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ये कहाँ आ गए हम ?

22 अक्टूबर 2015

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इक्कीसवीं सदी में जी रहे हम आधुनिक लोग.. डिजिटल भारत का स्वप्न देखतीं हुईं आँखें..यह नहीं देखना चाहतीं कि  पड़ोस में कौन मर गया ..क्यूँ मर गया...

...फरीदाबाद के सुनेपड गाँव में दबंगों ने चंद रोज़ पहले एक दलित परिवार की  मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी , जिसमें ढाई वर्ष के एक बच्चे और  मात्र 10 माह की बच्ची की मौत हो गई ...वहीँ माता -पिता सरकारी अस्पताल में ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं....प्रश्न यह नहीं कि किसने किसको जलाया , प्रश्न यह है कि मानवीयता की सभी हदें तोड़कर हम मानव होने का दंभ भरते हैं !रंजिश भी है तो क्या ज़िंदा फूँक देना ही मात्र विकल्प शेष बचता है ! 

यह मात्र एक घटना है ऐसी अनगिनत घटनाएँ नित्य प्रतिदिन 

घटतीं हैं और हम मूक दृष्टा बनकर रह जाते  हैं...

कोई घर में घुसकर पूरा परिवार एक साथ नष्ट कर देता है तो कोई अपने चंगुल में न फँसने वाली किसी युवती पर तेज़ाब डालता देता है ...

...कहीं किसी दो साल की बच्ची पर भी अपनी वासना का जोर आज़माने से नहीं चूकते हम ..और कहीं अपने क़रीब से क़रीब रिश्ते को भी तार -तार करने से नहीं हिचकिचाते ....

किसी की कलम की मुखर आवाज़ को दबा दी जाएगी...किस की ह्त्या घर में घुसकर कर दी जाती है .... ..

अख़बारों में छपीं बलात्कार ,चोरी ,डकैती ,लूट ,की घटनाएँ अब रोज़मर्रा की बातें हैं ..

हमें हर किसी से शिकायत है ....हमें हर व्यक्ति में , हर संस्था में दोष दिखाई देते हैं ..मात्र स्वयं के भीतर झाँकने का एक क्षण हमारे पास नहीं ..स्वयं का आकलन करने का समय हमारे पास नहीं ...

आख़िर सभ्य-समाज किस मुक़ाम पर है ...आख़िर यह सभी का विषय है ..इस बात पर खुश होने का समय नहीं कि चलो मेरे साथ या मेरे किसी प्रियजन के साथ ऐसा नहीं हुआ ...आज किसी और के साथ जो घटित हो रहा है तो इस बात की आशंका और भय से हम मुक्त नहीं हो सकते कि कल  अपने साथ या अपने किसी प्रियजन के साथ यह होना असंभव है ....अवश्यम्भावी है कि किसी घटना का शिकार हम स्वयं हों !! 

 कहने को तो हमने मंगल को पा लिया ....पर सामाजिक सन्दर्भों में सभ्यता के किस निम्न स्तर पर आ खड़े हुए हैं हम ...!!

चेतना होगा हमें ... केवल किसी एक समुदाय ,एक जाति या धर्म का विषय नहीं है ये ...ये विषय और इससे जुड़ा हर प्रसंग इस पूरे समाज का विषय का है ...दशहरा और विजय दशमी मनाते हुए  यह सोचना होगा कि आख़िर इस दहशतगर्दी ,हैवानियत ,अमानवीयता की राह पर चलते -चलते ये कहाँ आ गए हम ...?

मंशी

मंशी

सभी गुनाह एक सरीखे हैं, लेकिन उनसे बचने के संकड़ो तरीके हैं, लोगों को गुनाह करने से बचना चाहिए,और गुनहगार को समझना चाहिए,, •----धन्यवाद -----•

13 मार्च 2016

भावना तिवारी

भावना तिवारी

आभार आदरणीया वर्तिका जी

25 अक्टूबर 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

यह सभी देश की गंदी राजनीति का परिणाम है लेकिन आग लगाने वालों को शायद यह मालूम नहीं कि आग बढ़काने वालों को भी हाथ जलने का डर तो सताता ही रहता है

25 अक्टूबर 2015

वर्तिका

वर्तिका

सार्थक लेख भावना जी! सच में, आख़िर सभ्य-समाज किस मुक़ाम पर है ये हम सब के सोचने का विषय हैं! अपने अंदर परिवर्तन लाने से ही बात बनेगी!

