मेरी प्यारी माँ ,
मेरा कोटिशः नमन ,
माँ तुम्हारी बड़ी याद आ रही है...... बड़े प्यार से ...लाड़ -दुलार से पाला तुमने मुझे ,मेरे नाज़ -नख़रे सहे ...हर क़दम पर हौसला बढ़ाया कि चूम सकूँ आकाश की ऊँचाइयाँ ..पत्थर को ठोकर मार निकाल सकूँ अपने अधरों की प्यास मिटाने को अपने हिस्से का पानी ...मेरी माँ पर तुमने कभी यह नहीं बताया था कि मुझे सहेज रही हो ...सँवार रही हो ..किसी और के लिए ..इतना योग्य बनाया कि मैं पराया धन कहलाई ....पर माँ तुम्हारा सलीक़े से जमा किया हुआ यह पराया धन ...यहाँ किसी को रास नहीं आया ...निर्धन हूँ मैं ...धन कैसे हुई ....माँ मैं दक्ष होते हुए भी गुणहीन हूँ ...तुम्हारी दी हुई योग्यता यहाँ अयोग्यता में बदल गई है .....तुम्हारा दिया हुआ उत्साह ..हतोत्साहित हो चुका है ...तुम्हारी दी हुई सक्रियता ..निष्क्रिय हो गई है ....तुम्हारी सिखाये हुए संगीत की स्वर-लहरियाँ ..बेसुरा जीवन-राग हो कर क्रंदन कर रहे हैं ....तुम्हारा खिलाया हुआ ये फूल कुम्हला गया है माँ . ..उसकी सुगंधि विलीन हो चुकी है ...क़ैद कर दिया गया हो जैसे मेरे परों को किसी पिंजरे में ...मैं उड़ना चाहती हूँ ...बादल से बरसती हुई बूँदों को चूमना चाहती हूँ.…
सुनो माँ ...तुम्हारे पास भी तो है एक पराया धन ....सुनो ...कभी गले लगाना ज़रा उस धन को ..मेरे हृदय को तुम्हारी छुअन मिल जायेगी माँ ....उसे क़ैद मत करना ..हौसला मिल जाएगा मेरे पंखों को....देखना माँ कहीं वो पराया धन किसी कोने में अकेले बैठ कर प्यार के दो बोलों के लिए तरस न रहा हो ....उस पराये धन को ,..अपना धन मानकर सहेजना ...सँवारना ...माँ
तुम देखना मुझे भी यहाँ शांति मिलेगी .....मेरा मन पुलकित हो उठेगा ....सौगंध है तुमको मेरी ....
माँ करोगी न ऐसा तुम ....मेरी ख़ातिर ..
तुम्हारी
प्यारी बिटिया मैं .!!
शब्द जो ब्रह्मरूप हैं ,शब्दों का नाद सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रवाहित है ,हम उच्चारित या श्रवण करते हैं,वह हमें बाह्य और आतंरिक दोनों रूप प्रभावित करता है ! सुनिश्चित करें कि क्या सुनें ,क्या बोलें !
क्या लिखे हमारी लेखनी जो माँ सरस्वती की विशेष अनुकम्पा का प्रतीक है !आइए आपका स्वागत है भाावों के धरातल पर भावांकन के लिए !