पहले जब मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव का जॉब किया करता था तो एक दिन में 10 से 12 डॉक्टरों से मिलने व एक दिन में ही 6 से 8 दवाई दुकान वालों से मिलने के लिए कंपनी इंस्ट्रक्शन दिया करती थी पर घर मे शराब पीकर एकांत पड़े रहना और फर्जी रिपोर्टिंग कर देना की मैंने आज इतने डॉक्टर व इतने मेडिकल स्टोर वालों से मुलाकात की, मैनेजर का जब कभी कॉल आता तो जवाब में 99.99 परसेंट झूठ ही मुख से निकलता था। झूठ बोलने से आत्मा की शक्ति घटती है । और एक झूठ को दबाने के लिए इतने अनेकों झूठ उसके ऊपर बोलने पड़ते थे । जिसकी वजह से जुबान ही झूठी बन चुकी थी और झुठापन रिश्तों में व अन्य स्थानों पर बात व्यवहार में रिफ्लेक्ट होता था ।
राजयोगा की प्रैक्टिस से आत्मिक सत्यता की शक्ति की जागृती होती है । सत्यता के संस्कार जागृत होने से हम जब सत्य सोचने बोलने करने लगते हैं तो इससे आत्मिक शक्ति बढ़ती है । जिससे मनोबल बढ़ता है । सत्यता की शक्ति से संकल्पों में दृणता आती है ।जब संकल्प ही दृण होंगे तो सफलता भी निश्चित होती है । क्योकि सफलता व असफलता का परसेंटेज हमारे संकल्प की क्वालिटी पर निर्भर करता है ।
झूठ बोलने वालों का मनोबल कमजोर होता है जिसकी वजह से वह जीवन में आने वाले विपरीत परिस्थिति का सामना करने का साहस नहीं होता लेकिन जब सत्य सोचकर, बोलकर मन शशक्त बनता है । तब सत्यता की शक्ति के आधार पर वह कॉन्फिडेंस बात व्यावहार से झलकते हैं । झूठे व्यक्ति को कहीं ना कहीं यह भय होता है वह निर्भय जीवन नहीं जी पाता क्योकि उसकी आत्मा जानती है कि कब कहां किस वक़्त उसके झूठ की वजह से बने नेगेटिव कर्म के फल उसे मिल सकते हैं जिसकी वजह से उस आत्मा के मन में भय निरंतर बना रहता है । भय इस बात का भी की कहीं उसकी वास्तविकता लोगों के समक्ष एक्सपोज़ ना हो जाये ।
वर्तमान समय रावण राज कलयुग में झूठ का बोलबाला है जो सच बोलता या सच्चे कार्य करता उसकी कदर यह जमाना नहीं करता पर जमाने की परवाह कर जमाने को खुश रखने के लिए नेगेटिव सोच, बोल, कर्म करके जीवन जीना गलत है । क्योकि सब कुछ यहीं धरा का धरा रह जायेगा अगर हमारे साथ कुछ साथ जाएगा तो वह है हमारे कर्म संस्कार तो असली कमाई तो हमारे कर्म संस्कार होते हैं । और आज लोगों का ध्यान स्थूल कमाई पर तो है जो कि विनासी है और जो हमारे साथ कत्तई नहीं जाने वाला और अविनाशी कमाई पर किसी का ध्यान नहीं जो कि हमारे साथ जाने वाला है । मीनाक्षी कमाई है यह धन यह दौलत की गाड़ी यह बंगला कपड़े जेवर जमीन इत्यादि और अविनाशी कमाई है हमारे संस्कार
पांच वर्षों पूर्व जब जीवन में प्रॉब्लम आते थे तो खुद को प्रॉब्लम से अलग कर लेता था और मन को जब समस्या विचलित करती थी तो मन को क्षणिक शांति प्रदान करने के लिए व्यसन का सहारा लिया करता था । पहले ज्ञान का त्रिनेत्र ना होने से समस्या सब्जेक्ट की गुह्य ज्ञान ना होने की वजह से समस्या से भागा करता था । विवेक परिपक्व नहीं था । maturity ना होने से अनुभव ना होने से पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर को सटीक तरीके से ना देख पाने की वजह से मन में समस्या के दौरान घडबडाहट, बेचैनी बढ़ जाती थी ।
यह राजयोगा का अभ्यास ही है जिसके फलस्वरुप आज जब कभी मेरे जीवन में कोई प्रॉब्लम आती है । तो उस प्रॉब्लम परमात्मा द्वारा मिली नई समझ शक्ति से ज्ञान की नजर से साक्षी होकर देखने का प्रयास करता हूँ ।
