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न गिरना अपनी नज़र में

22 अक्टूबर 2021

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गिरने दो मुझे जो मैं गीरता हूं
गीर गीर के संभलना सीखूंगा
चलना जो मुझे नहीं आता है
खा खाकर ठोकर जमाने की
इक दिन चलना भी सीख लूंगा
जो ढल रहा है आज ये सूरज
लौटेगा सुबह कल फिर प्यारे
हर रात का अंधियारा टूटता है
उम्मीद की किरण जो जलती रहे
कुछ भी करना दूनिया में भले
बस अपनी नजर में गीरना मत
दुनिया की नजर का क्या कहना
देखा है सदा ये बदलती है
दुनिया की नजर में गिरकर के
आशान है फिर से उठ जाना
जो अपनी नजर में गिरा कभी
तो फिर ना कभी उठ पायेगा
सबकुछ दुनिया में टूट जाये
उम्मीद कभी बस टूटे ना
जो टूट गया उम्मीद तेरा
तो फिर न सम्भल तूं पायेगा
जो दूरी तय करनी है तुझे
तूं उसे नहीं कर पायेगा
मंजिल तो सामने होगी तेरे
पर उसे नहीं तूं पायेगा...
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रचनाएँ
दिल से निकले शब्द
0.0
इस किताब में जो भी कविताएं संकलित है सभी मेरे अंतर्मन से निकले विचार हैं जो विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष की देन है, इस पुस्तक को आप सभी पाठकों से स्नेह मिलेगा यही मेरी कामना है धन्यवाद 🙏
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