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मेरे दो जीवन साथी

15 सितम्बर 2022

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24 जनवरी सन 2011 को हमारा विवाह संपन्न हुआ । उस वक़्त बेंगलुरु शहर में मैं फार्मास्यूटिकल कंपनी में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव का जॉब किया करता था जॉब के दौरान में अल्कोहल का शिकार हो चुका था वैसे तो शराब का स्वाद मैं सन 2004 में सेकंड ईयर में कॉलेज लाइफ में ही चख चुका था । पर जब 2008 में जीवन में समस्याओं नें घेरा जब ब्रेकअप उपरांत दिल टूटा तब शराब को ही तन्हाई का एकांत का सहारा बना लिया और शराब की लत ने मुझे आंतरिक रुप से खोखला बना दिया था शराब की आदत मेरे तन को मन को धन को संबंध संपर्क को बर्बाद करती जा रही थी । अल्कोहल एडिक्शन मेरे पर्सनल और प्रोफेशनल जीवन दोनों को प्रभावित करने लगा था मुझे लगा इसे छोड़ना तो बिल्कुल आसान है और फिजिकल एक्सरसाइज वाली योगा के माध्यम से 6 महीने के लिए अल्कोहल की लत से छुटकारा भी मिला था पर जब जीवन मैं पुनः कोई समस्या नें घेरा तो व्यसन को मैं फिर से एक सहारा बना लिया । शराब की लत इंसान के चरित्र को व्यक्तित्व को आंतरिक रूप से खोखला करती जाती है शराब केवल तन को ह8 बर्बाद नही करता तन के साथ साथ शराब मन को भी कमजोर बना देता है सनकी बना देता है क्रोधी, चिड़चिड़ा बना देता है । आजकल शराब की या व्यसन पदार्थों की लत को पूरा करने के लिए यूथ्स विभिन्न तरह के क्राइम कर रहे हैं जो कि आप खुद समाचारों के माध्यम से देख व सुन रहे होंगे
गहराई से समझा जाए तो कोई भी व्यक्ति व्यसन तब करता है जब वह मानसिक रूप से कमजोर होता है । उसमें maturity नहीं होती उसमें परिपक्वता नहीं होती उसमें प्रॉब्लम का सामना करने की शक्ति नहीं होती और अपने जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थितियों का समस्याओं का विघ्नों का प्रॉब्लम्स का सिचुएशन का सामना कर समाधान नहीं कर पाता तो वह परिस्थितियों से विघ्नों से समस्याओं से सिचुएशन से भागने की कोशिश करता है और विभिन्न तरह के व्यसन के पदार्थों का सहारा लेकर अपने मन को शांत करने की कोशिश करता है क्योंकि समस्याओं के कारण मन में हलचल उत्पन्न हो जाती है और इस हलचल को शांत करने के लिए मनुष्य विभिन्न तरह के व्यसन से संबंधित पदार्थों का सहारा लेता है पर यह क्षणिक शांति प्रदान करने वाले पदार्थ का मनुष्य धीरे-धीरे आदि बनता जाता है और जब कभी जीवन में उसे समस्याएं घेरती है तो वह उसी व्यसन से संबंधित पदार्थों का सहारा लेकर अपने आप को समस्याओं से दूर करने की कोशिश करता है परंतु क्षणिक शांति के पश्चात जब नशा उतरता है तो समस्याएं परिस्थिति, विघ्न, प्रॉब्लम यथावत बनी ही रहती है क्योंकि समस्याएं तो ज्यों की त्यों ही रहती है । शराब पीने से या फिर किसी भी प्रकार के व्यसन को सहारा बनाने से समस्याओं में कोई परिवर्तन नहीं होता बल्कि समस्याएं तो जीवन में यथावत ज्यों की त्यों ही बनी रहती है ।
