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जो तुम ना हो...भाग 1

17 नवम्बर 2021

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अंजली भले ही एक छोटे से शहर से थी पर उसके ख्वाब बहुत बड़े थे। वह इंजीनियरिंग करना चाहती थी। किसी भी बड़े शहर की लड़की के लिए यह एक आम बात हो सकती है। किंतु अंजली जहां रहती थी वहां के लोगों की मानसिकता बहुत ही संकीर्ण थी। वहां कोई भी लड़कियों को ज़्यादा पढ़ाने के पक्ष में नहीं था। १२वीं करने के बाद या तो लड़कियों को घर के काम सौंप दिए जाते थे या फिर उनको कोई छोटा सा खाना पकाने का कोर्स या सिलाई कढ़ाई का कोर्स करा दिया जाता था। बहुत कम परिवार थे जो लड़कियों को कॉलेज भेजते थे। और इंजीनियरिंग या मेडिकल तो बहुत कम ही कर पाती थीं।

अंजली अपने आप को बहुत खुशनसीब मानती थी कि उसके माता-पिता ने कभी भी उसे पढ़ाई-लिखाई करने से नहीं रोका। उसे भी उसके भाई अर्जुन की तरह हर सुविधा उपलब्ध कराई गई। हालांकि मौहल्ले के लोगों को अंजली का इतना पढ़ना लिखना नागवार था । और वह अपनी असहमति जताते रहते थे किंतु उसके माता-पिता ने कभी किसी की बात को ज़्यादा अहमियत नहीं दी। वह हमेशा यही कहते थे कि उनके लिए अर्जुन और अंजली में कोई फर्क नहीं है।

अंजली स्वभाव से बहुत चंचल थी। हमेशा हंसती मुस्कुराती रहती थी। कद काठी तो उसकी ज़्यादा नहीं थी पर दिखने में बहुत सुंदर थी। दूध सा गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आंखें, तीखे नैन-नक्श, लंबी सुराहीदार गर्दन, सूरजमुखी के समान खिला चेहरा, काले घने बाल जिसे वह ज़्यादातर खुले रखती थी और छरहरी काया। मौहल्ले की सभी लड़कियों की लीडर थी। किसी को कोई भी काम होता था तो वह अंजली को ही कहती थीं।

आज अंजली का इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था। उसकी सभी सहेलियां उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थीं। अंजली को आते देख सब उसकी तरफ भागी। " कैसा रहा परिणाम? हमें पता है तू पास हो गई होगी।" सब ने एक स्वर में बोला।

अंजली पहले तो कुछ नहीं बोली फिर हंसते हुए कहा " मैं पास हो गई!" 

यह सुनते ही सबने अंजली को गले लगा लिया। फिर अंजली सब को पास के स्टॉल पर ले गयी और सब ने जम कर समोसा पार्टी करी।

अंजली के पास होने की खुशी में उसकी मां ने मौहल्ले में सब के यहां मिठाई बांटी। सबने ऊपर से बधाई दी किंतु पीठ पीछे कुछ लोगों ने काफी निंदा करी।  " अरे! लड़कियों को कोई इतना पढ़ाना लिखना चाहिए क्या?" रत्ना की मां बोली। "और क्या! ज़्यादा था तो कॉलेज भेज कर ३साल की कोई डिग्री करा देते।" लक्ष्य की मां ने कहा।

विनय की मां ने तो हद ही पार कर दी जब उन्होंने अपनी संकीर्ण सोच सबके सामने रखी," इतने बड़े कॉलेज में लड़कों के साथ पढ़ेगी तो बिगड़ जाएगी। भगवान ना करे कुछ ऊंच नीच हो गई तो कहां मुंह छुपाएगी।"  सब ने उसकी बात पर सहमती जताई।

यह सब अंजली को अपनी सहेली सुमन के ज़रिए पता चला तो वह बहुत दुखी हुई। तब उसके माता-पिता ने उसे समझाया कि उसे लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। उसे केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। अंजली ने ठान लिया कि अब से वह लोगों की बातों को दिल पर नहीं लेगी और अपना सारा ध्यान एक सफल इंजीनियर बनने में लगाएगी।


