डायरी दिनांक ०६/०२/२०२२ - वास्तविक प्रेम
सुबह के सात बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
वास्तविक प्रेम वही है जिसे कोशिश करने पर भी क्रोध में न बदल सकें। और यदि श्रोध के कारण कुछ समय अपना कर्तव्य निर्वहन न हो सके तब भी मन में स्थित प्रेम बार बार कर्तव्य की याद दिलाता रहे।
बहुत दिनों से प्रेम और क्रोध में कुछ जंग सा चल रही थी। वैसे लग रहा था कि क्रोध ही जीतेगा। इस बार प्रेम की हार सुनिश्चित लग रही थी। वास्तव में परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि मनुष्य का विवेक ही उसका साथ छोड़ने लगता है। लगने लगता है कि उसका सब कुछ चालकों की चालाकी में मिटने बाला है। इस विश्वास में कोई भूल भी नहीं है। यदि वर्तमान भी भविष्य की नींव बनता है तो स्थिति और भी ज्यादा खराब लगती है।
कुछ समय से स्थिति को सुधारने के प्रयास में प्रेम की अवहेलना कर रहा था। हालांकि बार बार लग रहा था कि जिस पोलिसी का भुगतान न कर उसे तोड़ने का विचार बना रहा हूं, केवल वही पोलिसी उसके काम आयेगी। शेष सारा भुगतान तो चालकों की चालाकी के भेंट चढेगा।
मम्मी का भी यही विचार था। वास्तव में मम्मी ही बार बार पोलिसी जमा करने को बोल रही थीं। जबकि मेरी राय उस पोलिसी को समाप्त कर प्राप्त धन से ऐरियर का भुगतान करने की थी। मेरी इस राय के पीछे वर्तमान अंधे कानून का भी हाथ था जिसके अनुसार भविष्य के लिये जमा करने का वर्तमान से कोई अर्थ नहीं है।
आखिर कल प्रेम ने क्रोध पर जीत प्राप्त कर ली।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।