इस लत से परेशान होकर मैं बैंगलोर की नौकरी छोड़ कर अपने घर छत्तीसगढ़ कोरबा में आ गया यह सोच कर कि हो सकता है शायद घर से दूर रहने की वजह से मन में खोखलापन महसूस हो रहा हो या फिर अकेलेपन की वजह से मैं शराब का सहारा ले रहा हूं । ऐसा मुझे लगा कि मैं जब बेंगलुरु शहर छोड़ कर वापस छत्तीसगढ़ अपने कोरबा शहर में अपने माता पिता और परिवार वालों के साथ रहूंगा तो हो सकता है मेरा यह शराब का आदत छूट जाएगा चूंकि वहां बैंगलोर में मुझे नियंत्रण में रखने वाला कोई नहीं था और मन शराब की वजह से खुद आउट ऑफ कंट्रोल हो चुका था । तो जो मन खुद आउट ऑफ कंट्रोल हो जो मन खुद आदतों का गुलाम हो वह जीवन को संतुलित तरीके से कैसे जी सकेगा ।
बैंगलोर से वापस जब अपने घर पर आया तब मेरी हालत बहुत ही खराब थी लगातार शराब पीने की वजह से शारीरिक रूप से बिल्कुल कमजोर दुबला पतला हो चुका था वहीं मानसिक रूप से बिल्कुल कमजोर हो चुका था आर्थिक रूप से भी टूट चुका था अपने संबंध संपर्क सबसे खराब कर चुका था घर आकर कुछ दिन तो बिना पिये रहा ठीक ठाक रहा तदुपरांत जब पुनः किसी अन्य कार्य को करने लगा और जब वहां से तनख्वाह मिलनी शुरू हुई तो शराब पीना पुनः शुरू हो । मेरी इस आदत से परेशान होकर घरवाले मुझे लेकर अलग-अलग स्थानों में जाने लगे कभी किसी बाबा के पास कभी किसी हो बाबा के पास कभी किसी मजहार में कभी किसी मंदिरों में कभी किसी झाड़-फूंक वाले के पास कभी किसी मनोरोग चिकित्सक के पास कभी किसी फिजीशियन के पास कभी किसी जड़ी बूटी वालों के पास कभी किसी चर्च में इस तरह से उन सारे जगहों पर घर वालों ने मुझे लेजकर मुझे व्यसनमुक्त बनाने की भरपूर कोशिश की जहां से उन्हें संभावना लगी कि हां यहां कुछ सुधार आ सकता है ।
पर अंततः निरासा ही हाँथ लगी । फिर एक दिन किसी नें ब्रह्माकुमारीज संस्था के बारे में बतलाया और अंतिम आस लेकर मेरी माता जी मुझे नजदीकी ब्रह्माकुमारीज आश्रम लेकर पहुंची जहां सफेद वस्त्र पहने हुवे कुछ बहनों से मुलाकात हुई उन्होंने मुझे सात दिन तक लगातार ब्रह्माकुमारीज संस्था एक एक घण्टे आकर सात दिवसीय राजयोगा कोर्स करने को कहा । मन में तो दिली इक्षा मुझे भी थी कि किसी तरह यह लत मुझसे छूट जाए इसलिए जहां कहीं परिजन मुझे लेकर जाते मैं संग संग चला जाता । शुरुवात मे तो मुझे बड़ा अटपटा लगा कि भला यह सफेद वस्त्रधाधारी बहनें मेरा शराब का लत कैसे छुड़वाएँगी । फिर दूसरे दिनसे मैं सात दिवसीय कोर्स करने सुबह सुबह नजदीकी राजयोगा सेवा केंद्र (ब्रह्माकुमारीज संस्था के सेंटर) पहुंचा वहां पर बहनें चित्रों के माध्यम से मुझे खुद की पहचान बतलाईं मुझे बतलाया गया कि आप यह शरीर नहीं बल्कि शरीर को चलाने वाली चैतन्य ज्योति बिंदु आत्मा हैं और आत्मा की सूक्ष्म इंद्रियां होती हैं मन बुद्धि व संस्कार (आदत) और संस्कारों में मतलब आदतों में परिवर्तन का दुनियां में एक ही मार्ग है वह है आध्यात्मिक ज्ञान, परमात्म ज्ञान द्वारा मानसिक शशक्तिकरण, आत्मिक शक्तियों को जागृत करने के लिए योग, मेडिटेशन जिसके