अगर हम कहे कि मुझे गर्मी में गर्मी लग रही है ठंडी में ठंडी लग रही है बरसात में पानी गिर रहा है तो गर्मी में गर्मी, ठंडी में ठंडी और बरसात में पानी तो गिरेगा ही मगर फिर भी हमें जीवन तो जीना ही पड़ता है बिल्कुल उसी प्रकार जीवन में समस्याएं ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते रहेंगे पर हर परिस्थिति में अपने मन की स्थिति को ऊंचा रखना स्टेबल रखना ही सफल और परिपक्व व्यक्ति की निशानी है । प्रॉब्लम का काम है आना पर प्रॉब्लम हमारे पूर्व के कार्मिक एकाउंट के फलस्वरूप हमारे जीवन में आता है । जब हम इस बात को एक्सेप्ट करते हैं तो इससे परिस्थिति का सामना करने के लिए मन रेडी हो जाता है । और जब हम प्रॉब्लम की तरफ से अपना ध्यान सॉल्यूशन की तरफ लगाते हैं । तब हमें सॉल्यूशन भी नजर आने लगता है । राजयोगा कि अभ्यास से प्रॉब्लम का सामना करने की व समाधान करने की शक्ति मिलती है । साथ ही राजयोगा के अभ्यास से माइंड स्टेबल, पीसफुल व पॉवरफुल बनता है । फिर उस शांत, स्थिर व शक्तिशाली मन से हम अपने जीवन में आई हर प्रॉब्लम को फेस कर सॉल्यूशन निकालते हैं ।
परमात्मा कहते हैं महावीर वह होता है जो सदा निर्भर होता है । राजयोगा कि अभ्यास से निर्भयता की शक्ति मिलती है । और जब निर्भय होकर हम कोई युद्ध करते हैं तो निर्भयतापूर्वक युद्ध करने से विजय की प्राप्ति होती है ।
महावीर आत्माएं विजयी आत्माएं हर कदम में तन से मन से खुश रहते हैं वे कभी उदास नहीं होते क्योकि उनके पास नॉलेज रूपी त्रिनेत्र रहता है जिससे वह पास्ट प्रेजेंट व फ्यूचर तीनों कालों को देख सकते हैं । जो नाटक के राज को नहीं समझता वह उदास हो जाता है मगर जिसे यह पता हो कि जो घटित हो रहा है उसके पीछे कल्याण छुपा हुआ है । भले ड्रामा पर उसका नियंत्रण ना हो पर मन की स्थिति पर तो सम्पूर्ण नियंत्रण हो ।
प्रॉब्लम हमें अनुभवी, परिपक्व, मैच्युर बनाने आती है ।प्रॉब्लम हमें गुणवान बनाने आती है । प्रॉब्लम हमारी आंतरिक सोई हुई शक्तियों को जगाने आती है । प्रॉब्लम से डरने की नहीं बल्कि स्टेबल माइंड से सामाधान निकालने की जरूरत होती है । अक्सर जब जीवन में कोई प्रॉब्लम आता है तो लोगों का मन अस्थित हो जाता है और अस्थिर मन से प्रॉब्लम का सॉल्यूशन नजर नहीं आता लेकिन राजयोग के प्रैक्टिस से माइंड पीसफुल पावरफुल के साथ स्थिर भी बनता है और स्थिर मन से हम अपने जीवन में आने वाली हर प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकाल ही लेते हैं ।
आज बुढ़ापे में लोग लॉफिंग क्लास जॉइन किया करते हैं जिससे की जिंदगी के अंतिम क्षण तो हंसी खुशी बिता सकें
लेकिन जिंदगी जीते वक़्त अगर श्रीमत का पालन किया जाए तब तो बुढापा खुशहाल गुजरेगा । जीवन मे विकारों में डूबकर नेगेटिव कर्म कर बुढ़ापे में कितनी भी फीस देकर कोई सी भी लॉफिंग क्लास जॉइन कर ली जाए इससे खुशी नहीं मिल सकती क्योकि खुशी एक संस्कार है तो आत्मा में होती है और आत्मिक खुशी के संस्कार को जागृत करने के लिए योग के माध्यम से नेगेटिव कर्म को न्यूट्रिलाइज़ करना पड़ेगा उसके पश्चात खुसी के संस्कार को योग व ज्ञान के माध्यम से जागृत करना पड़ेगी तब ही सच्ची खुशी सच्चा सुख अनुभव कर सकेंगे इतना ही नहीं जब एक बार वह खुशी सुख के संस्कार जागृत हो जाते हैं तो फिर वह संस्कार कई जन्मों तक जागृत रहते हैं और हम खुशहाल जीवन आसानी से जी पाते हैं।