उसका कॉलेज घर से एक घंटे की दूरी पर था। इसलिए उसके माता-पिता ने उसे स्कूटी लेकर दी जिससे वह आसानी से बिना बसों में धक्के खाते कॉलेज पहुंच सके।

इस पर भी मौहल्ले के लोगों को एतराज़ था। पर अंजली ने मन बना लिया था कि वह सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करेगी और कोई क्या बोलता है इससे अपने आप को दूर रखेगी।


दो महीने गुज़र चुके थे। अंजली पूरे मन से अपनी पढ़ाई में लगी हुई थी। कक्षा में सभी विषयों के अध्यापक अंजली को बहुत पसंद करते थे। क्योंकि वह बहुत मेहनती और आज्ञाकारी थी। अंजली भी नये माहोल में ढ़ल चुकी थी। बस उसे एक बात बहुत खटकती थी कि 60 छात्रों की कक्षा में केवल 5 ही लड़कियां थीं। 

अंजली के कॉलेज के साथ ही मेडिकल कॉलेज था। और उसके साथ एक बहुत बड़ा मैनेजमेंट स्टडीज़ का कॉलेज था। वह पूरा कैम्पस कॉलेज ज़ोन के नाम से जाना जाता था। अंजली अपनी कक्षा की सहेलियों के साथ खाली समय में कैम्पस में घूमने भी चली जाती थी।


उस दिन अंजली बहुत जल्दी में थी। पहला लेक्चर उसके देर से निकलने की वजह से आज छूट जाएगा।  जल्दी पहुंचने के चक्कर में उसने उल्टी दिशा में स्कूटी मोड़ ली और तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ने लगी। तभी अचानक सामने से एक बाइक आ गई और अंजली की स्कूटी उस बाइक से टकरा गई और पलट गई। अंजली सड़क पर गिर पड़ी। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। 

"आपको चोट तो नहीं लगी?" अभिनव ने उसकी तरफ आते हुए कहा।

"तुमने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी मुझे ऊपर पहुंचने में। पापा ने बाइक क्या दे दी तुम तो अपने को जॉन अब्राहम समझने लगे। देख कर नहीं चला सकते थे?" अंजली अपने घावों को देखते हुए बोलती ही चली जा रही थी।

" अरे, वाह! उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। नो एंट्री में स्कूटी लेकर तुम आ रही थीं। और तुम मुझ पर ही इल्ज़ाम लगा रही हो।" अभिनव बिगड़ते हुए बोला।

अंजली को जल्द ही अपनी ग़लती का एहसास हो गया। वह चुप चाप अपने हाथों पर लगी चोट को देखने लगी। तभी अभिनव ने अपनी बाइक से एक डब्बा निकाला और उसके पास आकर बोला," दिखाओ, मैं दवाई लगा देता हूं।"

अंजली ने गुस्से से उत्तर दिया," रहने दो। मैं मेडिकल रुम में जाकर पट्टी करवा लूंगी।"

" बिल्कुल सही कहा। और जब वह गिरने का कारण पूछेंगे तो कृपया सच बताना।" अभिनव ने पलट जवाब देते हुए कहा।

"अच्छा लाओ, मैं खुद लगा लूंगी" अंजली चिड़ कर बोली।

" मेरे ख़्याल से ये काम मैं बेहतर कर सकता हूं। मेडिकल स्टूडेंट  हूं।" अभिनव ने उससे दवाई का डब्बा छीनते हुए कहा।

अभिनव ने डब्बे में से दवाई निकाल कर अंजली की चोट पर लगानी शुरू कर दी। अंजली दर्द से कराह रही थी।

" किसने कहा था नो एंट्री में घुसने के लिए। अब ले लो मज़े।" अभिनव ने हंसते हुए कहा।

अंजली चुपचाप दवाई लगवाती रही। उसने एक नज़र उठा कर अभिनव पर डाली। ऊंचा लंबा कद, गठीला बदन, माथे पर गिरते बाल, आंखें छोटी थीं पर उनमें बहुत गहराई थी, नैन नक्श इतने तीखे नहीं थे पर चेहरे पर चमक बहुत थी।

" यह लो , कर दी तुम्हारी पट्टी। अब दर्द तो नहीं है?" अभिनव ने मुस्कुराते हुए पूछा।

