सुबह के आठ बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
कल शव्द इन टीम ने विभिन्न प्रतियोगिताओं का परिणाम घोषित किया। परिणाम देख एक बार फिर से मन खिन्न सा हो गया। ऐसा लगने लगा कि संभवतः शव्द इन टीम ने मनसा पूर्ण निर्णय ले रखा है कि मुझे किसी भी तरह पुरस्कृत नहीं करना है। संभवतः शव्द इन टीम चाहती ही नहीं है कि मेरी पुस्तकें प्रतियोगिता के माध्यम से निःशुल्क प्रकाशित हों। इससे पूर्व भी मैंने अपनी कुछ पुस्तकों को प्रतियोगिता में रखा था। वैसे शव्द इन टीम की सोच बहुत पहले से समझ आ रही थी, फिर भी निःशुल्क पुस्तक प्रकाशित हो जाने का लोभ ही ऐसा है कि बार बार कोई न कोई पुस्तक किसी न किसी प्रतियोगिता के लिये दे देता हूँ। अब मुझे लगता है कि अब मुझे अपनी इस सोच पर पूरी तरह विराम देना ही होगा। प्रिंट ओफ डिमांड नीति के तहत यदि उचित लगा तो किसी पुस्तक को प्रकाशित कराया जा सकता है। पर प्रतियोगिता के माध्यम से निःशुल्क पुस्तक प्रकाशित कराने का स्वप्न देखना बिलकुल ही बंद करना होगा।
इस मंच पर डायरी लेखन भी मात्र स्वांतः सुखाय करना ही उचित रहेगा। कह सकते हैं कि अब शव्द इन मंच पर जो भी लिखना है, वह मात्र अपनी लेखनी को जिंदा रखने के लिये ही करना होगा।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।