डायरी दिनांक ०३/०९/२०२२ - सायंकालीन चर्चा
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माना जाता है कि ब्राह्मण होना मात्र किसी वर्ण का सूचक नहीं है। अपितु ब्राह्मण वह व्यक्ति है जो कि समाज का आगे बढकर प्रतिनिधित्व करता है। जो कि न केवल खुद सही राह पर चलता है वह समाज का भी पथ प्रदर्शक होता है। उसके आचरण ऐसे होते हैं कि उनपर गर्व किया जा सके। एक ब्राह्मण की दृष्टि में धन संपत्ति मात्र जीवन जीने का साधन हैं, उससे अधिक कुछ भी नहीं। वह संपत्ति, पद या प्रतिष्ठा की चाहत में कोई भी ऐसा कार्य नहीं करता है, जिसके लिये उसे अपने आचरण को गिराना पड़े। दूसरे शव्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जिस मनुष्य में ऐसी बातें न हों, वह व्यक्ति ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी ब्राह्मण नहीं माना जा सकता है।
उक्त गुणों से युक्त ब्राह्मण ही प्रत्येक स्थिति में पूजनीय है। गोस्वामी तुलसीदास जी का निम्न कथन उन्हीं के लिये लिखा गया है।
शापत ताड़त परुश महंता ।विप्र पूज्य अस गावहिं संता।।
प्रेम करते करते ऐसी स्थिति का आगमन कि उस स्थिति में प्रेम द्वेष में परिवर्तित हो जाये, स्थिति बड़ी चिंतनीय हो जाती है।कभी कभी तो आपसी मतभेद समाप्त हो जाते हैं तो कभी कभी मतभेद अलगाव के रास्ते पर ले जाते हैं। ऐसे रिश्ते मिटकर भी मन को दुखी करते हैं।
पहले मनुष्यों में सहनशक्ति अपेक्षाकृत अधिक होती थी। खासकर रिश्तों के मध्य विवाद की स्थिति से लोग बचा करते थे। इसके लिये छोटी मोटी हानि भी सहर्ष उठाया करते थे। पर आज के अति भौतिक युग में सहन करने की अवधारणा लगभग लुप्त होती जा रही है। रिश्तेदारी, घर, परिवार के बाद अब तक स्थिति पति - पत्नी, प्रेमी - प्रेमिका के संबंधों पर भी यही होने लगी है। अथवा ये संबंध भी मात्र स्वार्थ से प्रेरित होने लगे हैं। जब तक स्वार्थ सिद्ध होता रहता है, तभी तक प्रेम रहता है। अन्यथा प्रेम के मिटने में देर नहीं लगती।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।