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पुराने गम और जख्म

20 सितम्बर 2021

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एक पुराने गम ने पूछा
क्या तुम अभी वही रहते हो
हमने कहा चले मत आना
अब हम वहां नहीं रहते हैं
वो घर हमने बदल दिया है
उस गम से ना छूटे पिछा
अब भी याद हमें करता है
आज उसी गम ने जब पूछा
जख्म हरा फिर से हो गया है
बित गया वो चक्र समय का
फिर भी याद ना छूटे उसका
वो लम्हा था ऐसा लम्हा
जब मैं था बस तन्हा तन्हा
ना था कोई साथी अपना
जिससे हम कुछ कहते अपना
जो भी था बस दिल में जब्त था
वक्त का घाव बड़ा गहरा था
उसी पुराने गम से फिर जब
आज हुयी कुछ बात पुरानी
जख्म हुआ फिर हरा पुराना
दर्द उभर आया चेहरे पर
जख्म सभी भर गये थे गहरे
जिन पर लगा था वक्त का मरहम....
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रचनाएँ
दिल से निकले शब्द
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इस किताब में जो भी कविताएं संकलित है सभी मेरे अंतर्मन से निकले विचार हैं जो विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष की देन है, इस पुस्तक को आप सभी पाठकों से स्नेह मिलेगा यही मेरी कामना है धन्यवाद 🙏
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ठौर ठिकाना ख्वाबों का

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