जिन्दगी से हमें कोई गिला नहीं
जो समझे हमें वो मिला ही नहीं
यूं ही अजनबी राहों पे चलते रहें
मंजिल हैं कहां कुछ पता नहीं
था ख्वाब कई मेरी निगाहों में
इस बात का अब कोई सिला नहीं
जो चाहा कभी मिल जाये हमें
वो आज तलक मुझे मिला नहीं
अब तो चाहत भी नहीं ढूंढे उसे
जो चला गया है दूर हमसे
पलकों से ख्वाब सब हटते गये
उन राहों से हम बस कटते गये
जो लिखी थी हमने इबारते
वो पन्ने सारे फटते गये
जो एक बार हम भटक गये
तो आज तलक ना राह मिली
अब इन्हीं अजनबी राहों पर
हम चलते रहे और बढ़ते रहे.....