23 अक्टूबर 2015

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रचनाएँ
drbhavanatiwari
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शब्द जो ब्रह्मरूप हैं ,शब्दों का नाद सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रवाहित है ,हम उच्चारित या श्रवण करते हैं,वह हमें बाह्य और आतंरिक दोनों रूप प्रभावित करता है ! सुनिश्चित करें कि क्या सुनें ,क्या बोलें ! क्या लिखे हमारी लेखनी जो माँ सरस्वती की विशेष अनुकम्पा का प्रतीक है !आइए आपका स्वागत है भाावों के धरातल पर भावांकन के लिए !
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खेल-खेल में

13 मई 2015
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ख़ूब सभाएँ करो बैठ अब सासें चलना बंद हो गया .!! सत्य अपाहिज कैद जेल में , जान गई बस खेल-खेल में ! निर्बल मौन साधने से क्या उनका छलना मंद हो गया ..!! दंड भोगते बिना बात ही , अपराधी दिन और रात भी ! सत्ता की कालिख गहराई मोह ,न्याय से भंग हो गया .......!! डॉ .भावना तिवारी

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बुन लिया ख़ुद को

26 अप्रैल 2015
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तंज़ सारे मरोड़कर रंज़ सारे छोड़कर पंथ अपना चुन लिया मैने ख़ुद को इन अक्षरों में बुन लिया मैने ..!!

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तुमको शाप लगे विरहन का

14 मई 2015
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मुझ बिन चैन,न आए पल भर तुमको शाप लगे जीवन का ! विरही मन को छलने वाले , तुमको शाप लगे विरहन का !! मेरे अधर बिना हँसते हो, मेरे कंठ बिना गाते हो , कैसे यह सब कर लेते हो, मुझ बिन हो हर बिम्ब अधूरा तुमको शाप लगे दर्पण का ! तुमको शाप लगे विरहन का !!

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नींद रही अनब्याही

14 मई 2015
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टीस उठे हिय भीतर लोचन, अथक बहाएँ आँसू ! प्रीतम मेरे कब आओगे, सोच-सोच रह जाऊँ !! चढ़ी पालकी पलकों वाली , रैन दुल्हन बन आई ! नयन हठीले मण्डप त्यागें , नींद रही अनब्याही ! जीवन से सपनों का नाता , जोड़ -जोड़ रह जाऊँ ! प्रीतम मेरे कब आओगे , सोच-सोच रह जाऊँ !! अन्तर्मन की व्यथा अनोखी ,

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मैं भूल जाऊँ कृष्ण को

9 मई 2015
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जीवन में हर पुरुष का तिरस्कार नहीं किया जा सकता ...नहीं की जा सकती उसकी उपस्थिति ख़ारिज़ .तब जबकि ,मेरा भाई एक पुरुष है ..मेरा पिता एक पुरुष है ..मेरा पति एक पुरुष है ...मेरा शिक्षक भी कई बार कोई पुरुष ही रहा ....मेरा साथी मित्र पुरुष है ..मेरे साथ तमाम वो हाथ पुरुषों के हैं जिन्होंने मुझे ऊँचाइयां द

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दर्पण को दोष लगाने से

14 मई 2015
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दर्पण को दोष लगाने से सूरत नहीं बदल जाती है !तुम मत पूजो घर की तुलसी !तुम मत मानों ,कोई देवता ! बहती नदिया को छलकर तुम ,भ्रम पाले ना ,कोई देखता !छुप-छुपकर ,चोरी करने सेसीरत नहीं बदल जाती है !चुगली करतीं हैं ख़ुद आँखें !कितना पाप लिए जागे हो !सीढ़ी पर हो झुकते लेकिन ,विश्वासों के तोड़े धागे !अर्चन को

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एक चिट्ठी माँ के नाम

9 मई 2015
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मेरी प्यारी माँ , मेरा कोटिशः नमन , माँ तुम्हारी बड़ी याद आ रही है...... बड़े प्यार से ...लाड़ -दुलार से पाला तुमने मुझे ,मेरे नाज़ -नख़रे सहे ...हर क़दम पर हौसला बढ़ाया कि चूम सकूँ आकाश की ऊँचाइयाँ ..पत्थर को ठोकर मार निकाल सकूँ अपने अधरों की प्यास मिटाने को अपने हिस्से का पानी ...मेरी माँ पर तुमने कभी

