चैत्र-कृष्णाष्टमी
का चन्द्रमा अपना उज्ज्वल प्रकाश 'चन्द्रप्रभा' के निर्मल जल पर डाल रहा है। गिरि-श्रेणी के तरुवर अपने रंग
को छोड़कर धवलित हो रहे हैं; कल-नादिनी समीर के संग धीरे-धीरे
बह रही है। एक शिला-तल पर बैठी हुई कोलकुमारी सुरीले स्वर से-'दरद दिल काहि सुनाऊँ प्यारे! दरद' ...गा रही है। गीत अधूरा ही है कि अकस्मात् एक कोलयुवक
धीर-पद-संचालन करता हुआ उस रमणी के सम्मुख आकर खड़ा हो गया। उसे देखते ही रमणी की
हृदय-तन्त्री बज उठी। रमणी बाह्य-स्वर भूलकर आन्तरिक स्वर से सुमधुर संगीत गाने
लगी और उठकर खड़ी हो गई। प्रणय के वेग को सहन न करके वर्षा-वारिपूरिता स्रोतस्विनी
के समान कोलकुमार के कंध-कूल से रमणी ने आलिंगन किया। दोनों उसी शिला पर बैठ गये, और निर्निमेष सजल नेत्रों से परस्पर अवलोकन करने लगे। युवती
ने कहा-तुम कैसे आये? युवक-जैसे तुमने बुलाया। युवती-(हँसकर)
हमने तुम्हें कब बुलाया? और क्यों बुलाया? युवक-गाकर बुलाया, और दरद सुनाने के लिये। युवती-(दीर्घ
नि:श्वास लेकर) कैसे क्या करूँ? पिता ने तो उसी से विवाह करना
निश्चय किया है। युवक-(उत्तेजना से खड़ा होकर) तो जो कहो, मैं करने के लिए प्रस्तुत हूँ। युवती-(चन्द्रप्रभा की ओर
दिखाकर) बस, यही शरण है। युवक-तो हमारे लिए कौन
दूसरा स्थान है? युवती-मैं तो प्रस्तुत हूँ। युवक-हम
तुम्हारे पहले। युवती ने कहा-तो चलो। युवक ने मेघ-गर्जन-स्वर से कहा-चलो। दोनों
हाथ में हाथ मिलाकर पहाड़ी से उतरने लगे। दोनों उतरकर चन्द्रप्रभा के तट पर आये, और एक शिला पर खड़े हो गये। तब युवती ने कहा-अब विदा! युवक
ने कहा-किससे? मैं तो तुम्हारे साथ-जब तक सृष्टि
रहेगी तब तक-रहूँगा। इतने ही में शाल-वृक्ष के नीचे एक छाया दिखाई पड़ी और वह
इन्हीं दोनों की ओर आती हुई दिखाई देने लगी। दोनों ने चकित होकर देखा कि एक कोल
खड़ा है। उसने गम्भीर स्वर से युवती से पूछा-चंदा! तू यहाँ क्यों आई? युवती-तुम पूछने वाले कौन हो? आगन्तुक युवक-मैं तुम्हारा भावी
पति 'रामू' हूँ। युवती-मैं तुमसे ब्याह न करूँगी। आगन्तुक युवक-फिर
किससे तुम्हारा ब्याह होगा? युवती ने पहले के आये हुए युवक की
ओर इंगित करके कहा-इन्हीं से। आगन्तुक युवक से अब न सहा गया। घूमकर पूछा-क्यों
हीरा! तुम ब्याह करोगे? हीरा-तो इसमें तुम्हारा क्या
तात्पर्य है? रामू-तुम्हें इससे अलग हो जाना
चाहिये। हीरा-क्यों, तुम कौन होते हो? रामू-हमारा इससे संबंध पक्का हो चुका है। हीरा-पर जिससे संबंध होने वाला है, वह सहमत न हो,
तब? रामू-क्यों चंदा! क्या कहती हो? चंदा-मैं तुमसे ब्याह न करूँगी। रामू-तो
हीरा से भी तुम ब्याह नहीं कर सकतीं! चंदा-क्यों? रामू-(हीरा से) अब हमारा-तुम्हारा फैसला हो जाना चाहिये, क्योंकि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं। इतना कहकर
हीरा के ऊपर झपटकर उसने अचानक छुरे का वार किया। हीरा, यद्यपि सचेत हो रहा था; पर उसको सम्हलने में विलम्ब हुआ, इससे घाव लग गया,
और वह वक्ष थामकर बैठ गया। इतने
में चंदा जोर से क्रन्दन कर उठी-साथ ही एक वृद्ध भील आता हुआ दिखाई पड़ा।
युवती