माध्यम से आत्मा को परमात्मा से कनेक्ट कर डिस्चार्ज बैटरी रूपी आत्मा को चार्ज कर पॉवरफुल बनाया जा सकता है । वर्तमान समय कलयुग अंत का समय है जब प्रत्येक के जीवन में विभिन्न तरह के प्रॉब्लम घेरे हुवे हैं । और प्रॉब्लम की जड़ खुद के संस्कार हैं आदत हैं । और आदतों को बदलने से धीरे धीरे उन आदतों की वजह से पनपी प्रॉब्लम भी खत्म होती जाती है । आत्मिक शक्तियों की जागृति से मन शक्तिशाली बनता जाता है । बुद्धि सहीं व सटीक निर्णय लेने लगती है । क्योकि परमात्मा के ज्ञान से मन बुद्धि की सफाई होती है । हम जो सुनते हैं देखते हैं पढ़ते हैं जैसी संगत हम करते हैं वैसा हम बनते हैं । आत्मज्ञान के साथ साथ मुझे आत्मा के पिता परमात्मा का भी यथार्थ परिचय दिया गया । जिससे की मैं आत्मा अपने पिता परमात्मा से मेडिटेशन के माध्यम से कनेक्ट होकर गुणवान बन सकूं आत्मिक शक्तियों को जागृत कर पॉवरफुल बन सकूं ।
सात दि
पर आदत भी तो लंबे समय की थी और आदत को बदलने में समय तो लगता है वैसे सात दिवसीय कोर्स उपरांत आंतरिक परिवर्तन होने शुरू हो गए थे फिर मैं कभी कभी परमात्म ज्ञान सुनने नजदीकी राजयोगा सेवा केंद्र ( ब्रह्माकुमारीज आश्रम )जाने लगा धीरे धीरे जितना मैं सत्संग मतलब परमात्मा द्वारा उच्चारे हुवे सत्य स्वरूप महावाक्यों को सुनने लगा तो संग का रंग लगना भी शुरू हुआ फिर ऐसे करते कब मैं व्यसनमुक्त हुआ इस बात का मुझे एहसास तक नहीं हुआ इस ज्ञान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हमें अपने आदतों को बदलने पर अटेंशन नहीं देता पड़ता क्योकि जितना हम अपने नेगेटिव आदतों से लड़ेंगे वह आदतें हम पर उतनी हावी होती जाएगी और आदतों से लड़ना छोड़कर जितना हम अपना ध्यान परमात्मा के महवाक्यों को सुनने में समझने में मनन करने में धारण करने में लगाते हैं उतना हम नेगेटिविटी से दूर होते जाते हैं । जितना हम परमात्मा से योग के माध्यम से जुड़कर आत्मा रूपी बैटरी को चार्ज करते जाते हैं । उतना हमारी आत्मिक आंतरिक शक्तियों का विकास होता जाता है उतना हम भरपूर गुणवान बनते जाते हैं । और धीरे धीरे बुराइयां हमसे स्वतः ही दूर होती जाती हैं ।
जिस तरह जब हम एक गिलास में गंदा पानी रखकर एक टेप नल के नीचे उस गिलास को रख दें और टेप नल का पानी चालू कर दें तो जब टेप नल का पानी उस गिलास में निरंतर गिरता जाता है तो गिलास का सारा गन्दा पानी अपने आप बाहर आ जाता है और गिलास के अंदर स्वच्छ जल भर जाता है उसी प्रकार जब हम परमात्मा से योग लगाते हैं और उनसे निरंतर परमात्मा महावाक्यों को सुनते हैं हमारी मन में जब लगातार सकारात्मक विचार दिए जाते हैं तो अंततः अंतर्मन में दबे हुए नकारात्मक संस्कार परिवर्तित होते जाते हैं । रूपांतरित होते जाते हैं । जब संस्कार या आदत बदलते हैं तो उन संस्कारों या आदतों से संबंधित विचार भी उत्पन्न होने बंद हो जाते हैं और जब विचार ही उत्पन्न नहीं होते तो फिर कर्म में वह क्रिया दिखलाई नहीं देती