जब जिंदगी जीने का समय होता है तब मनमत के मुताबिक कर्म कर नेगेटिव कर्म कर जीवन जीते रहते हैं लोग और जब। नेगेटिव कर्म के फलस्वरूप तरह तरह की समस्याएं, बीमारियां जीवन को घेर लेती हैं तब चेहरे से मुस्कान गायब हो जाया करती है तो इसके पीछे वजह कार्मिक एकाउंट है । आज रिटायरमेंट उपरांत लोग भगवान को ढूंढने चारो धाम जाया करते हैं । भला भगवान मिल भी जाये तो क्या फायदा क्योकि भगवान जब मिलता है तब श्रीमत मतलब जीवन जीने का सहीं सर्वश्रेष्ठ तरीका ही सिखलाता है । और जीवन भर पूरी उम्र श्रीमत पर ना चलकर मनमत पर चले और अंत में भगवान की खोज करें तो फिर कोई फायदा नहीं । क्योकि जीवन ही नहीं बचा जिस समयकाल में श्रीमत का पालन कर श्रेष्ठ जीवन जी सकें और फलस्वरूप श्रेष्ठ फल भोग सकें ।
इसलिए भगवान को बुढापे में ढूंढने से बेहतर है कि सत्य ज्ञान लेकर यह जाने की सचमुच भगवान धरती पर आकर जीवन जीने का जो सहीं तरीका सिखला रहा है उसे जीवन में इख्तियार करें जिससे कि खुद भी श्रेष्ठ कर्म कर सफल जीवन जी सकें और हमें सहीं मार्ग पर चलता देखकर हमारी भावी पीढ़ी भी उन मार्गो पर कदम पीछे कदम रख जीवन जी सकें ।
जब मैं छोटा था तब रूठकर रोने लगता, पर मन में कहीं ना कहीं यह अपेक्षा रहती कोई बड़ा मुझे मनाए क्योकि तब तक मैं छोटा था । मतलब रूठने पर या रोने पर मन में यह अपेक्षा रखना की कोई हमें मनाने आये यह बचपने की निशानी है । मतलब कमजोर मन की निशानी है ।
जब इंसान टूटकर बिखर जाए रो कर चुप हो जाये और खुद ही अपने मन को मना कर अपने आँशु पोछकर फिर खड़े होता है तो यह परिपक्वता की निशानी है । maturity की निशानी है समझदार की निशानी है । क्योकि जो समझदार नहीं होता वह अन्य पर छोटी छोटी बातों के लिए भी निर्भर होता है । यहां तक कि जीवन मे दुख आने पर वह रोने लगता है उसे सहारे की जरूरत महसूस होती है उसे किसी कंधे की जरूरत महसूस होती है जो कि मानसिक कमजोरी को दर्शाता है।
ब्रेकअप के पश्चात मैं भी एकांत में बहोत रोया बहोत पछताया और सहारा शराब को बनाया पर कभी खुद के आँशु नहीं पोंछे ना कोई मेरे आँशु पोछा, क्योकि अंतर्मन से मैं कितना दुख महसूस कर रहा तहस यह मुझे पता था । मैं शराब पीकर भले ही अपने आप को शेर दिखलाता पर अंदर से दुखी होने की वजह से वह कुब्बत वह साहस वह हिम्मत वह डेयरिंग मुझमें नहीं थी कि मैं पुनः मानसिक रूप से उठ खड़ा होऊं । मन से हारे हार है मन से जीते जीत मैं मन से हार मान चुका था परिस्थिति के आगे घुटने टेक चुका था । जब आध्यात्मिक ज्ञान का सहारा मिला मतलब परमात्मा का हाथ और साथ मिलने से मन शशक्त हुआ और जीवन मे आने वाली हर परिस्थितियों का सामना और समाधान मैं अपने विवेक के बल पर करने लगा अपनी आत्मिक शक्ति व गुण के बलबूते करने लगा ।
शक्तियां तो उससे पहले भी मुझमें थी पर सोई हुई अवस्था में थी पर राजयोग की प्रेक्टिस से वह आत्मिक शक्तI व गुणों की जागृति होती गई और आत्मा शक्तिशाली, पीसफुल बनती चली गई मन स्टेबल बनता चला गया ।
जीवन में चलते चलते जीवन के सफर में सचमुच हम उस दिन बड़े बन जाते हैं जब अपने आंसू पोछकर फिर खड़े हो जाते हैं और वही तो मेरे साथ हुआ जब स्पीरिचुवल नॉलेज से मन शशक्त हुआ राजयोग से आत्मिक शक्ति व गुणों की जागृति हुई तो खुद के आंसू खुद ही पोछकर अपने मन को खुद ही मनाकर नए जीवन का उदय किया और वहीं से उदय का जीवन पूर्णतया बदल गया ।
