अब फ़र्क नहीं पड़ता के हार हो या जीत हो
सब ठहर गया है जैसे के रास्ते हो या मंजील हो
अब ब्यग्रता नहीं है मन के भीतर भी और बाहर भी
था कभी मन उदास थी जीवन में भागम भाग
अब और नहीं ऐ जिन्दगी ठहर जा
तेरे सबक सीखते सीखते थक सा गया हूं मैं
अब तो बस चाहत है असीम शांति की
जिससे जीवन में बस सुकुन मिले उसी क्रांति की
सबकुछ पाने की चाहत में बहुत कुछ खो दिया हमने
थी चाहत सपने सजाने की हर हाल में उसको पाने की
कहां तक करें हिसाब के क्या खोया क्या पाया
अब तंग आ चुके हैं इस खोने और पाने की जद्दोजहद से
समंदर की लहरों का शोर थम गया है जैसे दरीया में समाकर
अब अपनी भी यही चाहत है की हर शोर थम जाये
ये विचलित और उद्वेलित मन कहीं रम जाये.......