डायरी दिनांक ०३/०२/२०२२ - भांति भांति के लोग
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संसार में कितने प्रकार के जीव हैं। अधिकांश का तथा मेरा भी व्यक्तिगत विश्वास यही है कि यह सारी सृष्टि ईश्वर ने ही बनायी है। वैसे बहुत सारे लोग ईश्वर के अस्तित्व पर ही विश्वास नहीं करते। तो बहुत सारे लोग केवल दिखावे के लिये ही ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करते हैं। यदि संसार में अधिकांश लोग ईश्वर पर किसी भी प्रकार से विश्वास करते हैं तो यह संसार में घटित हो रही अराजकता क्यों। क्यों लोग एक दूसरे के गले को काटने पर आमादा हैं। क्यों लोग दूसरों के सुख से दुखी और दुख से सुखी हैं।
कुछ भी कहें। पर सत्य यह है कि संसार में भांति भांति के जीव हैं। उससे भी अधिक आश्चर्य की बात है कि भांति भांति के जीवों में एक मनुष्यों में भी भांति भांति के लोग दिखाई दे जाते हैं।लगता है कि ईश्वर ने जितने प्रकार के जीव बनाये हैं, उतने ही प्रकार के मनुष्य भी बना दिये हैं। यह विविधता न केवल रंग, रूप और पहनावे पर लागू है। अपितु विचारों पर भी लागू है।
कविरा इस संसार में, भांति भांति के लोग।
आज का दिन आराम से बिताया। हालांकि कुछ भांति भांति के लोगों की इच्छा न थी कि मैं आराम कर सकूं। पर चूंकि मैं भी भांति भांति के लोगों में से ही हूं, इसलिये भली भांति आराम किया। दोपहर दवा लेने के बाद इतनी गहरी नींद आयी कि लगभग ढाई घंटे सोता रहा। तथा मम्मी के जगाने पर जगा।
प्रेम या द्वेष दोनों ही मन का विषय हैं। किसी से किसी को अपार प्रेम हो सकता है। तो उसी व्यक्ति से द्वेष करने बालों की भी कमी नहीं होती है। वहीं बहुत से ऐसे लोग भी होते हैं जो ऊपरी तौर पर तो असीम प्रेम दिखाते हैं पर मन द्वेष से परिपूर्ण होता है।
कभी कभी इसका उल्टा भी होता है। कभी कभी मनुष्य किसी से द्वेष करना चाहकर भी उससे द्वेष नहीं कर पाता है। कोई अज्ञात संबंध उसे द्वेष करने से रोकता रहता है। जबकि ऊपरी तौर पर उसका आचरण द्वेष युक्त लगता है।
शायद द्वेष और प्रेम भरे आचरण के संघर्ष का परिणाम कुछ ऐसा होता है कि कुछ मनुष्य निर्विकारता की राह पर चल देते हैं। फिर वे कुछ मनुष्य ही तितिक्षा धर्म का पालन कर पाते हैं।
कई बार जब किसी मनुष्य को लगता है कि ईश्वर ने उसके प्रति अन्याय किया है। उसी समय मन का दूसरा कौना भी उसे बता रहा होता है कि शायद ऐसा नहीं है। शायद ईश्वर ने जो किया है, वह अधिक उपयुक्त है।
आज उपन्यास वैराग्य पथ का अगला भाग लिखने की इच्छा थी। पर मन में अनेकों बातों की उथल पुतल चलती रही। फिर आराम करने लगा। तो आज लेखन तो नहीं हो पाया। यदि संभव हुआ तो रात में लेखन करूंगा। नहीं तो कल करूंगा।
आज के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।