" थैंक्स।" अंजली ने धीमे स्वर में कहा।

" वैसे ऐसा कौन सा ख़ज़ाना लुट रहा था जो तुम नो एंट्री में भागी चली आ रही थीं।" अभिनव ने उसकी स्कूटी को उठाकर साफ करते हुए कहा।

" आज विनय सर का बहुत खास लेक्चर था। देर ना हो जाए इसलिए जल्दी पहुंचने के चक्कर में यहां घुस गई।" अंजली बोली और दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।

" इंजीनियरिंग कॉलेज में हो। " अभिनव बोला।

" हां, फर्स्ट ईयर। और तुम?"

" मेडिकल, सैकिंड ईयर।"

" एक बार फिर से शुक्रिया....अ... नाम तो शायद पूछा ही नहीं हमने एक दूसरे का।" अंजली ने कहा

" मेरा नाम अभिनव चौहान है। और तुम्हारा?"

" अंजली गुप्ता।"

दोनों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाये। 

" मैं चलती हूं , वैसे ही बहुत देर हो गई है।" अंजली ने घड़ी देखते हुए कहा।

दोनों अपने अपने गंतव्य की ओर बढ़ गये। पर यह उनकी आखिरी मुलाकात नहीं थी। कुछ दिन बाद दोनो फिर रेड़ लाइट पर मिले। अभिनव ने अंजली को देखते ही हाथ हिलाया और पूछा," तुम यहीं कहीं रहती हो क्या?"

"हां, मंडी के पास बी-१ ब्लाक में।" अंजली बोली।

" अरे! मैं बी-२ ब्लाक में!" अभिनव ने आश्चर्य से कहा।

फिर दोनों अपनी बाइक और स्कूटी पर साथ कैम्पस रोड़ तक पहुंचे। 

" हम दोनों एक-दूसरे के इतने पास रहते हैं पर कभी देखा नहीं।" अंजली ने हैरान होकर कहा।

" कल से एक साथ चलें।" अभिनव ने हंसते हुए कहा।

" ना बाबा! हाथ जुड़वा लो। किसी ने देख लिया तो बातें बनाएंगे। तुम तो जानते ही हो हमारे यहां के लोगों की मानसिकता कितनी संकीर्ण है। बात का पतंगड़ बन जाएगा।" अंजली ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

अभिनव बहुत तेज़ हंसा और बोला," मज़ाक कर रहा था। मैं जानता हूं कि हमारे यहां क्या माहौल है। मेरे माता-पिता भी इसी मानसिकता के शिकार हैं।"

"चलो मैं चलती हूं।" कहकर अंजली चली गई।

उस दिन के बाद दोनों रोज़ रेड लाइट पर मिलते। एक-दूसरे को देख मुस्कुराते  और कैम्पस तक साथ जाते। एक दिन कैम्पस गेट पर पहुंच कर अभिनव ने अंजली को बोला,"आज थोड़ी देर के लिए फ़ूड जंक्शन पर मिलोगी। बहुत ज़रूरी काम है।" 

" क्या काम है? अभी बता दो।" अंजली ने उत्सुकता से पूछा।

" अभी बहुत ज़रूरी लैक्चर है। दोपहर लंच टाइम में मिलते हैं।"  अभिनव ने कहा।


दोपहर को अंजली अपनी सहेली के साथ फ़ूड जंक्शन पर पहुंची। अभिनव वहां अपने दोस्त के साथ पहले से ही इंतज़ार कर रहा था।

" हां बोलो। जल्दी। वापस भी जाना है। " अंजली ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

" घोड़े पर सवार रहती हो हमेशा। सांस लेती हो या उसको भी बोलती हो कि जल्दी  आ वरना मैं जा रही हूं।" अभिनव ने हंसते हुए कहा। 

अंजली ने गुस्से से अभिनव को देखा। फिर बोली ," ये मेरी सहेली दिव्या है।"

