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"इबादत–ए–इश्क"❦–1

26 अक्टूबर 2024

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आओ पैगाम ए इश्क करते हैं.....✍

आज कुछ ऐसा...
हम पैगाम–ए–इश्क लिखते हैं ,
जुड़ जाए जो दो दिल–ए–धड़कन..
हम उनकी ऐसी इश्क–ए–दास्तां लिखते हैं ,
हर दिल की ये चाहत हो ,
काश किसी से इबादत–ए–इश्क हो ,
पूरी उसकी ये मन्नत हो ,
एक आग तो दूजा पानी होगा ,
वह एक भोर तो दूजा सांझ होगा ,
तब ही इश्क उसका मुक्कमल होगा !
वह जुदा हो कर भी साथ होगा ,
इस इश्क में सब जायज़ होगा ,
वो अधुरा हो कर भी पूरा होगा !
पूछा जो इबादत–ए–इश्क उनसे ,
वो कहते हैं ये इश्क मुक्कमल कहाँ होता है ?
कोई बताए उन्हें दिल–ए–धड़कन का पता ,
इबादत–ए–इश्क वहां होता है जहां खुदाए जहां होता है......!!!!!!!!
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इति एक बात बता ? जब इतनी खुबसूरत पोएम्स लिखी है तुमने , तो इसकी कहानी तो लाज़वाब ही होगी ? , "वह लड़का मुस्कुरा कर उसे देखते हुए कहता है !"

लाजवाब तो नहीं कह सकते हां पर इबादतो में उसने यह इश्क पाया है यह कह सकते हैं!,"वह हल्का मुस्कुरा देती है कहते हुए! और कहानी बोलना शुरू करती है.......

(मुंबई )

वह लड़की अपनी बुलेट की स्पीड और तेज बढ़ाते हुए हल्का मुस्कुरा कर बोली – जिया कॉलेज के बाद और कहीं जाना है ? 

जिया ने डरने की वजह से अपनी आंखे पहले से बंद किया हुआ था । और उसके बुलेट की स्पीड बढ़ाते ही उसने उसके शर्ट की बाजू पर अपना हाथ और कसते हुए कहा – ,"या अल्लाह कैसी बातें करती है यह लड़की पहले तो अपने साथ – साथ हमारी भी जान लेने पी तुली हुई है। और पूछती है की कहीं और भी चलेगी ? अरे भूतों की महरानी.. पहले हम सही सलामत कॉलेज तक तो पहूंच जाए अगर हाथ पैर ठीक रहा तो, उसके बाद सोचेंगे कहीं और जानें की !

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इश्क इबादतों में भी मिलता है क्या? कैसे बेवकूफों वाली बात तुम करती हो यार इति तुम ? इतनी पढ़ी लिखी हो कर। तुम्हें पता है ना आज कल ये इश्क विश्क सब बेकार की बातें है। आज के समय में इश्क के नाम पर बस ठगा जाता है ,लोगो को इश्क के नाम पर इस्तिमाल किया जाता है। .. तो इबादत – ए – इश्क नहीं ठगा–ए– इश्क कह सकते हैं! ," कहानी के बीच में ही...बोल कर वह लड़का हंसने लगा और उसकी बातों का मजाक उड़ा दिया! "

अध्यान तुम कभी नहीं सुधरोगे ना ? ," बोलते हुए वो अपनी डायरी गुस्से से बंद करके उठ जाती है। और किचन की ओर बढ चली वहां आते ही गैस जला कर उसपे चाय का पतीला चढ़ा दिया। आहा .. "चढ़ा दिया कहना गलत होगा पटक दिया यह कहना सही होगा " और उसके बाद हाथ में पानी लिए बाहर आ गई।

पानी उसके सामने पटकते हुए रख कर फिर अंदर किचन में चली आई और अदरक कूट कर चाय में डाल दिया और खड़ी हो कर उसे घूरने लगी। 

चाय उबलते उबलते आधी हो गई पर उसका घुरना बंद नहीं हुआ, घुरना बंद कैसे होता? यहां सिर्फ चाय थोड़ी उबल रही थी चाय के जैसे तो वह खुद ही उबल रही थी। "चाय जल जाएगी तब गैस बंद करोगी क्या अध्यान ने चाय को कप में छानते हुए ही बोला"

इति होश में आ गई थी। एक नज़र अध्यान पर डाल वो  मुंह बिचका के आंगन में आके वहीं सीढ़ियों पर बैठ गई !

