इक्कीसवीं सदी में जी रहे हम आधुनिक लोग.. डिजिटल भारत का स्वप्न देखतीं हुईं आँखें..यह नहीं देखना चाहतीं कि पड़ोस में कौन मर गया ..क्यूँ मर गया...
...फरीदाबाद के सुनेपड गाँव में दबंगों ने चंद रोज़ पहले एक दलित परिवार की मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी , जिसमें ढाई वर्ष के एक बच्चे और मात्र 10 माह की बच्ची की मौत हो गई ...वहीँ माता -पिता सरकारी अस्पताल में ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं....प्रश्न यह नहीं कि किसने किसको जलाया , प्रश्न यह है कि मानवीयता की सभी हदें तोड़कर हम मानव होने का दंभ भरते हैं !रंजिश भी है तो क्या ज़िंदा फूँक देना ही मात्र विकल्प शेष बचता है !
यह मात्र एक घटना है ऐसी अनगिनत घटनाएँ नित्य प्रतिदिन
घटतीं हैं और हम मूक दृष्टा बनकर रह जाते हैं...
कोई घर में घुसकर पूरा परिवार एक साथ नष्ट कर देता है तो कोई अपने चंगुल में न फँसने वाली किसी युवती पर तेज़ाब डालता देता है ...
...कहीं किसी दो साल की बच्ची पर भी अपनी वासना का जोर आज़माने से नहीं चूकते हम ..और कहीं अपने क़रीब से क़रीब रिश्ते को भी तार -तार करने से नहीं हिचकिचाते ....
किसी की कलम की मुखर आवाज़ को दबा दी जाएगी...किस की ह्त्या घर में घुसकर कर दी जाती है .... ..
अख़बारों में छपीं बलात्कार ,चोरी ,डकैती ,लूट ,की घटनाएँ अब रोज़मर्रा की बातें हैं ..
हमें हर किसी से शिकायत है ....हमें हर व्यक्ति में , हर संस्था में दोष दिखाई देते हैं ..मात्र स्वयं के भीतर झाँकने का एक क्षण हमारे पास नहीं ..स्वयं का आकलन करने का समय हमारे पास नहीं ...
आख़िर सभ्य-समाज किस मुक़ाम पर है ...आख़िर यह सभी का विषय है ..इस बात पर खुश होने का समय नहीं कि चलो मेरे साथ या मेरे किसी प्रियजन के साथ ऐसा नहीं हुआ ...आज किसी और के साथ जो घटित हो रहा है तो इस बात की आशंका और भय से हम मुक्त नहीं हो सकते कि कल अपने साथ या अपने किसी प्रियजन के साथ यह होना असंभव है ....अवश्यम्भावी है कि किसी घटना का शिकार हम स्वयं हों !!
कहने को तो हमने मंगल को पा लिया ....पर सामाजिक सन्दर्भों में सभ्यता के किस निम्न स्तर पर आ खड़े हुए हैं हम ...!!
चेतना होगा हमें ... केवल किसी एक समुदाय ,एक जाति या धर्म का विषय नहीं है ये ...ये विषय और इससे जुड़ा हर प्रसंग इस पूरे समाज का विषय का है ...दशहरा और विजय दशमी मनाते हुए यह सोचना होगा कि आख़िर इस दहशतगर्दी ,हैवानियत ,अमानवीयता की राह पर चलते -चलते ये कहाँ आ गए हम ...?