मेरा अनुभव तो यह कहता है कि जीवन का वास्तविक स्वाद वही ले पाता है जो गिरता है और गिरने के उपरांत खुद ही उठकर दिखलाता है जो सहारा लेकर खड़ा होता है वह कमजोर बन जाता है मगर गिरने के उपरांत जो खुद के आंसू पहुंच कर अपनी बुराइयों रूपी कमजोरियों रूपी धूल झाड़ता हुआ ऊपर उठता है तो वह सही मायने में जीवन का आनंद ले पाता है क्योंकि नीचे गिर कर ऊपर उठने के दौरान वह उन सारे अनुभवों से होकर गुजरता है जिन अनुभव को जीवन में अप्लाई करने से आप जीवन को वास्तविक को आसान सहज तरीके से जी सकते हैं और सही मायने में कहा जाए तो वही रियल जिंदगी का हीरो भी बन जाता है क्योंकि बाकी सब जो जीवन में कभी गिरे ही नहीं होते और गिर कर उठना ही नहीं सीखे होते वह इस सृष्टि रूपी नाटक मंच पर एक दर्शक के माफिक होते हैं परंतु रियल जिंदगी में हीरो वही होता है जो गिरता तो है मगर गिरने के उपरांत स्वयं ही अपने आंसू पहुंचकर पुणे यथावत उठ कर भी दिखलिता है ।
बड़ा मुश्किल होता है मेट्रो सिटी से पढ़ने के उपरांत या मेट्रो सिटी में जॉब करने के उपरांत एक ठेला चलाना या फेरी लगाकर खाना बेचना पर यह राजयोगा का अभ्यास ही था जिसने विपरीत परिस्थिति में भी बिना किसी अहाँकार के एक ठेले में आयुर्वेदिक जूस की दुकान भी खोला तो वही विपरीत परिस्थिति में कोयले के खदान में बाइक में कैरेट में खाने का पार्सल रखकर ट्रक ड्राइवरों को खाना तक बेचा । कभी कभी यह खुद को अविश्वसनीय लगता है । पर यह कहानी नहीं बल्कि मैंने वह जिंदगी जी है । मेट्रो सिटी बैंगलोर से फार्मासिस्ट की पढ़ाई फिर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की जॉब जिसमे टाई पहनकर डॉक्टरों से मिलना जुलना हुआ करता था ।
उसके बाद जब व्यसनमुक्ति हेतु राजयोगा का अभ्यास करने के पश्चात जैसे जैसे मन में आंतरिक परिवर्तन आता गया । वैसे वैसे व्यवहारिक परिवर्तन भी होता गया । पढ़ाई का अहंकार या बड़े शहर में जीवन जीने का अहंकार यह शुक्ष्म अहंकार के रूप मुझमें कभी विद्धमान था जिस अहंकार पर जीत दिलवाने के लिए परमात्मा नें अजब ही युक्ति रची और मुझे कोयले के खदान में बाइक में कैरेट रखकर उसमें सात्विक खाने को सेल करने की सेवा निभानी पड़ी शुरुवाती दो दिन तो यह टास्क बड़ा ही अटपटा लगा और बहोत ही बेइज्जती की तरह महसूस हुआ फिर धीरे धीरे जैसे जैसे उस कार्य में डूबता गया वह सारा शर्म गायब हो गया फिर समझ आया कि सचमुच कार्य कोई छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि छोटी या बड़ी तो इंसान की सोच होती है । हमारे घर का खर्च कोई पडोशी नहीं चलाता बल्कि हर परिस्थिति में यह हमारी ही जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाएं और जिम्मेदारी निभाने के दौरान भले कोई भी कम आय का कार्य हमें करना पड़े हमें जरा भी हिचकिचाना नहीं चाहिए बल्कि खुशी के साथ पूरे डेडिकेशन के साथ उस कार्य को अंजाम पहुंचाना चाहिए उस दौरान मुझे यह महसूस होता था कि बेंगलुरु से पढ़ने के उपरांत अगर मुझे यह कार्य करने की जिम्मेदारी परमात्मा सौंप रहा है तो जरूर मुझमें पढ़ाई का अहंकार रहा होगा जिसे परमात्मा न्यूट्रीलाइज करना चाह रहा है । क्योकि परमात्मा को साफ सच्चे दिलवाले बच्चे ही पसंद हैं । तो मैंने भी उस टास्क को सराखों पर रखा और ले भोजन पानी, भोजन