पसन्ना जैसा मुँह लटकाए क्यूँ बैठे हो कई बार सुना है ...सच भी है जीवन में मुँह लटकाए रहने से काम नहीं चलता ..भाई गम्भीरता ने कब कहा कि मेरे नाम का लबादा ओढ़े रहोगे तभी संज़ीदा माने जाओगे ...ये अधर मुस्कुराने के लिए ही ईश्वर ने दिए हैं ..सफ़ेद दन्तपंक्तियाँ ठहाके के लिए ....सेल्फी निकालते वक़्त न जाने कहाँ से आ जाती है ये मुस्कान ...सुनो अंतस में एक सेल्फी मोड सक्रिय रखो सदा ..फ़िर मनुष्य योनि भी विशेष है भाई ..न होता तो पशु और मानव में भेद क्या रह जाए ....अंतस में उल्लास का उजास बनाये रखो ...जीवन में उत्साह जीवित रहे ....सुबह सवेरे उद्यानों में ख़ालिस ठहाका आसन को पूरे मनोयोग से करते देख कर बड़ा आनंद आता है ..कहने का तात्पर्य अब ये भी नहीं कि ख़ाली-पीली खीसें ही निपोरते रहो पर हाँ ग़र जी करता है आपका हँसने का तो मौन न रहिए ...मुस्कुराने का जतन खोजिए ...डिजिटल इंडिया के साथ -साथ हैप्पी हार्ट रखिए ..अन्तर्जाल पर चिपके रहने वाले कीड़े की भांति व्यवहार न करो...नून ,तेल ,लकड़ी सारा जीवन है भाई ...क्यूँ बचपन रह -रहकर याद आता है ..जब न कोई फ़ोन था ...न अन्य साधन पर बेबात ही ज़रा -ज़रा सी बात पर हँसते थे ...कई बार तो हँसने पर भी खाई थी डांट ...पर अब ये दिन हैं कि सप्रयास भी मुस्कुराना नहीं आता ..हमारे भीतर का बालपन समाप्तप्राय हो चुका है ....किसी समय दो क्षण के लिए ही सही बच्चों के साथ बच्चा बनकतर देखो ...क्या आनंद और स्फूर्ति का प्रवाहित होता है .....गम्भीरता कार्यों में परिलक्षित होनी चाहिए ...विचारों में सकारात्मकता जीवन पथ स्वतः ही सहज और सरल बनाती चलती है ...अब तय आपको करना है कि आपको क्या चुनना है ..बड़े भाग मानुस तन पावा ...!!
"पर अब ये दिन हैं कि सप्रयास भी मुस्कुराना नहीं आता ..हमारे भीतर का बालपन समाप्तप्राय हो चुका है ।." बिलकुल सही कहा आपने भावना जी! बड़े भाग मानुस तन पावा, अतः सकरात्मकता का दामन थमते हुए भी सदा कठिनाईयों में भी मुस्कुराते रहना चाहिए !
शब्द जो ब्रह्मरूप हैं ,शब्दों का नाद सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रवाहित है ,हम उच्चारित या श्रवण करते हैं,वह हमें बाह्य और आतंरिक दोनों रूप प्रभावित करता है ! सुनिश्चित करें कि क्या सुनें ,क्या बोलें !
क्या लिखे हमारी लेखनी जो माँ सरस्वती की विशेष अनुकम्पा का प्रतीक है !आइए आपका स्वागत है भाावों के धरातल पर भावांकन के लिए !