डायरी दिनांक ०७/०२/२०२२
दोपहर के तीन बजकर पचास मिनट हो रहे हैं ।
कल दिन भर में अलग अलग विषयों पर चार डायरी लिखीं पर कोई साहित्यिक लेखन नहीं हो पाया। डायरी के बहाने से लिखने की आदत बनी रहती है।
आज सुबह उपन्यास वैराग्य पथ का ३६ वां भाग लिखकर प्रकाशित कर दिया। दिन में शरीर में बहुत आलस्य सा रहा। अभी कुछ समय पूर्व अपना सैंपल देकर वापस आया हूं। शरीर में थकान जैसी स्थिति बन रही है।
इस संसार में कोई भी अमर नहीं है। पर विद्या प्राप्ति के अवसर पर, देश कल्याण के अवसर पर, नवीन खोजों के अवसर पर मनुष्य को यही समझना चाहिये कि वह अमर है। आखरी क्षणों तक प्रयास करना आवश्यक है।
एक बुजुर्ग व्यक्ति आम की पौध लगा रहा था। खुद राजा उससे पूछ रहा था कि इन वृक्षों के आम तुम तो कभी नहीं खा पाओगे। फिर भी वह बुजुर्ग व्यक्ति अपने काम में लीन रहा।
किंवदन्ती है कि जब विवेकानंद जी शिकागो सम्मेलन में सम्मिलित होने जा रहे थे तब उन्हीं के जहाज पर एक बुजुर्ग जापानी व्यक्ति था जो जहाज पर सवार दूसरे व्यक्ति से चीनी भाषा सीख रहा था। उस व्यक्ति के उत्तर ने विवेकानंद जी को बहुत प्रभावित किया। यदि वह सीखे बिना मर गया तब कोई नुकसान नहीं है। पर यदि मृत्यु से पूर्व उसने एक अन्य भाषा सीख ली तब वह उस भाषा का ज्ञाता बन संसार से विदा होगा।
रेडियोएक्टिविटी की खोजकर्ता मैडम क्यूरी व उनके पति पैरी क्यूरी ने रेडियोएक्टिव कणों की खोज में अपना पूरा जीवन लगा दिया। लगातार रैडियोएक्टिव किरणों के साथ ने उनके स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला। मैडम क्यूरी नोबल पुरस्कार प्राप्त करने बाली विश्व की पहली महिला वैज्ञानिक हैं। उनकी खोज को विज्ञान की दो शाखाओं भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान के अंतर्गत रखा जाता है। तथा मैडम क्यूरी को दो बार नोबल पुरस्कार दोनों ही शाखाओं में दिया गया था।
विश्वास किसी भी मनुष्य के जीवन की राह बनाता है। यदि किसी धूर्त को भी ईश्वर मान लिया जाये तो वह धूर्त से भी अपेक्षित फल मिलने लगता है। यक्ष, किन्नर और भूतों को पूजने बाले भी मनोवांछित फल पा जाते हैं। हालांकि यह श्रद्धा और विश्वास अविधिपूर्ण है।
ये यथा माम् प्रपद्यंते, तां तथैव भजाम्यहम्।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम।