है। तुम तो बड़ी गुणवान, संस्कारित बच्ची हो फिर ऐसा क्यों ?
गीता का गला भर आता है।
गीता - क्योंकि मैं उनकी सौतेली बेटी हूं इसलिए
बस इतनी से बात कहकर गीता घर से दौड़ती हुई बाहर चली जाती है। और वापस नदी किनारे पुल के नीचे जाकर रोने लगती है।
इधर रिद्धि शिव की प्रतिमा नदी में बहाकर जैसे ही घर पहुंचती है। अचानक चक्कर खाकर गिर पड़ती है।
बूढ़ी मां - क्या हुआ बहन जी, अरे देखो जरा कोई घर पर है क्या , इधर आओ सभी, देखो इनको क्या हो गया।
रिद्धि का बेटा गणेश तुरंत कमरे से बाहर आकर देखता है की रिद्धि जमीन पर मुर्झित पड़ी होती है। बूढ़ी माँ गणेश को लेकर तुरंत ही वैध जी के घर पहुंच जाती है। वैध जी उसी समय जरूरी काम से किसी दूसरे गांव जा रहे होते हैं ।पर बूढ़ी मां बड़ी ही विनती कर उन्हे रिद्धि के घर ले आती है।
इधर गीता भी घर आ चुकी होती है और रिद्धि मां के करीब रोती हुई बैठी रहती है।
वैध जी रिद्धि की नब्ज देख कर, दवाइयां देने के लिए रिद्धि के छोटे बेटे गणेश को अपने घर साथ लेकर जाते हैं।
वैध जी - सुनो बेटा गणेश यह दवाइयां समय पर अपनी मां को खिलाना। और यह तेल उनके सर पर तीन बार लगा देना। इधर गीता के पिता नंदी भी घर पर आ चुके थे और बड़े ही चिंतित थे की ना जाने अब क्या होगा। रिद्धि को अब तक होश नहीं आया था ।
गीता शिव जी की भक्ति में लीन होकर मां रिद्धि के लिए प्रार्थना कर रही थी। भोलेनाथ गीता की भक्ति से प्रसन्न होकर रात्रि गीता के सपने में आकर उसे दो वरदान देते हैं।
सुबह उठते ही पहली मनो कामना मां की स्वस्थ्य होने की पूरी हो जाती है। उनका बेटा सारी बातें मां रिद्धि को बतलाता है की किस तरह से बूढ़ी मां ने उनकी मदद की और किस तरह गीता ने शिव की उपासना से उनको बचा लिया और वह बिल्कुल ठीक हो उठी।
रिद्धि का बड़ा पछतावा होता है और वः फुट फुटकर रोते हुवे कहती है।
रिद्धि - मुझे माफ कर देना गीता बेटी, मेरे बेटे गणेश के जन्म के बाद से मैं पुत्र मोह में अंधी हो गई थी। और तुम्हारे साथ सौतेला व्यवहार करने लगी थी। आज तुम्हारे शिवभक्ति की वजह से मेरी जान बची और मेरे जान बचाने के निमित बनी इस बूढ़ी मां जिसको मैं इस घर में प्रवेश तक नहीं होने दे रही थी वह मेरे जान बचाने का कारण बनी।
मैं शिव जी से अपने गुनाहों की प्रायश्चित करना चाहती हूं। वादा करती हूं की खुद में परिवर्तन लाऊंगी। मैं तुझे हर रोज नदी किनारे पुल के नीचे टोकरी में मिलने का ताना देती रही इसके लिए मुझे माफ कर दे बेटी तू मेरी सौतेली नहीं बल्कि मेरी अपनी बेटी से बढ़कर है।
यह सब बातें बूढ़ी माता वहीं पास खड़ी हो सुन रही थी और अचानक कह उठती है।
बूढ़ी मां - क्या जब तुम इस बच्ची को नदी किनारे पाए थे तो जिस टोकरे के अंदर यह रखी हुई थी उस टोकरे को कम्बल से ढका गया था। क्या इसके गले में शिव जी का एक लॉकेट था।
गीता अपने गले में पहने लॉकेट को बूढ़ी मां को दिखलाती है। क्या यही वह लॉकेट है।
बूढ़ी मां_{फुट फूट कर रोते हुवे } - हे भगवान मुझे मेरे गलतियों के लिए क्षमा कर देना।
गीता चिंतित होकर पूछने लगती है।
गीता - क्या हुआ माजी क्या आपको आपके बेटे की याद आ गई। तब बूढ़ी मां गीता से कहती है। की बेटे की नहीं बेटी की याद आ गई।
आज से उन्नीस साल पहले मेरे पति जब शराब की लत से ग्रसित होकर अपनी ही दूध पीती बेटी का सौदा किसी से कर दिए थे। तब अपनी बेटी को किसी के हाथों बेचने से बचाने के लिए उसे नदी के पास वाले पुल के नीचे एक टोकरे में कंबल से ढंक कर रात के अंधेरे में छोड़ आई थी। मैं ही वह अभागान मां हूं जिसने अपनी ही दुधपिती बच्ची को अपने से अलग कर दिया पर ऐसा मैंने तुम्हे बिकने से बचाने के लिए किया था बेटी।
इस बात को सुनते ही गीता को रात्रि सपने में आए शिव जी के दो वरदान याद आ जाते हैं। शिव जी ने सपने में आकर उससे कहा था की एक तो तुम्हारी बीमार मां ठीक हो जायेगी। दूसरा तुम्हारी बिछड़ी हुई मां तुमसे मिल जायेगी। और आज वह दिन था जब उसकी दोनों मां उसके सामने खड़ी थी। और उसे दिल से गले लगा रही थी
गीता के आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे और वह शिव जी का धन्यवाद देते हुवे बोल उठी की
गीता - वाह भगवन मैंने तो अपनी पुरानी मां से महज एक बार मिलने की गुजारिश की थी आपने तो मुझे दो दो माताएं दे दी मैं कितनी शौभाग्यशाली हूं। शुक्रिया शिव जी
दोस्तों इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है। की हमारे निस्वार्थ भक्ति करती रहनी चाहिए। शिव जी खुद ही हमारे मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। और हमारी विपरीत परिस्थितियों में हमे मनोबल देते हैं। भक्ति का फल एक ना एक दिन मिलता ही है।
अच्छा ॐ नमः शिवाय