मुँह ढाँपकर रो रही है, और युवक रक्ताक्त छूरा लिये, घृणा की दृष्टि से खड़े हुए, हीरा की ओर देख रहा है। विमल चन्द्रिका में चित्र की तरह वे
दिखाई दे रहे हैं। वृद्ध को जब चंदा ने देखा, तो और वेग से रोने लगी। उस दृश्य को देखते ही वृद्ध कोल-पति
सब बात समझ गया, और रामू के समीप जाकर छूरा उसके
हाथ से ले लिया, और आज्ञा के स्वर में कहा-तुम
दोनों हीरा को उठाकर नदी के समीप ले चलो। इतना कहकर वृद्ध उन सबों के साथ आकर
नदी-तट पर जल के समीप खड़ा हो गया। रामू और चंदा दोनों ने मिलकर उसके घाव को धोया
और हीरा के मुँह पर छींटा दिया, जिससे उसकी मूच्र्छा दूर हुई। तब
वृद्ध ने सब बातें हीरा से पूछीं; पूछ लेने पर रामू से कहा-क्यों, यह सब ठीक है? रामू ने कहा-सब सत्य है। वृद्ध-तो
तुम अब चंदा के योग्य नहीं हो, और यह छूरा भी-जिसे हमने तुम्हें
दिया था। तुम्हारे योग्य नहीं है। तुम शीघ्र ही हमारे जंगल से चले जाओ, नहीं तो तुम्हारा हाल महाराज से कह देंगे, और उसका क्या परिणाम होगा सो तुम स्वयं समझ सकते हो। (हीरा
की ओर देखकर) बेटा! तुम्हारा घाव शीघ्र अच्छा हो जायगा, घबड़ाना नहीं,
चंदा तुम्हारी ही होगी। यह सुनकर
चंदा और हीरा का मुख प्रसन्नता से चमकने लगा, पर हीरा ने लेटे-ही-लेटे हाथ जोड़कर कहा-पिता! एक बात कहनी
है, यदि आपकी आज्ञा हो। वृद्ध-हम समझ
गये, बेटा! रामू विश्वासघाती है। हीरा-नहीं
पिता! अब वह ऐसा कार्य नहीं करेगा। आप क्षमा करेंगे, मैं ऐसी आशा करता हूँ। वृद्ध-जैसी तुम्हारी इच्छा। कुछ दिन
के बाद जब हीरा अच्छी प्रकार से आरोग्य हो गया, तब उसका ब्याह चंदा से हो गया। रामू भी उस उत्सव में
सम्मिलित हुआ, पर उसका बदन मलीन और चिन्तापूर्ण
था। वृद्ध कुछ ही काल में अपना पद हीरा को सौंप स्वर्ग को सिधारा। हीरा और चंदा
सुख से विमल चाँदनी में बैठकर पहाड़ी झरनों का कल-नाद-मय आनन्द-संगीत सुनते थे।
अंशुमाली
अपनी तीक्ष्ण किरणों से वन्य-देश को परितापित कर रहे हैं। मृग-सिंह एक स्थान पर
बैठकर, छाया-सुख में अपने बैर-भाव को
भूलकर, ऊँघ रहे हैं। चन्द्रप्रभा के तट पर
पहाड़ी की एक गुहा में जहाँ कि छतनार पेड़ों की छाया उष्ण वायु को भी शीतल कर देती
है, हीरा और चंदा बैठे हैं। हृदय के
अनन्त विकास से उनका मुख प्रफुल्लित दिखाई पड़ता है। उन्हें वस्त्र के लिये
वृक्षगण वल्कल देते हैं; भोजन के लिये प्याज, मेवा इत्यादि जंगली सुस्वादु फल, शीतल स्वछन्द पवन;
निवास के लिये गिरि-गुहा; प्राकृतिक झरनों का शीतल जल उनके सब अभावों को दूर करता है, और सबल तथा स्वछन्द बनाने में ये सब सहायता देते हैं।
उन्हें किसी की अपेक्षा नहीं पड़ती। अस्तु, उन्हीं सब सुखों से आनन्दित व्यक्तिद्वय 'चन्द्रप्रभा' के जल का कल-नाद सुनकर अपनी
हृदय-वीणा को बजाते हैं। चंदा-प्रिय! आज उदासीन क्यों हो? हीरा-नहीं तो, मैं यह सोच रहा हूँ कि इस वन में
राजा आने वाले हैं। हम लोग यद्यपि अधीन नहीं हैं तो भी उन्हें शिकार खेलाया जाता
है, और इसमें हम लोगों की कुछ हानि भी
नहीं है। उसके प्रतिकार में हम लोगों को कुछ मिलता है, पर आजकल इस वन में जानवर दिखाई नहीं पड़ते। इसलिये सोचता