पानी वाला कहता हुआ हर ट्रक के किनारे बाइक घुमाता हुआ फेरी लगाकर खाना बेचने लगा धीरे धीरे मुझमें जो पढ़ाई का अहंकार था अच्छे कपड़े पहनकर अपने को अच्छा समझने का भ्रम था । दूसरों को नीचा दिखलाकर अपने को बड़ा समझने का भ्रम था वह सारा अहंकार, भ्रम उस कोयले के खदान में कहीं गुम हो गया । इस टास्क से मुझे यह अहसास हुआ की निरंकारी पन क्या होता है जब अहंकार शून्य हो तो मनुष्य का व्यवहार कैसा होता है यह अहसास मैं पूरी तरह से कर पाया और परमात्मा हमें ईश्वरीय पढ़ाई के द्वारा निरहंकारी ही तो बनाता है । तो परमात्मा रियल जिंदगी में शिक्षक बनकर जब पढ़ाई पढ़ाते हैं तो हमें आत्मिक गुणों की प्राप्ति का अनुभव हमें होता ही है । उस दौरान जब मैं अपने बाइक पर कैरेट रखकर खाने के पैकेट्स और पानी के डब्बे रखकर अपने घर से हर संध्या को निकलता था तब आस पड़ोस के सारे लोगों की निगाहें मुझ पर टिक जाया करती थी । क्योंकि आसपास के सभी लोगों को यह पता है कि अमुक व्यक्ति ने बेंगलुरु से पढ़ाई की है और एक हाई फाई जीवनशैली जीया है और जीते भी आसपास के सबने देखा है और वही लोग जब मुझे इस हालत में देखें तो बड़े ताज्जुब की निगाहों से मुझे देखा करते थे पर मुझे इस बात का जरा भी मलाल नहीं था क्योंकि मुझे पता था कि परमात्मा मुझे रियल गोल्ड बना रहे हैं जिसके लिए मुझे जो कुछ भी टास्क संघर्ष करने को मिल रहे हैं उस टास्क को मुझे बखूबी निभाना है क्योंकि टास्क निभाने के उपरांत ही पता चलता है कि उस दौरान हमें किन गुणों की प्राप्ति हुई आज का व्यक्ति केवल धन कमाने के लिए ही अपनी समय व उर्जा खपत करता है पर मैं अपनी समय व उर्जा धन के साथ साथ गुण कमाने के लिए भी खपत करता हूं । इसीलिए तो अब तक कुल 29 अलग अलग तरह के कार्य को करने का मौका जीवन में मिला लोग सोचते हैं एक काम में स्थिर रहना सफलता की निशानी पर मेरे लिए ऐसा बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि एक काम माना एक स्किल एक गुण एक टैलेंट और बहुत से काम मतलब मल्टी गुण मल्टी टैलेंट मल्टी स्किल , जब परमात्मा मुझे गुणवान बनाने हेतु ऑफर कर रहे हैं तो फिर एक काम को जीवन भर पकड़ कर मैं भला गुणवान बनने से वंचित क्यों रहूं । इसलिए अब क्या कहेंगे लोग इस बात की जरा भी फिक्र नहीं करता बल्कि अब वही करता हूं जो परमात्मा मुझसे करवाना चाहते हैं । पहले मैं वह बनना चाहता था जो मेरा लक्ष्य था । पर अब मैं वह बनना चाहता हूं जो मुझे परमात्मा बनाना चाहते हैं । इसलिए अब मेरे जीवन की कमान परमात्मा के हाथ में है तो गुणवान बनने के लिए मुझे अनेकों तरह के टास्क से होकर गुजरना पड़ेगा और जब मैं अपने मन को एवरेडी रखूंगा किसी भी समय परमात्मा जैसा चाहे जब चाहे जो चाहे मुझे निमित्त बना मुझसे करवाएं इस पर अपने मन को पूरी ढील दे रखा हूं । तभी मैं उस टास्क को कंप्लीट कर वह बन पाऊंगा जो खुद भगवान मुझे बनाना चाहते हैं । अन्यथा मिलने वाले भाग्य से वंचित रह जाऊंगा इसलिए अब *लोगों की परवाह नहीं करता कि क्या कहेंगे लोग
जब मैं कभी सोशल वर्कर, पॉलिटिशियन या पत्रकार की भूमिका अदा कर रहा होता था । तब समाज हित में कार्य करने का जज्बा जो था वहां तक तो ठीक था पर कार्य करते करते मुड़ अपसेट हो जाया करता था
जब मन इक्षित घटित नहीं होता था । वजह था पहले राजयुक्त नहीं था मतलब जो कुछ घटनाएं हमारे साथ घटित हो रही हैं उसके पीछे के राज को ना जानने के कारण मन की स्थिति विचलित हो जाती थी।