पिछे पिछे हाथ में चाय लिए अध्यान भी आ गया और चाय वहीं सीढ़ियों के पास रख। वहीं ज़मीन पर बैठ कर बोला अच्छा बाबा सॉरी अब आगे भी तो सुनाओ अपनी इबादत–ए–इश्क का आगाज़... ,"पक्का प्रॉमिस अब बीच में नहीं बोलूंगा। बोलते हुए मुस्कुरा कर वह उसे देखते हुए एक कप चाय उसे पकड़ा दिया और दूसरा कप ख़ुद उठा कर अपने होटों से लगा लिया।

इति बिच में नहीं बोलना ओके वह उसे अपने उंगलियों से इशारा कर रोकते हुए, चाय के एक सीप लेकर अपनी डायरी खोल दी हां तो सुनो.........

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जिया का बड़बड़ाना उसके कानों में जैसे ही पड़ा वो बुलेट की स्पीड फूल करके थोड़े तेज़ आवाज़ में मुस्कुरा कर बोली – इतना नहीं डरते यार मेरी जान वो भी आयुक्ता के रहते जो डरा समझो मरा , बोलते हुए उसने गाड़ी एकाएक रोक दिया और मुड़ कर पिछे बैठी जिया को देखते ही खिलखिला के हंस पड़ी। क्योंकी जिया अभी भी उसके शर्ट के बाजू को कसके पकड़े बैठी थी ! "जिया हम  कॉलेज सही सलामत पहूंच गए। वो हंसते हुए ही बोली "

क्या हम सही सलामत कॉलेज पहूंच गए ? हमारे हाथ पैर तो ठीक है ना ... ? वो खुद को और आयुक्ता को चेक करते हुए... बोली !, "शुक्र है अल्लाह का हम सही सलामत पहूंच गए" फिर वो आयुक्ता की ओर घूर कर देखती है। ब्लैक जींस, ब्लू शर्ट , उसके साथ.. उसके अंदर से झांकती वाइट टी शर्ट शर्ट के सारे बटन खोल रखा था उसने, और शर्ट के बाजू फोल्ड थे। गले में एक पतली सी चैन, चैन में शिव जी का लॉकेट पहना हुआ था। बाल का पउनी बनाया हुआ था। जिया उसे देख कर मुंह बना कर बोली,– " सब तो ठीक है पर यह क्या है यार ? जब देखो तब बस एक ही लुक में कॉलेज आ जाती है। कभी लड़कियों वाले कपड़े भी पहन लिया कर , कभी उनके जैसी संज संवर जाएगी तो कुछ हो नहीं जायेगा । जब देखो तब बस लड़को वाले कपड़े में ही निकल पड़ती है !

ये लड़कियों वाले कपड़े हमें जचते नहीं मेरी जान , " बोल कर वो उसका हाथ पकड़ आगे बढ़ गई"

इस लिए कोई लड़का तेरी तरफ आंख उठा कर देखता ही नहीं है क्योंकि तू लड़कियों जैसी खुबसूरती तो है । पर हरकते एकदम लड़को वाली, पता नहीं अल्लाह ने तुझे लड़की क्यूं बनाया? बनाया तो थोड़े लड़कियों वाली हरकते भी डाल दिया होता, " बोल कर आयुक्ता को देखने लगी"

हो गया तुम्हारा अम्मा पुराण कथा.. तो चले क्लास में? एक तो घर पर मम्मी की सुनो और बाहर इनके साथ रहो तो जिया अम्मा पुराण सुनो , "बोल कर वो मुंह बना कर उसका हाथ पकड़े हुए आगे बढ़ गई!

वह दोनों क्लास में एंटर करती है तभी ,"आई लव यू आयुक्ता आई रियली लव यू .... चटाक.......! 






क्रमशा : ..........✍

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

सुंदर लेखन शैली 👌👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा और लाइक जरूर करें 🙏🙏🙏

27 अक्टूबर 2024

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"इबादत–ए–इश्क"
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"इबादत–ए–इश्क",,, पाया जो तुम्हें मन्नतों में!

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