हूँ कि कोई शेर या छोटा चीता भी मिल जाता, तो कार्य हो जाता। चंदा-खोज किया था? हीरा-हाँ, आदमी तो गया है। इतने में एक कोल
दौड़ता हुआ आया, और कहा राजा आ गये हैं और तहखाने
में बैठे हैं। एक तेंदुआ भी दिखाई दिया है। हीरा का मुख प्रसन्नता से चमकने लगा, और वह अपना कुल्हाड़ा सम्हालकर उस आगन्तुक के साथ वहाँ
पहुँचा, जहाँ शिकार का आयोजन हो चुका था। राजा
साहब झंझरी में बंदूक की नाल रखे हुए ताक रहे हैं। एक ओर से बाजा बज उठा। एक चीता
भागता हुआ सामने से निकला। राजा साहब ने उस पर वार किया। गोली लगी, पर चमड़े को छेदती हुई पार हो गई; इससे वह जानवर भागकर निकल गया। अब तो राजा साहब बहुत ही
दु:खित हुए। हीरा को बुलाकर कहा-क्यों जी, यह जानवर नहीं मिलेगा? उस वीर कोल ने कहा-क्यों नहीं? इतना कहकर वह उसी ओर चला। झाड़ी
में, जहाँ वह चीता घाव से व्याकुल बैठा
था, वहाँ पहुँचकर उसने देखना आरम्भ
किया। क्रोध से भरा हुआ चीता उस कोल-युवक को देखते ही झपटा। युवक असावधानी के कारण
वार न कर सका, पर दोनों हाथों से उस भयानक जन्तु
की गर्दन को पकड़ लिया, और उसने भी इसके कंधे पर अपने
दोनों पंजों को जमा दिया। दोनों में बल-प्रयोग होने लगा। थोड़ी देर में दोनों जमीन
पर लेट गये।
यह
बात राजा साहब को विदित हुई। उन्होंने उसकी मदद के लिए कोलों को जाने की आज्ञा दी।
रामू उस अवसर पर था। उसने सबके पहले जाने के लिए पैर बढ़ाया, और चला। वहाँ जब पहुँचा, तो उस दृश्य को देखकर घबड़ा गया, और हीरा से कहा-हाथ ढीला कर; जब यह छोड़ने लगे,
तब गोली मारूँ, नहीं तो सम्भव है कि तुम्हीं को लग जाय। हीरा-नहीं, तुम गोली मारो। रामू-तुम छोड़ो तो मैं वार करूँ। हीरा-नहीं, यह अच्छा नहीं होगा। रामू-तुम उसे छोड़ो, मैं अभी मारता हूँ। हीरा-नहीं, तुम वार करो। रामू-वार करने से सम्भव है कि उछले और
तुम्हारे हाथ छूट जायँ, तो तुमको यह तोड़ डालेगा। हीरा-नहीं, तुम मार लो, मेरा हाथ ढीला हुआ जाता है। रामू-तुम
हठ करते हो, मानते नहीं। इतने में हीरा का हाथ
कुछ बात-चीत करते-करते ढीला पड़ा; वह चीता उछलकर हीरा की कमर को
पकड़कर तोड़ने लगा। रामू खड़ा होकर देख रहा है, और पैशाचिक आकृति उस घृणित पशु के मुख पर लक्षित हो रही है
और वह हँस रहा है। हीरा टूटी हुई साँस से कहने लगा-अब भी मार ले। रामू ने कहा-अब
तू मर ले, तब वह भी मारा जायेगा। तूने हमारा
हृदय निकाल लिया है, तूने हमारा घोर अपमान किया है, उसी का प्रतिफल है। इसे भोग। हीरा को चीता खाये डालता है; पर उसने कहा-नीच! तू जानता है कि 'चंदा' अब तेरी होगी। कभी नहीं! तू नीच
है-इस चीते से भी भयंकर जानवर है। रामू ने पैशाचिक हँसी हँसकर कहा-चंदा अब तेरी तो
नहीं है, अब वह चाहे जिसकी हो। हीरा ने टूटी
हुई आवाज से कहा-तुझे इस विश्वासघात का फल शीघ्र मिलेगा और चंदा फिर हमसे मिलेगी।
चंदा...प्यारी...च...इतना उसके मुख से निकला ही था कि चीते ने उसका सिर दाँतों के
तले दाब लिया। रामू देखकर पैशाचिक हँसी हँस रहा था। हीरा के समाप्त हो जाने पर
रामू लौट आया, और झूठी बातें बनाकर राजा से कहा
कि उसको हमारे जाने के पहले ही चीता ने मार लिया। राजा बहुत दुखी हुए, और जंगल की सरदारी रामू को मिली।