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चलो बस यूँ ही

14 अक्टूबर 2015
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ये पद्मश्री ये प्रशस्तियाँ ये अकादमी ये हस्तियाँ ये बड़े-बड़े नाम और उनके काम नहीं जानती मैं मैं मेरी बस्ती की बस एक सखी को जानती हूँ अभी कुछ दिन पहले ही तो ईद की दी थीं उसने बधाईयाँ मैंने खिलाईं थीं ख़ास मेवे वाली सिवइयाँ !!सुनो महानुभावो बड़ी चर्चा है आजकल तुम्हारी सुना है बड़े फ़िक्रमंद हो तुम पर सुनो

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बड़े भाग मानुस तन पावा

19 अक्टूबर 2015
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पसन्ना जैसा मुँह लटकाए क्यूँ बैठे हो कई बार सुना है ...सच भी है जीवन में मुँह लटकाए रहने से काम नहीं चलता ..भाई गम्भीरता ने कब कहा कि मेरे नाम का लबादा ओढ़े रहोगे तभी संज़ीदा माने जाओगे ...ये अधर मुस्कुराने के लिए ही ईश्वर ने दिए  हैं ..सफ़ेद दन्तपंक्तियाँ ठहाके के लिए ....सेल्फी निकालते वक़्त न जाने कह

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हे कलम पराजित मत होना

20 अक्टूबर 2015
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शूल मिलें ,पग -पग पथ में रोड़े अगिन ,मनोरथ में विचलित हो,विद्रोहों से ,हे कलम ,पराजित मत होना ।।यह युद्ध भयानक ,अब होगा जो नहीं हुआ वो सब होगा ।निर्णय शक्ति-पराक्रम का,यदि आज नहीं तो, कब होगा ।अपने भी आलोचक हैं विद्वेषक ,आखेटक हैं ,व्याकुल है भीतर की पीड़ा हे कलम ,धैर्य को मत खोना ।।हे कलम ,पराजित मत

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सुनो भावना

21 अक्टूबर 2015
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सुनो भावना .....भान हुआ क्या कि समय कितनी शीघ्रता से अपने पाँव बढ़ाता चला जा रहा ..पथ चाहे दुर्गम हो या सुगम, धूप आई हो या फ़िर छाँव ,हंसी मिली हो या अश्रु क्षार , समय की धार न कभी रुकी , न कभी रूकेगी ...तुम्हीं कई बार थककर रूकी ..फ़िर -फ़िर ऊर्जा और उत्साह से भरकर चली ....कई बार पीछे मुड़कर भी निहारा ..

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ये कहाँ आ गए हम ?

22 अक्टूबर 2015
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इक्कीसवीं सदी में जी रहे हम आधुनिक लोग.. डिजिटल भारत का स्वप्न देखतीं हुईं आँखें..यह नहीं देखना चाहतीं कि  पड़ोस में कौन मर गया ..क्यूँ मर गया......फरीदाबाद के सुनेपड गाँव में दबंगों ने चंद रोज़ पहले एक दलित परिवार की  मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी , जिसमें ढाई वर्ष के एक बच्चे और  मात्र 10 माह की ब

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बूँद-बूँद गंगाजल(काव्य-संग्रह)

9 जनवरी 2016
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#अब तक मेरे गीतों को आपने 'कवि-सम्मेलनों' में दिल से सुना, सराहा, आशीर्वाद और स्नेह दिया।आपकी बहुत-बहुत आभारी हूँ।अब #बूँद-बूँद गंगाजल#मेरा गीत-संग्रह प्रकाशित हुआ है। अब 👉#बूँद-बूँद गंगाजल #कीऑनलाइन प्रि-बुकिंग आप नीचे दिए गए किसी भी link से करवा सकते हैं।👉🏾सुना है कि अब फ़्री शिपिंग और कैशऑन डि

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बूँद-बूँद गंगाजल

11 जनवरी 2016
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विश्व पुस्तक मेला" में भी उपलब्ध है,

14 जनवरी 2016
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आप जा रहे हैं दिल्ली-"विश्व पुस्तक मेला" में,तो वहाँ भी उपलब्ध है,मेरा काव्य-संग्रह "बूँद-बूँद गंगाजल "हॉल सं-12 A में, अंजुमन-प्रकाशन के -स्टॉल 337 परआपका स्वागत है !

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"विश्व पुस्तक मेला" में भी उपलब्ध

14 जनवरी 2016
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आप जा रहे हैं दिल्ली-"विश्व पुस्तक मेला" में,तो वहाँ भी उपलब्ध है,मेरा काव्य-संग्रह "बूँद-बूँद गंगाजल "हॉल सं-12 A में, अंजुमन-प्रकाशन के -स्टॉल 337 परआपका स्वागत है !!

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