माना मैंने अपने आंतरिक गुणों व शक्तियों के बलबूते किसी का सहयोग किया तो सहयोग भावना तो बड़ी नेक भावना थी पर बदले में वह भी मुझे सहयोग करे वह भी वैसा बर्ताव करे यह सम्भव नहीं क्योंकि हमने जो किया वह हमारे संस्कारोंपर आधारित व्यवहार होता है । अगर हम सोचें कि सामने वाला भी हमसे बदले में वैसे ह8 व्यावहार करे तो कई बार हो सकता है सामने वाले में वह संस्कार ही ना हो तो उनसे वह व्यवहार हो नहीं पायेगा क्योकि व्यवहार का आधार तो संस्कार ही होते हैं तो इससे खफा होकर हम उनसे नाराज हो जाते हैं। वजह है हम इमोशनली फिट नहीं हैं । बात बात पर नाराज होना मानसिक कमजोरी, अपरिपक्वता की निशानी है । हमें सब कुछ करते अपना ख्याल रखने की जरूरत हैं। जो कुछ हम करना चाहते हैम वह करेंगे मगर खुद का खयाल रखते हुवे, ध्यान रहे हर कर्म एक सेवा है । और सेवा तभी सहीं है जब सेवा करते मन की स्थिति स्टेबल हो, अगर सेवा करते मन केI स्थिति ऊंची या स्टेबल नहीं तो वह सेवा सेवा नहीं क्योकि स्व स्थिति को स्टेबल रखना भी एक सेवा है ।
हमारे मन की स्थिति जब स्टेबल होती है तब मन से शांति के प्रकम्पन निकलते हैं जो वातावरण में फैलते हैं और हमारी वृत्ति सामने वाले पर प्रभाव डालती है कर्म व्यवहार पर प्रभाव डालती है । जब मन शांत स्टेबल होता है तब हम कार्य दुगुनी तेजी से कर पाते हैं वही जब मन ही अपसेट हो तो अपसेट मन से कार्यों में सफलता नहीं मिलती वहीं उमंग उत्साह में कमी होने से हम कार्यों में अपना 100 परसेंट नहीं लगा पाते और इससे कार्य सिद्ध नहीं पाते या सिद्धि अर्थात सफलता अर्थात success का पेरसेंटेज कम हो जाता है । इसलिए स्व स्थिति को ऊंचा रखना खुद पर अटेंशन देना बेहद जरूरी है । थके हुवे मन से ना तो ऊर्जा सहीं दिशा में लग पाती है ना मन बुध्दि में एकाग्रता होती है । जब मन बुद्धि एक ही दिशा में एक साथ एकाग्र हो तब ही वास्तविकता में सफलता मिलती है । अगर मन कहीं और बुद्धि कहीं और जाए तो कार्यों में सफलता की कमी हो जाती है ।
ध्यान खुद का रखना है ध्यान खुद के मन की स्थिति का रखना है इसके लिए जैसे रोज हम अपने शरीर का ध्यान जिस प्रकार रखते हैं । उसे पानी से साफ करते हैं भोजन के द्वारा शारीरिक ऊर्जा को बरकरार रखते हैं कपड़े पहनते हैं श्रृंगार करते हैं बिल्कुल उसी तरह आज के समय हमें जरूरत है खुद का ध्यान रखने की खुद मतलब मैं आत्मा का ध्यान रखने की सेल्फ केअर करने की इसके लिए नियमित रूप से परमात्म महावाक्य सुनकर धारण कर आत्मिक शक्ति का विकास कंपल्सरी है । वहीं नियमित मेडिटेशन के माध्यम से मन को स्टेबिलिटी प्रदान कर सकते हैं ।
दूसरों का ध्यान रखने में लोग इतने उलझ जाते हैं कि खुद की मन की स्थिति पूरी तरह से खराब होने के बावजूद सामने वाले का ध्यान रखने की कोसिस करते रहते हैं जो कि बिल्कुल गलत विधि है। सामने वाले का सबका ध्यान हम रखेंगे मगर सबसे पहले खुद का ध्यान रखेंगे क्योकि जब हम अपना ध्यान रख स्टेबल शांत शक्तिशाली रहेंगे तो स्टेबल, पीसफुल, पॉवरफुल माइंड से कार्य सटीक यथार्थ तरीके से होते हैं जिसे सफलता गले का हार बन जाती है ।
