डायरी दिनांक १९/०९/२०२२
रात के आठ बज रहे हैं।
संसार में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जिसे अपने जीवन में संघर्ष न करना पड़ा हो। शायद ही ऐसा कोई दिन रहा हो जबकि किसी को बिलकुल भी संघर्ष न करना पड़े। वास्तव में जीवन और कुछ नहीं बल्कि संघर्षों की गाथा ही है। हिम्मत रखने पर मनुष्य बड़े से बड़े संघर्षों से पार पा जाता है।
एक बार देवराज इंद्र की सभा में महर्षि वशिष्ठ ने सूर्यवंशी नरेश अयोध्या पति महाराज हरिश्चंद्र की धर्म निष्ठा की प्रशंसा की। उसी सभा में उपस्थित महर्षि विश्वामित्र जी ने यही कहा कि जब तक कठिन संघर्ष सामने न आयें तब तक किसी की निष्ठा के विषय में कैसे कह सकते हैं।
यह बात सत्य भी है। अच्छी स्थितियों में कोई भी धार्मिक हो सकता है। जब पेट भरना भी एक बड़ी चुनौती हो, उस समय शायद ही कोई धर्म या अधर्म का विचार कर सकता है।
संस्कृत भाषा में एक प्रसिद्ध उक्ति है - बिभुक्षितः किं न करोति पापं, क्षीणाः नराः निष्करुणाः भवंति ।।
भूखा कोई भी पाप कर सकता है। भूखा व्यक्ति करुणा रहित होता है।
यदि शव्द भूख का अन्वेषण करें तो माना जा सकता है कि भूख बहुत प्रकार की होती हैं। पेट की भूख के अतिरिक्त भी धन की भूख, पद की भूख, प्रतिष्ठा की भूख तथा और भी नाना प्रकार की भूख हो सकती हैं जो कि किसी के मन से भी करुणा को मिटा सकती हैं।
जो खुद कष्ट सहन कर भी दूसरों को सुखी रखते हैं, वे महान लोग होते हैं। पर यदि खुद को कोई कष्ट न हो तथा दूसरे सुखी हो जायें, ऐसी मध्यम स्थिति की अवधारणा भी गलत नहीं है। हालांकि आज के समय की बड़ी सच्चाई यही है कि लोगों को सबसे अधिक दुख इसी बात का होता है कि दूसरा व्यक्ति सुखी क्यों है।
यदि मैं अपने जीवन के संघर्षों की बात कहूं तो सचमुच वे बड़े संघर्ष के दिन थे। आज हम कुछ ज्यादा ही सुविधा भोगी बन चुके हैं। जबकि उन दिनों में हमारे पास बहुत कम संसाधन थे। तथा उन कम संसाधनों में भी हम प्रसन्न रहते थे। विषम परिस्थितियों में हम सफल होकर दिखाते थे।
आज जबकि हमारे पास अपेक्षाकृत अधिक संसाधन हैं फिर भी लगता है कि उन दिनों जैसी संघर्ष शीलता अब नहीं रही।हालांकि आज भी मैं उपलब्ध भौतिक साधनों का कम ही प्रयोग करता हूं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।