डायरी दिनांक ०५/०२/२०२२
दोपहर के तीन बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
आज का दिन आराम से गुजरा। छोटे मोटे व्यवधान के बाद आराम करने को मिला। दूसरी तरफ कल से आज तक बुखार नहीं आया है। हालांकि दवाएं पूरी ले रहा हूं।
धन, बुद्धि, विवेक और कामना सभी एक दूसरे से जुड़े हुए से प्रतीत होते हैं। वैसे निष्काम भाव को ही श्रेष्ठ भाव कहा जाता है। पर यह भी सत्य है कि इस संसार में पूरी तरह कोई भी निष्काम नहीं है।
वसंत का महीना प्रेम का महीना माना जाता है। जब वातावरण शीत को छोड़ कुछ उष्णता को प्राप्त होता है, सर्वत्र हरितमा आने लगती है, ऐसे मौसम में किसे प्रेम नहीं होगा। और जिन्हें प्रेम हो चुका है, उतना तो कहना ही क्या। मन में सारे बंधनों को तोड़ने की भावनाएं हिलोरे लेने लगती हैं। प्रेम में पागल असंभव को भी संभव बना देता है।
वहीं बसंत ऋतु का स्वागत माता सरस्वती की आराधना से बसंत पंचमी के अवसर पर किया जाता है। वैसे कहा यही जाता है कि आज के ही दिन माता सरस्वती अवतरित हुई थीं। पर गहराई से देखने पर कुछ अलग ही प्रतीत होता है।
माता सरस्वती बुद्धि की देवी हैं। अक्सर प्रेम में पागल मनुष्य बुद्धि से कम ही विचार करते हैं। सचमुच प्रेम तो हृदय का ही विषय है। फिर भी हृदय के विषय में भी बुद्धि की पर्याप्त आवश्यकता है। आवश्यकता है कि बुद्धि के प्रयोग से मर्यादा के बांध को न तोड़ा जाये। आवश्यकता है कि हृदय के विषय में भी कुछ तो बुद्धि का भी प्रयोग किया जाये। ताकि कोई आपकी भावनाओं से न खेल सके। वैसे यह बात पुरुष और महिला दोनों के लिये लागू है। पर महिलाएं अपेक्षाकृत अधिक भावुक होती हैं। इसलिये प्रेम मार्ग पर गमन कर रहीं महिलाओं द्वारा बुद्धि का प्रयोग अधिक आवश्यक है।
आज देखा तो पाया कि सुपर लेखन के लिये पुरस्कृत सभी उपन्यासों से सुपर लेखन की श्रेणी हटा दी गयी है। संभवतः प्रतिलिपि द्वारा आगे की तैयारी की जा रही है।
लेखन रिपोर्ट में सुपर लेखन 2 की श्रेणी में ऊपर स्थान बना रहे कुछ धारावाहिकों पर ध्यान दिया तो पाया कि कुछ धारावाहिक सुपर लेखन 2 की घोषणा से बहुत पहले से लिखे जा रहे हैं। लेखकों ने सुपर लेखन 2 की घोषणा के साथ ही पहले से लिखे जा रहे धारावाहिकों में श्रेणी बदल ली। मुझे नहीं लगता है कि यह कोई गलती से हुआ है। लेखकों ने जानबूझकर श्रेणी बदली है। यह निश्चित ही निंदनीय कृत्य है। उम्मीद है कि निर्णय में इस तथ्य का ध्यान रखा जायेगा। तथा जो लेखक पहले से लिखे जा रहे धारावाहिक में श्रेणी बदलकर इस प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं, उन्हें प्रतियोगिता के लिये अयोग्य माना जायेगा।
हर मनुष्य जीवन में कभी न कभी कठिन निर्णय लेता ही है। वास्तव में कठिन निर्णय वही होते हैं जिनके दोनों ही पक्षों में कुछ न कुछ विशेष कमियां हों। उदासीन रह पाना संभव ही न हो। जिस पक्ष में निर्णय लोंगें, वह सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से दोषयुक्त होगा।
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि प्रत्येक धर्म (कर्म) ही किसी न किसी दोष से युक्त होता है। फिर उन दोषयुक्त कर्मों में से किसी एक का चयन ही किसी का आपद्धर्म कहलाता है।
कठिन निर्णय हमेशा आलोचना का विषय बनते हैं। कठिन निर्णय किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं। कठिन निर्णय किसी भी व्यक्ति के विश्वास और धारणा को व्यक्त करते हैं।
आज के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।