जीवन के अजनबी डगर पे
लाखों चेहरे टकराते है
कदम कदम पर उन चेहरों मे
कुछ चेहरे जाने पहचाने
और है कुछ चेहरे अंजाने
उसी भीड़ से कुछ ऐसे जो
बुरे वक्त के बनते साथी
और उन्हीं में कुछ ऐसे हैं
जो मतलब की यारी रखते
जिनको हम अपना कहते हैं
जिनसे अपने सपने सारे
समय का देखो खेल निराला
वो अपने ही गैर हो गये
और जिन्हें हम गैर समझते
वही गैर अब अपने हो गये
वक्त की है जो जिम्मेदारी
वक्त उसे ही निभा रहा है
कौन है अपना कौन पराया
वक्त हमें ये बता रहा है
वक्त ने जो रिस्ता है बनाया
उन रिस्तों को सदा निभाना
जीवन के अजनबी डगर पर
इन रिस्तों को भूल न जाना...