आध्यात्मिक ज्ञान से जब विवेक जागृत होता है तो समझ शक्ति डेवेलोप होने से हम परिपक्व बनते हैं और परिपक्वता हमें स्टेबल माइंड प्रदान करती पीसफुल व पॉवरफुल माइंड प्रदान करती है । आध्यात्मिक ज्ञान से मन बुद्धि की सफाई होती है जिससे हम जो कुछ भी संकल्प करते हैं उन संकल्पों में व्यर्थ के संकल्प मिक्स नहीं होते बल्कि समर्थ पॉजिटिव संकल्प होने से संकल्पों की सिद्धि होती जाती है और खुद का ध्यान रखने से उमंग उत्साह के साथ कार्य करते से मन बुद्धि को एकाग्र रख कार्य करने से सफलता मिलती जाती है ।
फील तो होता है कि सचमुच भगवान मुझे किसी बड़ी लक्ष्य तक पहुंचाना चाहते हैं।
प्रायः जीवन में प्रॉब्लम आने पर लोग घबराया करते हैं । पर आध्यात्मिकता हमें अच्छी समझ शक्ति प्रदान करती है । घटनाओं के पीछे के रहस्यों को समझने की शक्ति प्रदान करती हैं ।
आध्यात्मिक ज्ञान हमें सिखलाती है कि जीवन में समस्यायों का आना हमारी आत्म उन्नति का साधन है । अगर हम प्रॉब्लम की जड़ पर जाएंगे तो समझ पाएंगे कि जो प्रॉब्लम जीवन में आई है उसके पीछे पहला तो खुद के पास्ट कर्म है जिसके फलस्वरूप समस्या विपरीत परिस्थिति हमारे जीवन में आई है । दूसरा यह कि आत्मशक्ति स्ट्रांग होने से हम प्रॉब्लम से भागते नहीं बल्कि प्रॉब्लम का सोल्युशन निकालते हैं । और जब हम प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकालते हैं तो उससे मिले अनुभव हमारी आत्म शक्ति को बढ़ाते हैं । जिस अनुभव के आधार पर भविष्य में जबकभी वैसी समस्या या विपरीत परिस्थिति हमारे जीवन में आती है तो हम अनुभव के आधार पर उन विपरीत परिस्थिति को आसानी से क्रॉस कर लेते हैं ।
पिछले पांच वर्षों से मेरे जीवन में समस्याएं बहोत आ रही है । जब आध्यात्मिक मार्ग पर कदम रखा तब तकरीबन 6 महीने तो स्वयं के पुराने बड़े बड़े नेगेटिव संस्कार जो जीवन को तहस नहस कर रहे थे । उन नेगेटिव संस्कारों में रूपांतरण हुआ । फिर जीवन मे बड़ी बड़ी समस्याएं भी आनी शुरू हुई पर आंतरिक शक्ति का विकास होने से उन प्रॉब्लम से इस बार भागा नहीम बल्कि इस बार जीवन में आने वाली हर प्रॉब्लम को फेस किया उसका समाधान निकाला, परन्तु इससे पहले आत्मशक्ति क्षीण होने की वजह से जब कभी कोई विपरीत परिस्थिति आती उसका सामना कर समाधान करने के बजाए मैं उस प्रॉब्लम से खुद को दूर कर लेता और व्यसन का सहारा लेकर किसी तरह परिस्थिति को क्रॉस करने का प्रयास करता पर समय तो गुजर जाता लेकिन समस्या और गंभीर बन जाती
कोई भी डिफरेंट सिचुएशन हमें कुछ सिखलाने आती है हमारी आंतरिक गुण व शक्तियों का विकास करने आती है । हम जितना संघर्ष करते उतना ही परिपक्व (mature) होते जाते हैं । संघर्ष हमें मानसिक रूप से मज़बूत बनाता है । संघर्ष सफलता की सीढ़ी है । प्रॉब्लम हमें हमसे मिलाने आते हैं कहने का तात्पर्य यह है कि प्रॉब्लम जब आता है और उससे हमें पता चलता है कि मानसिक तौर पर हम कितने स्ट्रांग हैं । जीवन में प्रॉब्लम ना आये यह छप नहीं सकता । पर प्रॉब्लम के दौरान हम आपने मन को स्टेबल रखें तो यही हमारी जीत है
पिछले 5 वर्षों से समस्याओं को एक अलग ही नजरिये से देखने लगा हूँ पहले समस्यायों से भागता था और शराब का सहारा लेकर माइंड को स्टेबल रखने का प्रयास किया करता था जो कि क्षणिक स्टेबिलिटी प्राप्त होती थी पर नशा उतरते ही जब यह पाता कि प्रॉब्लम तो ज्यों की त्यों है तो पुनः नशा करके परिस्थिति से भागने का प्रयास किया करता था।