बसंत
की राका चारों ओर अनूठा दृश्य दिखा रही है। चन्द्रमा न मालूम किस लक्ष्य की ओर
दौड़ा चला जा रहा है; कुछ पूछने से भी नहीं बताता। कुटज
की कली का परिमल लिये पवन भी न मालूम कहाँ दौड़ रहा है; उसका भी कुछ समझ नहीं पड़ता। उसी तरह, चन्द्रप्रभा के तीर पर बैठी हुई कोल-कुमारी का कोमल
कण्ठ-स्वर भी किस धुन में है-नहीं ज्ञात होता। अकस्मात् गोली की आवाज ने उसे चौंका
दिया। गाने के समय जो उसका मुख उद्वेग और करुणा से पूर्ण दिखाई पड़ता था, वह घृणा और क्रोध से रंजित हो गया, और वह उठकर पुच्छमर्दिता सिंहनी के समान तनकर खड़ी हो गई, और धीरे से कहा-यही समय है। ज्ञात होता है, राजा इस समय शिकार खेलने पुन: आ गये हैं-बस, वह अपने वस्त्र को ठीक करके कोल-बालक बन गई, और कमर में से एक चमचमाता हुआ छुरा निकालकर चूमा। वह चाँदनी
में चमकने लगा। फिर वह कहने लगी-यद्यपि तुमने हीरा का रक्तपात कर लिया है, लेकिन पिता ने रामू से तुम्हें ले लिया है। अब तुम हमारे
हाथ में हो, तुम्हें आज रामू का भी खून पीना
होगा। इतना कहकर वह गोली के शब्द की ओर लक्ष्य करके चली। देखा कि तहखाने में राजा
साहब बैठे हैं। शेर को गोली लग चुकी है,
और वह भाग गया है, उसका पता नहीं लग रहा है, रामू सरदार है,
अतएव उसको खोजने के लिए आज्ञा हुई, वह शीघ्र ही सन्नद्ध हुआ। राजा ने कहा-कोई साथी लेते जाओ। पहले
तो उसने अस्वीकार किया, पर जब एक कोल युवक स्वयं साथ चलने
को तैयार हुआ, तो वह नहीं भी न कर सका, और सीधे-जिधर शेर गया था, उसी ओर चला। कोल-बालक भी उसके पीछे हैं। वहाँ घाव से
व्याकुल शेर चिंघ्घाड़ रहा है, इसने जाते ही ललकारा। उसने तत्काल
ही निकलकर वार किया। रामू कम साहसी नहीं था, उसने उसके खुले मुँह में निर्भीक होकर बन्दूक की नाल डाल दी; पर उसके जरा-सा मुँह घुमा लेने से गोली चमड़ा छेदकर पार
निकल गई, और शेर ने क्रुद्ध होकर दाँत से
बंदूक की नाल दबा ली। अब दोनों एक दूसरे को ढकेलने लगे; पर कोल-बालक चुपचाप खड़ा है। रामू ने कहा-मार, अब देखता क्या है? युवक-तुम इससे बहुत अच्छी तरह लड़
रहे हो। रामू-मारता क्यों नहीं? युवक-इसी तरह शायद हीरा से भी
लड़ाई हुई थी, क्या तुम नहीं लड़ सकते? रामू-कौन, चंदा! तुम हो? आह, शीघ्र ही मारो, नहीं तो अब यह सबल हो रहा है| चंदा ने कहा-हाँ, लो मैं मारती हूँ,
इसी छुरे से हमारे सामने तुमने
हीरा को मारा था, यह वही छुरा है, यह तुझे दु:ख से निश्चय ही छुड़ावेगा-इतना कहकर चंदा ने
रामू की बगल में छुरा उतार दिया। वह छटपटाया। इतने ही में शेर को मौका मिला, वह भी रामू पर टूट पड़ा और उसका इति कर आप भी वहीं गिर
पड़ा। चंदा ने अपना छुरा निकाल लिया,
और उसको चाँदनी में रंगा हुआ देखने
लगी, फिर खिलखिलाकर हँसी और कहा, -'दरद दिल काहि सुनाऊँ प्यारे!' फिर हँसकर कहा-हीरा! तुम देखते होगे, पर अब तो यह छुरा ही दिल की दाह सुनेगा। इतना कहकर अपनी
छाती में उसे भोंक लिया और उसी जगह गिर गई, और कहने लगी......हीरा......हम......तुमसे तुमसे......मिले
ही......चन्द्रमा अपने मन्द प्रकाश में यह सब देख रहा था।