डायरी दिनांक १३/०२/२०२२
, शाम के पांच बजकर चालीस मिनट हो रहे हैं ।
आज पठन पाठन भले ही कम हुआ पर साहित्य सेवा का एक काम आज पूरा कर दिया जो कि मेरी अस्वस्थता के कारण अधूरा चल रहा था।
कुछ सोफ्टवेयर पीडीएफ फाइल को एकदम पुस्तक के प्रारूप में बदल देते हैं। फिर पुस्तक पढने का सा आनंद आता है।
प्रेम पर लगे प्रतिबंध को हटाने में बैलिंटाइन जी की महती भूमिका रही थी। इस कार्य को पूरा करने के लिये उन्होंने अपने प्राण भी अर्पित करने पड़े थे।
समूचे विश्व में भारतीय अपेक्षाकृत अधिक उदार रहे हैं। भारत में एक साथ विभिन्न मत फलते फूलते रहे हैं। हालांकि विभिन्न मतों में टकराव भी रहा है। पर सत्य यही है कि कुछ समय में उचित निदान निकाल लेने में भारतीय प्रसिद्ध रहे हैं।
विभिन्न विवादों में एक विवाद वैलंटाइन डे का समर्थन एवं विरोध करना भी है। मेरी राय में उचित दायरे में रहकर, मर्यादा का निर्वहन करने हुए अपने प्रेम को प्रगट करने में किसी भी तरह की बुराई नहीं है।
पर वैलंटाइन वीक के जिस तरह से नामकरण हैं, उस हिसाब से बहुत सी बातें मर्यादा का अतिक्रमण करती हैं। अथवा भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल सी हैं।
मुझे लगता है कि विरोध करने बालों को अपने तरीके में संशोधन करना चाहिये। विरोध हमेशा वैमनस्यता को बढाता है। साथ ही साथ क्रिया प्रतिक्रिया के सिद्धांत के अनुसार विरोध का भी तीव्र विरोध होता है। अब इस परंपरा पर पूरी तरह लगाम लगाना असंभव है।
फिर भी जो संभव है, वह है - इस पाश्चात्य पर्व को भारतीय सभ्यता के ढांचे में ढालना। कुछ कुछ बदलाव से सारी समस्या दूर हो सकती है।
आज के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।