पर अब जब जीवन में प्रॉब्लम आती है तो ज्ञान के त्रिनेत्र से प्रॉब्लम के पीछे के रहस्यों को समझने का प्रयास करता हूं । और अंदर ही अंदर खुश होता हूँ कि कोई नई शक्ति का विकास होने को है क्योकि प्रॉब्लम मतलब नई शक्ति की प्राप्ति का सूचक प्रॉब्लम मतलब ख़ुसनसीबी, मैं तो कहता हूं बड़े खुशकिस्मत होते हैं वह लोग जिनके जीवन में प्रॉब्लम आती है, यह ड्रामा कल्याणकारी है । इसलिए कहा भी जाता है कि जो होता है उसके पीछे कल्याण छुपा होता है । बस वह ड्रामा के पीछे का कल्याण तुरंत समझ में नहीं आता, क्योकि इब प्रॉब्लम से गुजर रहे होते हैं उस दौरान आंतरिक शक्ति का विकास हो रहा होता है और जब कुछ समय के पश्चात उस आंतरिक शक्ति का विकास हो जाता है । फिर जब वैसी ही परिस्थिति जीवन में पुनः दस्तक देती है तो हमें अहसास होता है कि वह परिस्थिति हमारे मन की स्थिति के आगे कुछ भी नहीं क्योकि उससे पहले पिछले प्रॉब्लम के दौरान हमने वैसी ही परिस्थिति को फेस कर समाधान निकाल आंतरिक शक्ति का विकास ऑलरेडी किया हुआ होता है इसलिए वैसी परिस्थिति पुनः आने पर हमें घबराहट फील नहीं होती, घड़बड़ाते हम तब हैं जब ज्ञान व अनुभव की कमी हो पर जब हम परिस्थितियों को क्रॉस करते हैं तो इससे हमें ज्ञान व अनुभव की प्राप्ति होती है । और यही ज्ञान व अनुभव तो आत्मिक शक्ति व गुण हैं जिनकी बदौलत हमें माइंड की स्टेबिलिटी मिलती है । तो प्रॉब्लम हमें गुण दान करने आती है ।
अब कभी जीवन में कोई प्रॉब्लम आये तो समझ जाओ परमात्मा हमपर बड़ा मेहरबान है । वैसे तो प्रॉब्लम परमात्मा नहीं देता पर प्रॉब्लम को फेस करने की आत्मिक शक्ति व समाधान करने का विवेक जरूर देते हैं । इसलिए जीवन में आध्यात्मिक ज्ञान को जगह दीजिए जिससे कि विवेक जागृत हो सके अच्छी समझ शक्ति जागृत हो सके और इस दुनियां को देखने का एक नया नजरिया प्राप्त कर खुशहाल जीवन जी सकें
प्रायः हम देखते हैं कि सम्बंधों में दो लोगों के मध्य जब मतभेद हो जाता है तो मनमुटाव होने से आपस में बातचीत बंद हो जाती है । दोनों एक दूसरे को इग्नोर करने लग जाते हैं । मन ही मन में यह चाहना होती जरूर है कि वह पहले माफी मांगे । ओर इसी जिद में धीरे धीरे समय के साथ संबंधों में दूरियां बढ़ती जाती हैं ।
छोटी सी बात पर रिश्ते खत्म करने से बेहतर यही होता है कि हम प्यार से वह बात ही खत्म कर दें जिस वजह से रिश्ते कमजोर पड़े हैं । क्योकि बातों को पकड़कर रखेंगे तो संबंधों में कड़वाहट बनी रहेगी लेकिन बड़प्पन दिखलाते हुवे अगर हम सामने वाले को वह जो है जैसा है वैसा accept करते हैं तो इस विधि से हम उनके उन संस्कारों के साथ उन्हें accept कर उनके साथ एडजस्ट होकर जीवन जी सकते हैं ।
मतलब उनका संस्कार उनकी बेहेवियर हमारे मन की स्थिति को नहीं हिला पाए अगर उनके कड़े या नेगेटिव संस्कार से दुखी होकर हम उनसे दूर होते हैं तो हममें व उनमें भला क्या अंतर रह गया । अंतर बस इतना कि उन्होंने वही व्यवहार हमसे पहले किया और हमने वही व्यवहार उनके बाद उनसे ही किया ।
अक्सर माफी मांगने में और झुकने में लोग सोचते हैं कि सामने वाला पहले झुके पहले माफी मांगे और इसी जिद में रिश्ते में समय के साथ कड़वाहट बढ़ती चली जाती है । इसलिए अगर सम्बन्ध का सुख पाना है तो खुशी देने में पहले मैं, झुकने में पहले मैं त्याग करने में पहले मैं स्नेह देने में पहले मैं करें इस विधि से सम्बन्ध मजबूत व मधुर बन जाते हैं ।
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