माना अगर किसी को शराब के संस्कार हैं तो योग की अग्नि के माध्यम से शराब के संस्कार को पिघाला जाता है फिर परमात्म ज्ञान रूपी सांचे के माध्यम से उस संस्कार को रूपांतरित कर नए रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है जिस तरह एक सोना को जब अग्नि में डाला जाता है उसके पश्चात उसे जिए रूप में ढालना चाहें उस प्रकार के साँचें में डालकर उसे नया रूप दे दिया जाता है । उसी प्रकार मनुष्य आत्मा के संस्कार या आदतों को योग की अग्नि से पिघाला जाता है फिर परमात्मा ज्ञान रूपी सांचे में डालकर उसे मूर्त रूप प्रदान किया जाता है । तो इस दौरान ईश्वरीय शक्तियों के माध्यम से मुझ आत्मा के व्यसन रूपी नकारात्मक संस्कारों से मुझे सदा काल के लिए मुक्ति मिली और आज 5 वर्ष हो चुके आज मैं ना केवल शराब जैसे गंभीर एडिक्शन से पूर्णतया बाहर निकल चुका हूं बल्कि इसके अलावा शराब के साथ साथ मुझे सिगरेट, तंबाकू, गुटका, गुड़ाकु इत्यादि विभिन्न तरह के नशीली पदार्थों की भी लत लग चुकी थी और अब मैं शराब के साथ साथ इन सारी तरह की नशीली पदार्थों से पूर्णतया व्यसन मुक्त बन चुका हूं ।
हां मुझमें जो कुछ भी आंतरिक परिवर्तन हुवे हैं वह ईश्वरीय शक्तियों के माध्यम से हुवे हैं वह ब्रह्माकुमारीज संस्था के द्धारा प्रदत ज्ञान व योग के माध्यम से हुवे हैं । पर मुझे बदलने के पीछे एक ही वजह थी वह आप हो परमात्मा नें अगर आपको निमित्त बना मेरे जीवन में नहीं भेजा होता तो शायद मैं अपने आप को बदलने के लिए हिम्मत का एक कदम आगे नहीं बढ़ाता । उस अवस्था में भी आपने मेरा साथ दिया । सचमुच आप एक अच्छी पत्नी साबित हुई । आजकल तो जब पति के जीवन में विपरीत परिस्थिति आती है तो कई पत्नियां तो साथ छोड़कर चली जाती हैं । आपकी सहन सिलता की शक्ति को नमन है । नमन है आपके धैयता की शक्ति को नमन है आपके स्नेह को जिसके सामने मेरे अंतर्मन के व्यसन रूपी आसुरी आदतें नतमस्तक होकर मुझे मुक्ति मिली और आज मैं इन व्यसन से स्वतंत्र हो चुका हूं अब मुझे इन पदार्थोंकी निर्भरता नहीं । बल्कि अब तो सबसे बड़ा वाला नशा करने लगा हूँ और वह नशा है ईश्वरीय नशा वह नशा है नारायणी नशा, पिछले जन्म में बहोत ही पुण्य का कार्य किया होऊंगा जो आप जैसी धैर्यवान, सहन शील इतना आत्मिक स्नेह रखने वाली जीवन संगिनी मुझे मिली । अगर मैं लव मैरिज किया होता तप निश्चित ही आज मेरा जीवन नरक बन चुका होता क्योकि जिससे लव मैरिज करने वाला था वह मुझसे ब्रेकप उपरांत अपने पति के साथ भी नहीं टिकी यहां तक कि अपने दूसरे पति के साथ भी उसकी नहीं बनती मैं तो बच गया ऐसे के साथ विवाह करके तो मेरा जीवन ही नरक बन जाता । सचमुच सुंदर चेहरे के साथ सीरत अर्थात चरित्र व्यक्तित्व का भी सुंदर होना अत्यंत ही आवश्यक है । एक आइडियल पत्नी के रूप में आप मेरे जीवन में आई उसके पहले तक मुझे यह अंदाजा ही नहीं था कि आखिरकार पत्नी होनी कैसी चाहिए । पर आपके समर्पण भाव को त्याग की भावना को देखकर आपकी सहन करने की शक्ति को देखकर आपके रियल आत्मिक स्नेह को देखकर मुझे यह अहसास हुआ कि एक आइडियल पत्नी बिल्कुल आपकी तरह