मित्र धर्म इस दुनिया में,
सारे धर्मों से ऊपर है ।
हर बंधन की जंजीरों से,
रिश्ते नातों से ऊपर है ।।
कोई रीति-रिवाज नहीं इसमें,
बस प्रेम ही इसकी भाषा है ।
एक मित्र मित्र का हित चाहे,
बस ये इसकी परिभाषा है ।।
ना शिष्टाचार की उल्झन है,
नहीं शब्दों की मर्यादा है ।
फिर भी इसके भावों में,
अनुराग की दैविक आभा है ।।
तीखी बातें और डाँटें भी,
एक नए उत्साह से भरती हैं ।
बस प्रेम ही प्रेम झलकता है,
मन को आनंदित करती हैं ।।
मित्र वही जो मित्र के हित,
खुद हारने में भी सुख पाए ।
गुण दोष बताकर शुद्ध करे,
और श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाए ।।
मित्रता हो श्री कृष्ण के जैसी,
मित्र को जो कष्टों से बचाए ।
मित्रता हो तो कर्ण के जैसी,
जीत-हार जिसे डिगा ना पाए ।।
मीत हो कवि चंद के जैसा,
संकट में जो साथ निभाए ।
मित्र के लिए भिड़ जाए काल से,
मौत भी जिसे डरा नहीं पाये ।।
इस घोर कलयुगी दुनिया में,
कहाँ ऐसे लोग मिल पाते हैं ।
वे अति भाग्यशाली हैं जिनको,
सच्चे मीत मिल जाते हैं ।।
छल से भरी इस दुनिया में,
जरा सोच समझकर चलना है ।
जाँच परख कर बनो मित्र,
यदि कपट जाल से बचना है ।।
आज के युग में यारी भी एक,
अति घातक हथियार बना है ।
बचना है उसका मुश्किल जो,
इस धोखे का शिकार बना है ।।
हुई घटित अनेकों घटनाएँ ,
जब यार ही रिपु कराल बना ।
करके यारी में धोखा,
जब यार यार का काल बना ।।
कुछ लोगों ने बार बार ही,
यारी को है किया कलंकित ।
सोचने को जो बाधित कर दे,
ऐसा पाप किया है अंकित ।।
प्यार में छल की घटनाएँ,
हर गाँव नगर मिल जाती हैं ।
जहाँ झूठे इश्क के चंगुल में,
कई मासूमें फँस जाती हैं ।।
जब कोई कांड हो जाता है,
फिर शोर शराबा मचता है ।
ये मानव इतना शातिर है,
कि सच कहने से बचता है ।।
जिसके साथ ये होता है,
वो मलके हाथ रह जाता है ।
सम्मान की रक्षा कैसे हो,
वो सारे जतन लगाता है ।।
फिर ऐसा रास्ता चुनता है,
जो खुद का ही संहार करे ।
अधर्म की पराकाष्ठा हो,
मानवता को शर्मसार करे ।।
ये किसने किया और कैसे हुआ,
हर कोई सवाल उठाता है ।
जो मूलभूत कारण था उसको,
कोई नहीं कह पाता है ।।
ज्यादा कमाने का लालच,
बच्चों को घात पहुँचाता है ।
जो संस्कार मिलने थे उन्हें,
उनसे वंचित कर जाता है ।।
जब घर में नौकर चाकर हैं,
तो चिंता की कोई बात कहाँ ।
जो शानो शौकत कम कर दे,
ये किसी की है औकात कहाँ ।।
नौकर चाकर से पाए हों,
जब अच्छे बुरे संस्कार सभी ।
बच्चों का इसमें दोष है क्या,
नहीं सोचा एक भी बार कभी ।।
एक दूजे के लिए समय नहीं,
बच्चों को क्या मिल पायेगा ।
जब सब कुछ हाथ से निकल गया,
फिर पछताना रह जाएगा ।।
जो सच्चा प्यार ना समझ सकें,
ऐसा बच्चों को प्यार ना दो ।
जिनमें वे स्वयं उलझ जायें,
ऐसे उनको संस्कार ना दो ।।
निज स्वार्थ को पूरा करने में,
बचपन को नहीं कुर्बान करो ।
देश को अच्छा भविष्य मिले,
इसका भी थोड़ा ध्यान करो ।।