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खुद की तराश

Rajni kaur

5 अध्याय
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मेरे किताब का "नाम ख़ुद की तराश" है। खुद की तराश किताब में मैंने कुछ कविताएं लिखी हुई है। मैं यह नहीं कहती कि मैं बहुत अच्छी कावित्री हु। मैंने अभी कविताएं लिखना शुरू किया है। और मैं कविता लिखना सीख रही हुं। और यह कविताए मेरी छोटी सी पहल है। मैंने अपनी इस किताब में कुछ कविताएं लिखी हैं।‌उन्हीं कविताओं में से एक कविता जिसका नाम ख़ुद की तराश है। इस कविता में मैंने ख़ुद का दुःख सांझा किया है। हमारे बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि दुख बांटने से कम होता है। अगर हम दुख अपने अंदर ही छिपाकर रखते हैं, तो वह दुख और भी बढ़ता जाता है। और इन्सान अंदर ही अंदर खोखला होता जा रहा होता है। देखो यह सब जानते है कि पढ़ाई मानव के लिए कितनी जरूरी है। बिना ज्ञान के मानव जीवन मानों जैसे जानवर है। ज्ञान प्राप्त करना हर किसी का अधिकार है। लेकिन आज कल तो यह अधिकार भी पैसे से मिलता है। अगर किसी स्कूल में एडमिशन करवाना है, तो कोई ग्रेड , कोई नंबर पुछता। अगर पुछते है तो, फीस है आपके पास। बिना पैसों के कोई एडमिशन नहीं देता। जिसके पास पैसा है। वहीं पड़ सकता है। जिसके पास पैसा नहीं है।वह पढ़ने में चाहें कितना भी अच्छा हो, उसे मजदूरी ही करनी पड़ती है। हमारे भारत देश में ना एक बात कमाल की है। जिसके माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई पर पैसे खर्च करते हैं। वह बच्चे पढ़ते नहीं है। लेकिन फिर भी वह पैसों के दम आगे पढ़ते हैं। और पैसों के दम पर ही उन्हें अच्छी नौकरी भी मिल जाती है। ओर दुसरी जो बच्चे बढ़ने में होशियार होते हैं। उनके माता-पिता के पास इतना पैसा नहीं होता कि वह अपने बच्चों को पढ़ा सके। जैसे कि हम पर ही लगालो। हम सभी भाई बहन होशियार है। कोई अपनी कक्षा में सैकिड, कोई थर्ड पोजिशन पर। लेकिन उसका क्या फ़ायदा हुआ। ओर हमारी कक्षा के वो विद्यार्थी जिन्होंने कभी एग्जाम में 8 जां फिर कभी 10 माक्स आते थे। वह अभी बीए सैकिड यीयर में है। उन्हें देखकर पता नहीं क्यों अजीब सा महसूस होता है। उनके सामने जाने से भी डर लगता है कि कहीं वह हमें चिढ़ाए ना कि क्लास में सारा दिन पढ़ने वाले अब यूंही धक्के खाते हैं ‌। जब आगे पढ़ नहीं पाएं। यही कारण है कि हमारे देश में अमीर और भी अमीर होते जा रहे हैं। और ग़रीब और भी गरीब होते जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि भारत देश में ग़रीबी कम नहीं होती। 

khud ki tarash

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पुस्तक के भाग

1

खुद की तराश

26 मार्च 2024
2
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1.मैं खुद को, तराश रहीं हुं। समय , तेज़ी से भाग रहा है। लेकिन मेरी,  तराश अभी अधुरी है। जीवन जीने के लिए, मक़सद जरूरी है। 2.जब खुद की, तराश की तो। पता चला, कोई मकसद ही नहीं है। बिना मक़सद के, म

2

मंजिलें

26 मार्च 2024
2
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1.मंजिलें तुम्हें, ख़ुद तराश करनी है। किसी दुसरे की , क्यो हांमी भरनी है। कभी किसी दुसरे के , सहारे मत चलना। जब उड़ान तुम्हें, खुद भरनी है। 2.मंजिलें होती है, थोड़ी कठिन। कठिनाइयों से तुम, कभी डर

3

जुन महीना

27 मार्च 2024
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1.जुन महीना आता है। गर्मी साथ लाता है। पंखे, कूलर ,फ्रिज चलाने का  । समय यह लाता है। 2.जुन महीना आता है। गलियों में, कुल्फी वाला आता है। आवाजें हमें लगाता है। आओ भाई आओ गर्मीयों में ठंडी-ठंडी

4

खुशियां

27 मार्च 2024
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1.हम खुशियां आप की बोल रहे हैं। आप को अंदर से फरोलं रहें हैं। खुद को क्यों? फिक्रों के तराजू में तोल रहें हैं। आप खुद की, जिंदगी को क्यों रोल रहें हैं। 2.फिक्रों में आप खुद को, भुल रहें हैं। फिक्

5

जी तरसाना

29 मार्च 2024
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1.जिसके पास घर नहीं है। वह झोपड़ी में भी रहना चाहता है। जो झोपड़ी में रहता है। वह कच्चे घर की आस करता है। 2.जिसके पास कच्चा घर है। वह मकान पक्का बनाना चाहता । जिसके पास पक्का घर है। वह कोठी में

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