होनी चाहिए । आप एक अच्छी पत्नी के साथ एक अच्छी मां भी हो, एक अच्छी बेटी भी हो एक अच्छी बहन भी हो आपके सारे रूपों का साक्षात्कार इन 11 वर्षों में मुझे हो चुका । आप ऊंच नीच अमीरी गरीबी हर परिस्थिति में मेरे साथ रही । अपने हर अरमानों को कुचलकर मुझे खुश रखने का प्रयास करती रहीं वहीं बच्चों की पालना में तो आप मां बाप दोनों के बराबर बनकर पालना खुद ही कर लेती हैं । अन्य पत्नियों को टेंशन में देखकर उनके पति भी टेंशन में आ जाते हैं । मगर विपरीत परिस्थितियों में भी आपकी धैर्यता की शक्ति की वजह से आपके चेहरे में एक सिकन तक नहीं आता । और आपको निश्चिन्त देखकर मैं भी निश्चिन्त हो जाता हूँ और वह विपरीत परिस्थिति हंसते खेलते कब पार हो जाता है पता ही नहीं चलता । अभी किसी बड़े घर की अमीर घर की युवती से विवाह किया होता या उसी लड़की से लव मैरिज किया होता तो वह लोग कब का मेरा साथ छोड़कर नौ दो ग्यारह हो चुके होते वैसे अब तो मेरे दो दो जीवन साथी हैं एक मेरी अर्धांगनी नेहा दूसरा स्वयं परमपिता परमात्मा शिव जो हर कदम मेरे साथ रहते हैं मुझे बाप के रूप में पालना देते मुझे शिक्षक के रूप में जीवन जीना सिखलाते मुझे सद्गुरु के रूप में दुवाओ से भरपूर करते हैं
मुझे याद आता है वह समय है जब अत्याधिक शराब की सेवन की वजह से मेरे कंठ में लकवा मार गया था और ऐसे वक्त पर भी आप मेरे साथ रहे मेरी सेवा किये । जब मेरा मेडिकल स्टोर का बिजनेस खत्म हुआ ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी आपने मेरा साथ दिया यहां तक कि जब बेंगलुरु की नौकरी छोड़कर वापस कोरबा छत्तीसगढ़ आया तब भी नौकरी ना होने के बावजूद भी आप मेरे साथ रहे इस दौरान मैंने शराब की लत की वजह से कई नौकरियां छोडी पर आप उन हर परिस्थितियों में मेरा साथ निभाते रहे मेरी आदतों को सहते रहे मुझे समय पर खाना खिलाते रहे मेरे कपड़े धोते रहे घर की सफाई करते रहे  आपकी यह कि उम्मीद की एक ना एक दिन मैं बदल जाऊंगा । आपका वह विश्वास मुझे आत्मबल प्रदान करता रहा कि हां मैं बदल सकता हूँ आपकी उम्मीद मेरे लिए प्रेरणा का काम करती थी मेरा मनोबल बढ़ाती थी मुझे एहसास दिलाती थी कि मैं अकेला नहीं हूं । यहां आज की तारीख में पति की नौकरी छूट पति कंगाल हो जाए रोगग्रस्त जाए शराबी बन जाये तो उन्हें उन हालातों में छोड़कर अक्सर आज की पत्नियां भाग जाया करती हैं । पर आप विपरीत परिस्थिति में सिलाई करके भी घर चलाती रहीं । मैं जब शराब के आदत रूपी अंधकार में बेहोश था तब मुझे होस में लाने की निरंतर कोसीस करती रहीं । यह आपके निरंतर किए गए प्रयासों का ही परिणाम है जो आज मैं पूर्णतया व्यसनमुक्त बन आपके समक्ष आपके साथ एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा हूं । अब तो दो बच्चे भी हो गए हैं । बेटे का नाम लव और बिटिया का नाम जाह्नवी है । व्यसन मुक्ति तो हो चुका अब अपने अंतर्मन के सूक्ष्म से भी सूक्ष्म नकारात्मक संस्कारों को योग व ज्ञान के माध्यम से खुद से अलग कर पॉजिटिव सद्गुणों को धारण करने का