डायरी दिनांक १४/०९/२०२२
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मनुष्य जीवन में कभी कभी ऐसी नादानियाॅ कर देता है कि फिर ताउम्र उन नादानियों पर पश्चाताप करता रहता है। ऐसी ही एक छोटी सी नादानी मैंने बहुत पहले की थी। जिसे अब मैं प्रयास कर भी सुधार नहीं पा रहा हूँ। दरअसल विद्यार्थी जीवन में मुझे कभी भी हस्ताक्षर करने की आवश्यकता अनुभव नहीं हुई थी। फिर जब हस्ताक्षर करने की आवश्यकता हुई तब मैंने अंग्रेजी में हस्ताक्षर किये। अब विभिन्न आलेखों में मेरे जो हस्ताक्षर बने हुए हैं, उन्हें बदल पाना संभव नहीं है। तथा विगत कुछ वर्षों से हिंदी में हस्ताक्षर करने की इच्छा बलबती हो रही है।
अरुणिमा सिन्हा विश्व की प्रथम विकलांग पर्वतारोही मानी जाती हैं। उनकी आत्मकथा ऐवरेस्ट की बेटी आनलाइन मंगायी थी जो आज ही प्राप्त हुई है। तथा आज ही लगभग साठ फीसदी किताब पढ ली है। हम लोग वास्तव में सफल लोगों की सफलता देखते हैं। पर उस सफलता के पीछे के संघर्ष अक्सर हम समझना नहीं चाहते। इस सत्य की अवहेलना नहीं की जा सकती है कि हमारे जीवन में अपार कष्ट हैं। फिर भी दूसरा सत्य यह भी है कि हमारे जीवन के कष्ट उन कष्टों के मुकाबले कहीं नहीं हैं जिन्हें कि अरुणिमा अथवा दूसरे साहसी लोगों ने सहन किया है।
हालांकि हमारे पौराणिक ग्रंथों में साहसी व्यक्तियों के संघर्षों की बहुत सारी कथाएं हैं। चाहे श्री राम हों अथवा श्री कृष्ण, सभी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। फिर भी उन गाथाओं को मिथक भी माना जा सकता है। उसके उपरांत भी अरुणिमा जैसी कितनी ही ऐसी गाथाएं हैं जिन्हें मिथक तो कभी भी नहीं कहा जा सकता है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।