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जीवन के अजनबी डगर पे

27 सितम्बर 2021

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दूनिया के इस चहल पहल में
जीवन के अजनबी डगर पे
लाखों चेहरे टकराते है
कदम कदम पर उन चेहरों मे
कुछ चेहरे जाने पहचाने
और है कुछ चेहरे अंजाने
उसी भीड़ से कुछ ऐसे जो
बुरे वक्त के बनते साथी
और उन्हीं में कुछ ऐसे हैं
जो मतलब की यारी रखते
जिनको हम अपना कहते हैं
जिनसे अपने सपने सारे
समय का देखो खेल निराला
वो अपने ही गैर हो गये
और जिन्हें हम गैर समझते
वही गैर अब अपने हो गये
वक्त की है जो जिम्मेदारी
वक्त उसे ही निभा रहा है
कौन है अपना कौन पराया
वक्त हमें ये बता रहा है
वक्त ने जो रिस्ता है बनाया
उन रिस्तों को सदा निभाना
जीवन के अजनबी डगर पर
इन रिस्तों को भूल न जाना...
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रचनाएँ
दिल से निकले शब्द
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इस किताब में जो भी कविताएं संकलित है सभी मेरे अंतर्मन से निकले विचार हैं जो विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष की देन है, इस पुस्तक को आप सभी पाठकों से स्नेह मिलेगा यही मेरी कामना है धन्यवाद 🙏
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ठौर ठिकाना ख्वाबों का

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