डायरी दिनांक १५/०९/२०२२
शाम के पांच बजकर बीस मिनट हो रहे हैं ।
हम सभी के भीतर एक लेखक छिपा होता है। हालांकि हममें से अधिकांश को ही यह सत्य ज्ञात नहीं होता। सभी के मन में भाव उठते हैं। उन भावों को प्रगट करने का मन होता है। फिर लेखक तो सभी होते हैं।
लेखकों के भी बहुत सारे प्रकार होते हैं। व्यावसायिक लेखक मुख्य रूप से धन के लिये लिखते हैं। फिर किस तरह के लेखन पर उन्हें धन की प्राप्ति हो सकती है, इसका अन्वेषण कर ही वह लिखते हैं।
कुछ ऐसे लेखक होते हैं जिनके लिये धन बहुत अधिक महत्वपूर्ण नहीं होता। वे अपने मन से लिखते हैं। कभी कभी वे जन साधारण की सोच के विपरीत भी लिख देते हैं। इस बात की संभावना रहती है कि उनके लेखन के बाद उन्हें भी धन की प्राप्ति हो। पर सही बात यह भी है कि इन्हें इनके जीवन काल में बहुत कम ही लेखन से धनार्जन का अवसर मिलता है।
आज सुबह मन कुछ विचारों में व्यस्त था। पितरों की अग्यारी के बाद गौ ग्रास देने गाय के पास पहुंचा तो पाया कि जिस थैले में मैं गाय के लिये गौ ग्रास लेकर गया था, वह थैला ही मेरे पास नहीं था। फिर लगा कि शायद घर पर ही थैला छूट गया है। घर वापस आया। तथा घर पर थैला न मिलने पर फिर से ध्यान पूर्वक पूरे मार्ग का अन्वेषण किया। थैला और गौ ग्रास दोनों मार्ग में मिल गये। इस तरह एक बड़ी समस्या दूर हुई। सचमुच ज्यादा विचारों में खो जाना भी बहुत बार परेशानी ही देता है।
अर्जुन की आंखें मात्र नकली गीध की गर्दन देख रहीं थीं। (लोककथाओं में चिड़िया की आंख बताया जाता है जबकि महाभारत की मूल कथा में नकली गीध की गर्दन लिखा है।) पर आज के समय में एक साथ बहुत सारे लक्ष्यों का चिंतन करना होता है। ऐसे में कुछ समस्याएं आ जाती हैं। एक तरफ ध्यान देने पर दूसरी तरफ से ध्यान हटने लगता है।
विगत दो दिनों से रुक रुक कर बारिश हो रही है। एकदम सावन जैसा मौसम बन गया है। सितंबर के महीने में बहुत कम बारिश होती थी। शायद यही मौसम चक्र का परिवर्तन है।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।