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जो मेरे द्वारे तू आए

7 नवम्बर 2021

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जो मेरे द्वारे तू आए

प्राण-मरुस्थल खिल-खिल जाए

साँस-डाल  भी  हिल-हिल गाए

छोड़   झरोखे   राज  महल  के

जो     मेरे    द्वारे    तू    आए ।

जुड़े  सभा  सपनों  की आकर

आँखों  की  सूनी  जाजम  पर

खेल   न   पाएँ    बूँदें    खारी

पलकों की अरुणिम चादर पर

चहल-पहल  हो मेलों जैसी

गुमसुम अधरों पर गीतों की

फूल उदासी  झड़े  धूल-सी

खिले जवानी नभ दीपों-सी

उमर चाल छिपते सूरज-सी

घबराकर  पीली  पड़  जाए ।

छोड़  झरोखे राज महल के

जो   मेरे   द्वारे   तू   आए ।

शुष्क विटप-से सूखे तन से

फूट  पड़ें  अमृत  के  धारे

दीपदान  करने   को  दौड़ें

खुशियाँ बुझे जिया के द्वारे

संगीतमयी  संध्या-सी हों

डूबी-सी धड़कन की रातें

मानस  की  चौपाई  जैसे

महकें अलसायी-सी बातें

झरे  मालती  रोम-रोम  से

कस्तूरी  गंध   बदन  छाए

छोड़ झरोखे राज महल के

जो   मेरे   द्वारे   तू   आए ।

उतर चाँदनी नील गगन से

पूरे  चौका  मन  आँगन में

चुनचुन मोती जड़े रातभर

तारिका फकीरी  दामन में

थपकी   दे   अरमान   उनींदे

अंक     सुलाए     रजनीगंधा

भर-भर प्याली स्वप्नसुधा की

चितवन   से   ढुलकाए   चंपा

भोर भए पंछी-बिस्मिल्लाह

शहनाई   ले   रस  बरसाए ।

छोड़ झरोखे राज महल के

जो   मेरे   द्वारे   तू   आए ।

अशोक दीप

जयपुर

8278697171

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