" ये अमित है।" अभिनव ने अपने दोस्त की तरफ देखते हुए कहा।

उन्होंने कुछ खाने के लिए ऑर्डर दिया। फिर अभिनव बोला, " अंजली मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। मेरे चाचा की बेटी मिनाक्षी १२वीं में है। कुछ समय बाद फाइनल पेपर हैं। उसने साइंस लिया है । पर गणित और फिजिक्स में थोड़ी कमज़ोर है। अंजली तुम कुछ समय उसको दे सकती हो क्या? अगर वो अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो जाती है तो ही चाचा-चाची उसको आगे पढ़ने देंगे। वरना उसकी शादी कर देंगे।"

अंजली कुछ देर चुप चाप कुछ सोचती रही। फिर यकायक जैसे एक बिजली सी कौंधी उसके ज़हन में और वह बोली,

" ठीक है अभिनव। पर मेरे पास रात 8 से 9 बजे का ही समय खाली होता है। क्या वह उस समय आ सकती है।"

अभिनव पहले तो कुछ सोचने लगा फिर बोला," ठीक है। चाचा चाची को मैं मना लूंगा। उसको तुम्हारे घर लाने और ले जाने की जिम्मेदारी मेरी। इस बात पर तो उनको कोई एतराज़ नहीं होगा। थैंक्स अंजली। "


" अभिनव मुझे अच्छा लगा ये जान कर कि तुम्हारी सोच हमारे मौहल्ले के लोगों की तरह नहीं है। तुम अपनी बहन मिनाक्षी को आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हो। तुम्हारा यह एक कदम उसकी आने वाली पूरी ज़िंदगी बदल देगा। उसे आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी। इसलिए थैंक्स तो मुझे कहना चाहिए ।" अंजली ने गंभीर स्वर में कहा।

"आज रात ठीक आठ बजे में मिनाक्षी को लेकर तुम्हारे घर पहुंच जाऊंगा।" अभिनव ने मुस्कुराते हुए कहा।

" ठीक है। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगी।" अंजली मुस्कुराते हुए बोली।

क्रमशः

© आस्था सिंघल

Anita Singh

Anita Singh

बहुत सुन्दर 👌

27 दिसम्बर 2021

Astha Singhal

Astha Singhal

28 दिसम्बर 2021

आभार आपका 🙏

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर शुरुआत 👌 👌

24 दिसम्बर 2021

Astha Singhal

Astha Singhal

28 दिसम्बर 2021

धन्यवाद 🙏

कविता रावत

कविता रावत

सच आज भी लडकियों को कई लोगों द्वारा भेदभाव के चश्‍में से देखा जाता है। संकीर्ण मानसिकता के शिकार लोगों से हमेशा बचना चाहिए । पुरूष तो छोडिए लेकिन जब एक स्‍त्री स्‍त्री होकर स्‍त्री के विरोध में खडी होती है तो दुख होता है बहुत अच्‍छी प्ररेक कहानी लगी

17 दिसम्बर 2021

Astha Singhal

Astha Singhal

17 दिसम्बर 2021

बहुत बहुत आभार 🙏

Jyoti

Jyoti

बहुत बढ़िया

11 दिसम्बर 2021

Astha Singhal

Astha Singhal

17 दिसम्बर 2021

आभार 🙏

संजय पाटील

संजय पाटील

अच्छी कहानी है 👌👍

20 नवम्बर 2021

Astha Singhal

Astha Singhal

17 दिसम्बर 2021

धन्यवाद 🙏

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रचनाएँ
जो तुम ना हो...
5.0
ये कहानी है अंजली और अभिनव की जो समाज के रूढ़िवादी विचारों के चलते एक दूसरे से अलग हो गए। दोनों ने अपने परिवार को सम्मान देने के खातिर अपने प्यार की कुर्बानी दे दी। और एक दूसरे की ज़िंदगी से अलग हो गए। पर नियती को कुछ और ही मंजूर था। दोनों एक बार फिर मिले। पर जब मिले तो उनके सामने बहुत सी कड़वी सच्चाइयां सामने आईं। देखना यह है कि क्या वो दोनों इन सच्चाइयों को जानने के बाद एक हो पाएंगे? या समाज उनके प्यार का गला फिर घोंट देगा।
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जो तुम ना हो....भाग 7

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<p>अभिनव और अंजली एक-दूसरे को बहुत देर तक बांहों में भर रोते रहे। जात - बिरादरी की रुढ़िवादी जंजीरों

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