कुछ खट्टे कुछ मिठे अनुभव
जिनसे सबक सिख इस पथ पर
गिरा कभी फिर बढ़ा सम्भल कर
कभी कहीं रेतीला पथ था
और कहीं बस कंकड़ पत्थर
खा खाकर ठोकर उस पथ पर
आगे सदा बढ़ा जो हर पल
भूलके अपने पांव के छाले
और भूलकर लगा जो ठोकर
जो होते है सफल यहां पर
पूछ उन्ही की होती हर पल
कितने चोट हैं खाये तुमने
और लगे है कितने ठोकर
इसका ना एहसास किसीको
दर्द सहा है कितना गहरा
इसका ना अंदाज किसीको
वक्त का मरहम जख्म को भर दे
पर अतीत का घाव है गहरा
जख्म हरा हो जाता है जब