पुरुषार्थ निरंतर जारी है । अब तो अच्छे से हर ली गई जिम्मेदारी को निभाता हूं । ड्यूटी पूरी ईमानदारी के साथ करता हूँ । अब धन को व्यर्थ खर्च नहीं करता बल्कि एक एक रूपया सहीं जगह लगता है । अपने अपनी कमाई से संतुष्ठ रहता हूँ व साथ ही भविष्य सुनहरा बनाने हेतु जी तोड़ मेहनत भी करता हूँ। राजयोगा के अभ्यास से संस्कारों में निरंतर परिवर्तन जारी है । अब मेरा मन पहले की अपेक्षा बहोत ही शांत चित्त बन चुका है । अब स्थिर मन से जीवन में आई हर समस्या का समाधान स्वयं ही कर लेता हूं । अब ड्राइविंग करते वक़्त मन नहीं चिड़चिड़ाता अन्यथा पहले तो ड्राइविंग के दौरान मन एकदम चिड़चिड़ा जाता था । अब दूसरों की नहीं बल्कि खुद की कमियां देखकर उसे खुद से अलग करने का पुरुषार्थ करता हूँ । अब बिल्कुल आत्मनिर्भर बन चुका हूं जब तक व्यसनी था । तब तक किसी ना किसी पर निर्भर रह परजीवी की तरह जीवन व्यतीत करता था । अब खुद दूसरों का सहारा बन जाता हूँ । अब जीवन मे पारदर्शिता है सच्चाई है । मन बुद्धि में व्यर्थ के संकल्पों में अभूतपूर्व गिरावट आई है । जिससे स्ट्रेस खत्म हो गया और जीवन बिल्कुल निश्चिन्तता से भरपूर बन गया । अब कर्म कर फल की इक्षा नहीं रखता । अब मैं वह बनने की मेहनत नहीं करता जो पहले बनना चाहता तहस बल्कि अब बन कर दिखलाना है जोस्वयं भगवान मुझे तराशकर बना रहे हैं । अब जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव से नहीं घबराता, अब भरपूर नींद लेता हूँ अनिद्रा की शिकायत भी दूर हो गई । सत्यता के रास्ते मे चलने से मन निर्भय बनता जा रहा है । भगवान के बतलाये मार्ग को श्रीमत को कर्म में अप्लाई कर जीवन जीने से कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ता जा रहा है । अब किसी तरह की अनहोनी का भय नहीं किसी तरह की अनिश्चितता मन को उटन्स नहीं हिलाती । पहले मेरी व्यसन की लत की वजह से मुझे नौकरी से बेदखल कर दिया जाता था। अब मेरे आंतरिक गुणों के बलबूते मुझे नौकरी मिलती है । और मैं पूरी तन्मयता के साथ वह कार्य कर दिखलाता हूं । अब तो जरूरत पड़ने पर घर की साफ सफाई टक्कर लेता हूँ जरूरत पड़ने पर घर पर खाने भी बना लेता हूँ । जरूरत पड़ने पर घर पर बर्तन कपड़े भी धो लेता हूँ।
सचमुच नारी चाहे तो मर्द के जीवन को स्वर्ग बना दे और वहीं अगर नारी चाहे तो किसी के जीवन को नरक से बदतर भी बना सकती हैं । जिससे सुंदरता के आकर्षण में मुझे प्यार हुआ उसने मेरे जीवन को नरक बना दिया तो आपके सहन सिलता, धैर्यता, आत्मिक स्नेह रूपी अन्तरिक गुणों की सुंदरता नें उस नरक समान जीवन को स्वर्ग बना दिया ।सचमुच नारी चाहे तो मर्द के जीवन को स्वर्ग बना दे और वहीं अगर नारी चाहे तो किसी के जीवन को नरक से बदतर भी बना सकती हैं । जिससे सुंदरता के आकर्षण में मुझे प्यार हुआ उसने मेरे जीवन को नरक बना दिया तो आपके सहन सिलता, धैर्यता, आत्मिक स्नेह रूपी अन्तरिक गुणों की सुंदरता नें उस नरक समान जीवन को स्वर्ग बना दिया ।
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